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Tag: डॉ. कामता नाथ सिंह

फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….
कविता

फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** फिर पलाश-वन दहक उठे हैं, नयी आग के।। धधक उठे हैं बहुत दिनों के बाद दबे शोले, स्वेद, रक्त बनकर मचले फिर फिर बाजू तोले; सघन तमिस्रा से भिड़ते पल-पल चिराग के।। धरती-सी धानी चूनर में श्रमसीकर के बोल, अपने हाथों तय करने अपनी मेहनत का मोल; निकल पड़े मजबूत इरादे, नये, जाग के।। चट्टानों से टकराने को ये आतुर सीने, निकल पड़े हैं अपने हिस्से की दुनियाँ जीने; फन पर चढ़कर नाचेंगे कालिया नाग के।। फिर पलाश-वन...... परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
जहाँ के तहाँ रह गये
कविता

जहाँ के तहाँ रह गये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** वक़्त पर बेजुबां रह गये वे जहाँ के तहाँ रह गये नानुकुर कुछ भी आया नहीं बस निवाले जहां रह गये जुल्म सहते रहे उम्र भर सोचते खामखां रह गये फर्श से अर्श तक ले गये ऐसे काँधे कहाँ रह गये आँख के खून बादल हुये और बन के धुआंँ रह गए पीर बस कसमसाती रही तीर तो बदगुमां रह गये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@...
इश्क़-सी कुछ लगे है हवा
कविता

इश्क़-सी कुछ लगे है हवा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** इश्क़-सी कुछ लगे है हवा मनचली-सी लगे है हवा इससे उससे लिपटती फिरे पागलों-सी लगे है हवा मौसमों-सी बदलती है यह दिल्लगी-सी लगे है हवा बाग, जंगल, पहाड़ी, नदी, ये तो सब को लगे है हवा बन्द कमरों से बाजा़र तक बेहया-सी लगे है हवा परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६...
जैसे कुटिल ततैया
गीत

जैसे कुटिल ततैया

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** लोक, तन्त्र के पहरे में करता है ता ता थैया! बिना छेद की बंसी टेरे अपना कृष्ण कन्हैया।। चेहरे पर भिनसारी आभा, मुँह में मिसरी-सी, घर-आँगन से दालानों तक खुशियाँ पसरी-सी रामकहानी-सी वे यादें, जैसे कुटिल ततैया। बिना मथानी मथे मन्थरा घर-घर में परपंच, बिना सूँड़ के हाथी जैसा झूम रहा सरपंच आगे-पीछे कई लफंगे करते भैया-भैया।। पलते हैं अनजाने बापों के विकास के भ्रूण, बढ़ते बढ़ते नाक हो गई है हाथी की सूँड़ जौ का टूँड़ गले में, बेबस जन-गण-मन की गैया।। सड़कों पर बिन डामर गिट्टी जैसी मारी मारी, भटक रही लोटा-थारी बिकने जैसी लाचारी कालीदह तक पहुँच न पाता कोई नागनथैया।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
देखी नहीं जातीं
कविता

देखी नहीं जातीं

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** दिमाग़ी तौर की बीमारियाँ देखी नहीं जातीं। तेरी गुस्ताखियाँ, ऐयारियाँ देखी नहीं जातीं।। बहुत दुशवार है हालात से लड़ना, बदल पाना, निजामत की मगर गद्दारियाँ देखी नहीं जातीं।। यहाँ बरफीली सर्दी में पडे़ हैं आसमां ओढे़, तेरा रंगीन बिस्तर, गरमियाँ देखी नहीं जातीं।। जहाँ सरसब्ज़ दोआबा था, है अंगार आँखों में, ये सहरां और ये वीरानियाँ देखी नहीं जातीं।। तेरी वहशत से हम दहशत में आये हैं, न आयेंगे, कुचलने की हमें तैयारियाँ देखी नहीं जातीं।। खुदा के वास्ते परदा उठा दे अपनी आँखों से, ऐ जालिम अब तेरी मक्कारियाँ देखी नहीं जातीं।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
कितने रहमो करम हो लिये
ग़ज़ल

कितने रहमो करम हो लिये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** आपके कितने रहमो करम हो लिये जितने गम हो लिए, उतने कम हो लिए अपना दीवानापन रोज बढ़ता गया जितने तुम हो लिए उतने हम हो लिए चाहतों की जमीं गुनगुनाती रही ख्वाब कितने तुम्हारी कसम हो लिये तन पे यादों की चूनर लपेटे हुये मन कहे यूँ ही सौ-सौ जनम हो लिए राह में जिन्दगी की अकेला हमें देखके हमसफर लाख गम हो लिये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
मैं तो चला सफर पर
गीत

मैं तो चला सफर पर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अनदेखी, अनजान डगर पर, तुमसे बिना बताये, बोले, मैं तो चला सफर पर अपने मेरे यार! सदा खुश रहना... ध्यान रहे कितनी सर्दी, गर्मी झेली गुलशन लहकाया, खून-पसीने से, मिलजुलकर कलियों का आँचल महकाया; कभी न मेरी याद, उदासी का साया इनको छू पाये, इन पर इतना प्यार लुटाना, मेरे प्यार! सदा खुश रहना... एक दूसरे में घुलमिलकर कितने सपन सलोने सींचे, आसमान के तारे तोड़े, कितने चाँद उतारे नीचे; इन्हें कभी एहसास न होने पाये कोई चाँद सपन है, अब सब भार तुम्हारे काँधे, मेरे यार! सदा खुश रहना.... कितनी मुसकानें मुसकाईं, कितना हँसे हँसी के मेले, इतराते, इठलाते गुजरे कितनी मनुहारों के रेले; अब मुझको भी खुद में पाना, खुद से ही हँसना, बतियाना, पूरनकाम समझना खुद को, मेरे यार! सदा खुश रहना.... यद्यपि अपने वादे थे हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, सदा सामना हर म...
यक्षप्रश्न गहरे हैं
कविता

यक्षप्रश्न गहरे हैं

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** तेरे नैनों की भाषा को अब तक कोई समझ न पाया, डूब गया हूँ जबसे मैंने इनके तट पर पाँव धरे हैं।। मौन मुखर होने को आतुर सौ संसृतियों के उद्भव का, परिलक्षित स्वरूप होता हर एक असम्भव का, सम्भव का; जाने क्या काला जादू है इनमें, जिसे देखकर अबतक जाने कितने चाव अधूरे इनकी पाँखों में ठहरे हैं।। सागर सी गहरी आँखों में आसमान की ललक जगी है, सपनों के मूंँगे-मोती से अपनों की हर पलक पगी है: कितनी मनुहारें इनके तट पर आकर डेरा डाले हैं, अवचेतन मन के फिर भी जाने कितने कठोर पहरे हैं।। पछुआ के झंझावातों ने पीछे कितनी बार धकेला, पुरवाई ने दिये निमंत्रण देखा जितनी बार अकेला; अमराई की छाँह न सोची, दोपहरी का घाम न देखा, प्रेम पियासे पागलपन के देखा यक्षप्रश्न गहरे हैं।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायब...
लाखों फरेब खाये हैं
ग़ज़ल

लाखों फरेब खाये हैं

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** लाखों फरेब खाये हैं उस अज़नबी के साथ। गुज़रे न कोई हादसा उस महज़बीं के साथ। अल्लाह सौ बलाओं से रखना उसे महफूज़, महफ़िल में पेश आया है वो बेरुखी़ के साथ। कहते हैं उसे फूल सा नाजुक हजा़र लोग, करता है संगसार मगर सादगी के साथ। घुट घुट के भला जीते भी तो जीते कब तलक, कब तक निबाह करते यूं बेचारगी के साथ। करता भी कोई प्यार क्यूं उजड़े दयार से, रिश्ते नये बना लिये आवारगी के साथ।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
रहना मीत जहाँ, खुश रहना
कविता

रहना मीत जहाँ, खुश रहना

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** मजबूरी से बँधा हुआ मैं बस इतना ही कह सकता हूँ, मेरी याद सँजोये मन में, रहना मीत जहाँ, खुश रहना।। कहना तो आसान बहुत पर क्या ऐसा कुछ हो पायेगा, जब कोई मुसकान चिकोटी काटे, कोई सो पायेगा; पावन अधरों के संगमतट पर जो किया आचमन हमने, मीता उसकी कसम तुम्हें है, रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! माना इस समाज ने बाँधे अनगिन सम्बन्धों के बन्धन, जिनमें बँध कर, हृदय तड़पता, उन्मन रहता, करता क्रन्दन; पर सुधियों के चन्दन से मन के नन्दन वन को महकाये, हँसते-मुसकाते ओ मीता रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! साथ तुम्हारे बीता हर पल, मेरे जीवन की थाती है, शेष बचे जो,ऐसे जैसे नेह बिना जलती बाती है; लोकलाज से बँधे हुये तुम भी ऐसा ही कुछ बोलोगे, मन में सौ त...
छली गई शाम
गीत

छली गई शाम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम। पीपल की फुनगी पर जा बैठा घाम।। कौन यहाँ मेरा है, समझ नहीं पाई, चन्दा सूरज किसकी करते भरपाई; बार बार अपनों से छली गयी शाम।। नियराते दिन का तो टूट गया चक्का, पीछे से रजनी भी मार रही धक्का; कहाँ ठौर खोजे अब बेचारी शाम? चलना जीवन है, चलते रहना है, लेकिन कब तक यों ढलते रहना है; चल-चल के, थक-थक के अब हारी शाम।। टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
शीशा बांँट रहे
कविता

शीशा बांँट रहे

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे। राजा जी घर-घर को ताज़ा किस्सा बांँट रहे।। आओ हम सब झूमें, नाचें गायें गीत मल्हार, रोटी की क्या सोचें , जब अपने ही हैं सरकार; संसद में मुद्दों पर वे मुर्दों को डांट रहे।। गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे।। हरिश्चन्द्र जी धनपशुओं को दान बाँट देते , लेकिन नौकर चाकर की तो जेब काट लेते, वे विकास के मुद्दे पर गुजराती छांट रहे।। गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे!! मेहमानों की अगवानी में चुनवा दी दीवार, फिर भी तुम पर निर्धनता का काला भूत सवार?? फटी गूदड़ी पर, वे चिथड़ी चादर सांँट रहे।। गन्जों को कंघी,अन्धों को शीशा बांँट रहे।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एव...
जी के जंजाल की तरह
ग़ज़ल

जी के जंजाल की तरह

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** जी के जंजाल की तरह, हम हैं फुटबाल की तरह। सब हैं बीमार की तरह, सिर्फ़ मैं अनार की तरह। सपनों को पंख क्या लगे, तुम मिले धमाल की तरह। चादर को तान सो गये, हम भी ससुराल की तरह। गुड़ से गोबर हुये सपन, पर जिये कमाल की तरह। जन्नत कश्मीर सी मिली पर मुये बवाल की तरह। सब कुछ उनके लिये यहाँ, हम बस टकसाल की तरह। ख़्वाहिशें उघार क्या हुईं हम हैं कंगाल की तरह। उनके मक़तल सजे हुये, हम कच्चे माल की तरह।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
कौन कहता है
कविता

कौन कहता है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कौन कहता है यहांँ मस्जिदोशिवाले हैं। अपनी आंँखों में महज़ प्यास है, निवाले हैं।। तंगदस्ती कहांँ-कहांँ पे मार देती है, वक़्त ने कितने ही बेवक़्त सितम ढाले हैं।। कोई बादल बिना पूछे बरस नहीं सकता, आसमां तक भी सियासत के बोलबाले हैं। बस्तियांँ जलती रहें, मस्तियांँ भी चलती रहें, अजीब शय हैं, ख़ुदाई का शौक़ पाले हैं। मत करो, ज़िक्र से उनके लहू उबलता है, तन पे उजले लिबास, मन के बड़े काले हैं। मेरा वका़र जो ललकार उन्हें देता है, मखमली जूतियांँ पैरों में नहीं, छाले हैं। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
प्रश्न पूछती धरती
कविता

प्रश्न पूछती धरती

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बहुत दिनों से बन्जर, परती, काई पडी़ हुई | प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई || तुम्हीं बताओ कब तक हमें रुखाई टोंकेगी, मिलने से कब तक हमको परछाईं रोकेगी; कब तक पीछा छोडे़गी, रुसवाई अडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||१|| कभी अँटरिया चूम-चूम बदरा झूमे, बरसे , आखिर कब तक बूँद-बूँद को,प्यासा मन तरसे ; सपने अँखुवायें, अब तो अँगनाई बड़ी हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||२|| सुधियों की बैसाखी लेकर जब मिलते हो तुम, सोनजुही की कलियों जैसे, कब खिलते हो तुम; बीच हमारे सौतन-सी तनहाई अडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||३|| तिल-तिल मर-मरके, जीवन दे देके ऊब गई, सागर तक क्या पहुँचे नदिया खु़द में डूब गई; खु़द की, खु़द से कितनी बार लडा़ई बडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई|...
अरे राम, अरे राम राम !!
कविता

अरे राम, अरे राम राम !!

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** मुसकानों के ऐसे काम ! अरे राम, अरे राम राम !! मौसम की हृष्ट-पुष्ट बांँहों की अंँगडा़ई, बूंद-बूंद यौवन में मादकता सरसाई; टेर पपीहे की अविराम! अरे राम! अरे राम राम !! नदियों के कूल- कछारों में, तटबन्धों में, गदराई पुरवा के बदराये छन्दों में व्याकुल अभिसारी आयाम ! अरे राम ! अरे राम राम !! कलियों की मदिर चाह करे नये-नये यत्न, गलियों में गूंज रहे भंँवरों के यक्षप्रश्न; प्रणय-पत्रिकाओं के नाम ! अरे राम ! अरे राम राम !! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी ...
रात-रात भर
गीत

रात-रात भर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !! एक छौंछियाहट-सी बनी हुई क्यों रहती है, किर्च-किर्च शीशे सी व्यथा कथानक कहती है; पल-पल यूँ ही दहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!१!! कचनारों-से बिम्ब उभरते मौसम, बेमौसम, मन में सौ तूफान मचलते रहते हैं हरदम; भितरमार यूँ सहते रहना भी है बुरी बला! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला!!२!! मन, अनन्त के अन्त तलक उसकी राहें ताके, जिसने मीठी सुधियों तक के बन्द किये नाके; सपनों में यूँ बहते रहना भी है बुरी बला!! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!३!! अब कोई कौतूहल नहीं कहानी-किस्से में, ठहरी झीलों के जल-सा जीवन है हिस्से में; इससे, उससे कहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!४!! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श...
टीस उभरती है
कविता

टीस उभरती है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अंखुवाये सपने मरते, मन ऊसर, परती है। रह रहकर चुभती है कोई टीस उभरती है।। सदियों का नदियों-सा नाता सुविधाओं से है, बढ़ी चाहतों का रिश्ता सौ दुविधाओं से है; जाने क्या-क्या सह जाती भावों की धरती है।। रह-रहकर चुभती है, कोई टीस उभरती है।। प्रकृति अछूती कन्या जैसी, छेड़े पाप करे, सौ आपदा निमंत्रित करके अपने आप मरे। बादल में सागर-तल की ही पीर उबरती है ।। रह-रहकर चुभती है कोई टीस उभरती है।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रक...
ऊंची कुर्सी… नीचे काम
कविता

ऊंची कुर्सी… नीचे काम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बदल गया युग, बदल गये सब जीवन के आयाम। योगेश्वर! हम कब तक ढोयें कर्मयोग निष्काम।। युद्ध अधर्म-विरुद्ध‌‌‌ गये जीते, क्या धर्म-भरोसे, अश्वत्थामा,कर्ण गये मारे क्या पुण्य-करों से; कटे अंगूठे एकलव्य के कबतक करें प्रणाम?? अगर जुए में धर्मराज हारेंगे द्रुपद-सुता को, राम परीक्षा लेकर, वन भेजेंगे जनक-सुता को; तो समाज झेलेगा इसका निश्चित दुष्परिणाम।। यहां धर्म की नहीं, सिर्फ स्वारथ की सत्ता है, महाधूर्त पाखण्डी की ही अधिक महत्ता है; जितनी ऊंची कुर्सी जिसकी, उतने नीचे काम।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
बीत गये कितने दिन
कविता

बीत गये कितने दिन

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये बोले।। मन में कुछ आना, कुछ कहना, फिर अपने में दहते रहना, वृश्चिक-दंश कभी अपनों, अपने जैसों का सहते रहना, रोम-रोम रिस-रिसकर सबके जीवन में अमृतरस घोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले ।। एक पांखुरी खिलने से झरने तक कितनों को क्या देती, कितने पुण्य बांटती फिरती है संगम की पावन रेती, गुणा गणित या जोड़ घटाना फ़ुरसत कहां कि नापे तोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले।। जब-तब नेह भरी आंखों से, कितने सपने झर जाते हैं, जिम्मेदारी की लू से अंखुवाये सपने मर जाते हैं, बिना समय की मर्जी कब अपनी मर्जी से हीले डोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषण...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
क्या करें हम
कविता

क्या करें हम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम, बताओ क्या करें हम।। सर्जना के पंख पर उड़ते मकानों की खिड़कियों से झांकते सपने सयाने, किन्तु कुत्सित मानसिकता के अंधेरों की स्याह परछाईं लगी उनको डराने; चीरते हैं तीर अपने तरकशों के दिल, बताओ क्या करें हम? दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम बताओ क्या करें हम।। सर्व नाशी सोच की हठ जम गई जैसे- पत्थरों पर काइयों की मूक परतें, आत्महत्या के लिए तैयार बैठी हैं पीढ़ियों की ज़िद लिए दो टूक शर्तें; जब धड़कता ही नहीं सीने में इनके दिल, बताओ क्या करें हम। दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम, बताओ क्या करें हम।। किस तरह जीना हमें है, कौन करता है प्यार, इतना जानवर भी जानते हैं, आस्तीनों के मगर ये सांप पी कर दूध, सिर्फ डसना और डसना जानते हैं; तोड़कर बिषदन्त इनके सिर कुचलने के अलावा फिर, बताओ क्या करें हम...
छोड़ चले
गीत

छोड़ चले

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** एक एक कर रिश्ते सारे तोड़ चले। आसमान को सूरज तारे छोड़ चले।। निभा सके हम जितने वे सब निभा लिए, बाकी करके वारे न्यारे छोड़ चले।। जिन जिन रिश्तों में असमंजस बना रहा, उन सबको हम एक किनारे छोड़ चले।। चांद चांद है, सूरज आख़िर सूरज है, महफ़िल को जुगनू बेचारे छोड़ चले।। डाल न पाए जहां विचारों के लंगर, ऐसे दरिया और किनारे छोड़ चले।। आदर्शों के जनमत पर बहुमत भारी, वह संसद भगवान सहारे छोड़ चले।। आंधी, तूफानों के आगे झुक जाएं, हम ऐसे कमजोर सहारे छोड़ चले।। मौत की तरफ पल पल बढ़ते जीवन को ख़ुद ही हम जैसे बनजारे छोड़ चले।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
याद रहेगा
गीत

याद रहेगा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। अनगिनती युद्ध लड़े, जीते हैं, जीतेंगे, दुर्दिन के लाखों पल बीते हैं, बीतेंगे; कौन साथ रहा, कौन खेल गया दांव, सदियों तक याद रहेगा।। छिपे हुए, ममता के आंचल के नीचे से, बरगद-से बापू के होंठ कसे,भींचे-से; डंडे सहते देखे, उन्हें ठांव-ठांव, सदियों तक याद रहेगा।। पीड़ित मानवता को क्रूर दम्भ पीट गया, निर्मोही सत्ता का नशा आज जीत गया, अपनेपन की आंखें नोंचता दुराव, सदियों तक याद रहेगा।। जब भी, जिस शासन से जनता यह त्रस्त हुई, रावणी प्रचण्डशक्ति, विद्वत्ता अस्त हुई; सत्ताधीशों का यह कुटिल भेदभाव , सदियों तक याद रहेगा।। शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना ...