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अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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(वीर छ्न्द में आल्हा)
अतीक का अन्त

जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को,
करते थे दो नर बदनाम।
रूह काँप उट्ठेगी सुनकर,
उनके कर्मों का अंजाम।।१।।

जिस फिरोज अहमद का इक्का,
रुक जाता था देख ढलान।
इसी शख्स की औलादों ने,
पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।।

जैसी करनी वैसी भरनी,
फसलें वैसी जैसे बीज।
जैसी कुर्सी वैसी बैठक,
जैसी सूरत वैसी खीज।।३।।

प्रलयंकारी अत्याचारी,
दुखदाई वरदान प्रतीक।
दोनों विकट सहोदर युग के,
नेता अशरफ और अतीक।।४।।

अपराधी बन गए सांसद,
और विधायक दोनों डान।
था दुर्भाग्य देश का कैसा,
दोनों भाई काल समान।।५।।

मगर समय ने पलटी मारी,
धरती हिली हिला आकाश।
दोनों ने ही खुद कर डाला,
खुद के घर का सत्यानाश।।६।।

लूटमार रँगदारी ओछी,
राजनीति छल से भरपूर।
काम न आई ज़ब्त हो गई,
पाप सनी सम्पदा हुजूर।।७।।

उलटा दाँव पड़ा कुछ ऐसा,
लालच के वश हो मजबूर।
खानदान बन गया लुटेरा‌,
आतंकी हत्यारा क्रूर।।८।।

संगी साथी रिश्तेदारों,
का सहयोग मिला भरपूर।
बाहुबली बन गए देश के,
सत्ता का पा गए गरूर।।९।।

राजू पाल विधायक को जब,
मार रहा था निडर अतीक।
देखा इसे उमेश पाल ने,
चश्मदीद बन गया सटीक।।१०।।

था गुलाम शूटर अतीक का,
बेटा असद बाप सा काम।
गोली मार उमेश पाल को,
चश्मदीद को किया तमाम।।११।।

भरे सदन में योगी बाबा,
ने प्रश्नों के दिए जवाब।
मिट्टी में मिल जायेंगे सब,
अपराधी माफिया जनाब।।१२।।

सन्त सदा ही शान्ति चाहते,
क्षत्रिय जन रक्षक सरदार।
शासक शोषित के पोषक हैं,
नियमों से चलती सरकार।।१३।।

नैतिक नियमों के अधीन हर,
भारतीय है भाव प्रधान।
प्राण भले ही जाएँ फिर भी,
भली करे सबकी भगवान।।१४।।

लेकिन कहांँ सोचते पापी,
गहरी बातों पर निर्बाध।
अपराधी तो अपराधी हैं,
उनका धर्म कर्म अपराध।।१५।।

फिर क्या था शूटर गुलाम के,
साथ असद हो गया फरार।
झाँसी में दोनों को घेरा,
बाइक पर जा रहे सवार।।१६।।

दोनों पिस्टल लिए हुए थे,
दाग उठे थर्राये पेड़।
चौकन्ना हो गया पुलिस दल,
हुई गोलियों से मुठभेड़।।१७।।

असद मार डाला अपराधी,
ढेर कर दिया गया गुलाम।
सारी ताकत धरी रह गई,
जीती पुलिस प्रथम संग्राम।।१८।।

बेटे की मैय्यत में शामिल
कर न सका आखिरी सलाम।
बाप अतीक फूट कर रोया,
रे मौला कैसा अंजाम।।१९।।

मिट्टी में मिल गए हम सभी,
या वल्लाह बचा क्या शेष।
किसी रोज़ देखूँगा सबको,
मद में बोल उठा अवशेष।।२०।।

सुनो दूसरे दिन अतीक
अशरफ के पापों का परिणाम।
लगी हथकड़ी पुलिस ले गई,
वाहन से उतरे बदनाम।।२१।।

अस्पताल के दरवाजे पर,
खबर नबीसों का धर वेश।
तीन तमंचे धारी लपके,
सन्नी अरुण और लवलेश।।२२।।

ताड़ ताड़ चल उठीं दना दन,
गोली पर गोली की मार।
गुड़ देने से मरने वालों,
को गोली से दिया पसार।।२३।।

अशरफ मरा अतीक मर गया,
दोनों ही हो गए तमाम।
खड़े खड़े खम्भे से दोनों,
औंधे मुँह गिर पड़े धड़ाम।।२४।।

जैसे बड़े पेड़ गिरते हैं,
जैसे गिरते कहीं पहाड़।
जैसे बिजली गिरे धरा पर
वैसे खाकर गिरे पछाड़।।२५।।

चण्ड मुण्ड से दोनों पटके
बहने लगी खून की धार।
खड़ा मीडिया ठिठका जैसे
साँप सूँघ से गए हजार।।२६।।

हक्की बक्की पुलिस रह गई,
समझ न पाई छल संग्राम।
क्या हो गया अचानक ऐसा,
असमंजस में थे हुक्काम।।२७।।

रावण कुम्भकरण से हारे,
शुम्भ निशुम्भ मरे मजबूर।
आज घमण्ड नहीं चल पाया,
हुआ सड़क पर चकनाचूर।।२८।।

एक प्रश्न जलता छोड़ा है,
इन तीनों ने बेशक यार।
मिट्टी में जो मिले हुए थे,
फिर क्यों भूना आखिरकार।।२९।।

साढ़ेसाती लगी सनी सँग,
पकड़े गए अरुण लवलेश।
भागा गुड्डू मुस्लिम भागा,
भागे कई बदल कर वेश।।३०।।

बुरी तरह मुस्ताक डर गया,
शाइस्ता हो गई फरार।
पाप हारने लगा देश में,
आजम खान हुआ बीमार।।३१।।

अशरफ की बीवी जैनब का,
भी जीना हो गया हराम।
अब अतीक की बीवी गुपचुप,
शाइस्ता बन गई निजाम।।३२।।

योगी मोदी की जोड़ी ने,
ऐसे काम किए बेजोड़।
पाप विरोधी सुखी हो गए,
दुखी हो गए नाते तोड़।।३३।।

हम सब करें समर्थन खुलकर,
हर अपराधी से कर बैर।
बाहुबली जो पनप गए तो,
फिर न किसी की होगी खैर।।३४।।

बुरे काम का बुरा नतीजा
कहता है अनुभवी समाज।
बुरा न करना कभी किसी का
पीछे खुलता है हर राज।।३५।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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