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जैसे कुटिल ततैया

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली
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लोक, तन्त्र के पहरे में
करता है ता ता थैया!
बिना छेद की बंसी टेरे
अपना कृष्ण कन्हैया।।

चेहरे पर भिनसारी आभा,
मुँह में मिसरी-सी,
घर-आँगन से दालानों तक
खुशियाँ पसरी-सी
रामकहानी-सी वे यादें,
जैसे कुटिल ततैया।

बिना मथानी मथे मन्थरा
घर-घर में परपंच,
बिना सूँड़ के हाथी जैसा
झूम रहा सरपंच
आगे-पीछे कई लफंगे
करते भैया-भैया।।

पलते हैं अनजाने बापों
के विकास के भ्रूण,
बढ़ते बढ़ते नाक हो गई है
हाथी की सूँड़
जौ का टूँड़ गले में, बेबस
जन-गण-मन की गैया।।

सड़कों पर बिन डामर
गिट्टी जैसी मारी मारी,
भटक रही लोटा-थारी
बिकने जैसी लाचारी
कालीदह तक पहुँच न पाता
कोई नागनथैया।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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