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फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली
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फिर पलाश-वन
दहक उठे हैं,
नयी आग के।।

धधक उठे हैं
बहुत दिनों के बाद
दबे शोले,

स्वेद,
रक्त बनकर मचले
फिर फिर बाजू तोले;

सघन तमिस्रा से भिड़ते
पल-पल चिराग के।।

धरती-सी
धानी चूनर में
श्रमसीकर के बोल,

अपने हाथों
तय करने
अपनी मेहनत का मोल;

निकल पड़े
मजबूत इरादे,
नये, जाग के।।

चट्टानों से
टकराने को
ये आतुर सीने,
निकल पड़े हैं
अपने हिस्से की दुनियाँ जीने;

फन पर चढ़कर नाचेंगे
कालिया नाग के।।
फिर पलाश-वन……

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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