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तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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महाश्रृंगार छन्द

कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार।
कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।।

कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार।
कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।।

कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार।
कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।।

बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार।
कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।।

किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार।
किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।।

किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार।
किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार

किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार।
किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।।

किसी को दिए दाँत दमदार, किसी की चोंच हुई चमकार।
किसी को पाँव नहीं दो चार, किसी को पाँवों की भरमार।।

किसी को मिले नहीं अधिकार, किसी की होती जय जयकार।
स्वयं तुम निराकार साकार ! तुम्हारा अद्भुत है संसार।।२।।

हुआ विज्ञान चाँद के पार, तिरंगा लहराया इस बार।
देश का स्वप्न हुआ साकार, जमाया भारत ने अधिकार।।

जगद्गुरु भारत का परिवार, वेद विद्या का पारावार।।
ज्ञान को कर – कर फिर साकार, दिखाता दुनिया को हरबार।।

तोड़ अब नफरत की दीवार, बढ़ेगा पथ पर पानीदार।
भुला कर स्वार्थ और अपकार करेगा जीवों का उपकार।।

देखकर प्रकृति और उपहार, करें हम निर्विरोध स्वीकार।
खड़े हों भले बीच बाजार, करेंगे सुख दुख अंगीकार।

बढाएँ प्रेम और सत्कार, मान कर ईश्वर का आभार।
कहें हम तुम हो अपरम्पार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।३।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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