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मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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नर व नारी…मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ?
युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर कर ब्याह रचाया था। चौबीस अवतारों में भी विशुद्ध नर अथवा नारी के साथ एक तीसरी भी प्रजाति का उल्लेख है।
शिव भी अर्धनारीश्वर कहलाते हैं। विष्णु ने भी मोहिनी रूप धरा है। कान्हा को भी सबने त्रिभंगी मुद्रा में देखा है। लेकिन इन स्वरूपों को मात्र साधन ही माना है। श्रापित शिखण्डी को भी भीष्म पितामह के विनाश हेतु ही याद किया गया। माथे की शुभ मोड़ी व सेहरे को विवाह के पश्चात जल में विसर्जित कर दिया जाता है। इन किन्नरों को भी अभिशप्त सा मान कर प्रथक डेरा रहने को मिलता है।
जैसे न्यायालय द्वारा बेकसूर भी सजा पा जाता है, वही हाल इनका है। यूँ तो इन्हें बहुत ही शुभ माना जाता है। घर से बाहर निकलते ही यदि ये सामने आ जाए तो समझ लो नीलकंठ के ही दर्शन हो गए। बच्चे के जन्म, शादी व त्योहारों पर इनका बड़ा मान किया जाता है। मुँह-माँगी सौग़ातें दी जाती हैं। इनके द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद का सिक्का एक धरोवर जैसा रखा जाता है। हाल ही में फेसबुक पर देखा कि राहुल वैद्य व दिशा परमार ने शादी के बाद घर पर इनका स्वागत किया। इनके साथ डांस भी किया, एक शीतल बयार के झोंके सा लगा।
आश्चर्य की बात तो यह कि इतने शगुनी होते हुए भी इनको अपशगुनी क्यों मानते हैं ? इनका अपमान व मजाक क्यों किया जाता है ? इनकी शरीर संरचना में इनका क्या दोष ?
एक सामाजिक बदलाव अपेक्षित है। माता-पिता व परिवार वालों का साथ इन्हें चाहिए। इनमें भी भावनाएं व आकांक्षाएँ हैं। सरकारी तौर पर भी इन्हें थर्ड जेंडर का दर्जा मिल चुका हैं। एक सामान्य नागरिक की तरह इन्हें भी सारे अधिकार मिले हुए हैं। शिक्षा नौकरी राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में इनकी भागीदारी बढ़ रही है। एक और राहत देने वाली ख़बर यह है कि चिकित्सा द्वारा भी इन्हें सामान्य जीवन जीने के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं। लेकिन इस हेतु अभिभावकों की जागरूकता अनिवार्य है। जनमानस को भी अपनी विचार धारा बदलनी होगी।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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