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शिक्षक ज्ञान का संसार …

ललित शर्मा
खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
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जब था हमारा विद्यार्थी जीवन
विद्यालय जाने की चढ़ती धुन
समय शिक्षक संग बिताते थे हम
मित्रों और शिक्षको के संग
कैसे हंसी खुशी बीत जाता बचपन
कक्षा में बैठकर पढ़ने में लीन होने की
धुन कभी नहीं होती थी हममें कम

पढ़ने की चढ़ती थी उमंग तरंग
कतार में खड़े होकर
नियमित प्रार्थना गाते थे हम
तनमन से शिक्षक के समक्ष
कुर्सी पर बैठ जाते थे हम
घण्टी बजते ही शिक्षक
खाता लेकर कक्षा में आते
आते ही सम्मान करते,
खड़े हो जाते हम

हाजरी वे सबसे पहले लगाते,
अपनी उपस्थिति हम बताते
बचपन में वो हमें
अक्षर ज्ञान के पाठ
सिखने को संग बिठाते,
पढ़ाने में लीन कराते
अन्तर्मन से अक्षर
बचपन में खूब समझाते

पढ़ने की हर जिज्ञासा को
पल में अन्तर्मन में रमाते
रटा रटा कर लिखना पढ़ना
हम बच्चो को खूब सिखाते
नए नए ज्ञान की नितप्रतिदिन
जीवन घुंटी वे खूब पिलाते

ज्ञान की घुंटी रोज पीने को
हम अलमस्त खूब खो जाते
आपस में स्नेह प्रेम रखने के
गुण वे रोज खुलकर बताते
अक्षरज्ञान के ज्ञान की पूंजी से
परिपक्क नित शिक्षक बनाते

पढ़ने की रुचि बढ़ाते,
पढ़ते पढ़ते शिक्षक
नैतिक शिक्षा ज्ञान की
कहानियां भी खूब सुनाते
कोई नही था ऊंचा, न था कोई नीचा
आपसी प्रेम सदभाव से रहने को
प्रेम के सागर पढ़ाई में दिखाते
खेल खेलना और प्रेम से रहना
और तकनीकि ज्ञानकला सिखाते,

शिक्षक नियमित हम सबसे कहते
एकजुटता सदा रखना प्यारे बच्चों
पढ़लिखकर सबका नाम रोशन
सदा करते रहना ऊंचा प्यारे बच्चों,
शिक्षा ज्ञान सबसे अनमोल है खजाना
शिक्षा को हरदम गले से लगाना

जीवन में कभी न भूलना
शिक्षा का मूल्यांकन
शिक्षा से चमकाना अपना जीवन
हम जब कक्षा में भूल जाते,
शिक्षक ही थे, वो
हमें अंगुली पकड़कर
विद्या का मूल्यांकन खुद बताते
बचपन का भुलक्कड़पन
शरारती नटखट नादानी जीवन
फिर भी कभी नहीं रुलाते
छड़ी दिखाते, फिर भी गले लगाते
लगाते कड़ी फटकार
उसमें बरसता था सौगुना प्यार

कान घुमाते कि
खुलवाते दिमागी ज्ञान के कपाट
भूले बिसरे पाठ कविताओं की
हरेक पंक्तियां के शब्द से सह अर्थ
अथक कण्ठस्थ कराते कक्षा में याद

अनुशासन नीति नियम का अनुसरण
मन से खूब शिक्षक थे कराते
परीक्षा की घड़ी में वो शिक्षक
अपनी नजरें कभी नही हटाते
सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण हेतु हमें तपाते

ज्ञान विद्या के सागर की गहराइयों में
अपनी निष्ठा सेवा कर्म पूजा से
डुबकी शिक्षा की शिक्षक लगवाते
रहन सहन अचार विचार संस्कार से
जीवन जीने के संस्कार रोज बताते
मित्र, परिवार, समाज, देश में
हिलमिलकर रहने के गुणी बनाते
मस्तिष्क के ज्ञान के ललाट को
परीक्षा से मार्गदर्शन बेहद कराते
प्रगतिशील जीवन हम सबका बनाते
उन शिक्षको को आजीवन
भला कैसे भूल पायेंगे
वे शिक्षक ही थे
जिनके प्यार दुलार
शिक्षादान का भार
हम कैसे कब चुकाएंगे
अमूल्य आशीर्वाद
शिक्षकों का पाकर
उनको कभी कभी न
भूल पाएंगे
सशक्त शक्ति साहस
शिक्षकों से है मिली
विद्यार्थी ने नहीं भूली

परिचय :- ललित शर्मा
निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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