
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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खुश हो लो फिर आज
आजाद देश मे आजाद हो तुम,
दर्द, भूख, गुलामी से
अब भी तड़प रहे हैं हम!!
तुम जैसे ही जीव हैं हम,
तुम जैसा ही है जीवन,
क्यूँ हमको नित आहत करते हो
क्यूँ कैद में हमको रखते हों??
जिव्हा को क्षणिक स्वाद मिले
हम सबका रक्त बहाते हो,
कैसे मानव हो तुम, किस
मानवता का धर्म निभाते हो????
शनि राहु केतु के डर से
हमे पूजने आते हो
कभी श्वान, काग, की रोटी,
कभी गाय को ढूंढा करते हो!
स्वार्थ सिद्ध के लिए
ईश्वर को भी धोखा देते हो,
मंदिर, पूजा- हवन के बाद
हमारा भक्षण करते हो??
सर्कस और चिड़िया घरों
जैसे कारावास में हमको रखते हों
मन बहले तुम मानव का,
कोड़े हम पर बरसाते हो,
दर्द और पीड़ा से भरे हम,
फिर भी हमको तुम हँसाते हो!!
सदियाँ बीत रही पिंजरे में
कब खुली हवा में उड़ पाएंगे,
आजादी की तो बात ही छोड़ो
क्या इन जंजीरों से मुक्त हो पाएंगे???
हमे जानवर कह कह कर
खुद क्रूर इतने बन जाते हो,
क्या तुम भी पिंजरे में कैद हो
सारा जीवन बिता सकते हो???
ये देश हमारा भी उतना
जितना तुम अपना कहते हो,
इस देश की रक्षा करने को
हम जैसे भी बलिदान हुए!!
चंद लोग ही ऐसे होते हैं
जो हमारा दर्द समझते हैं
दया, और करुणा से
हमारा संरक्षण करते हैं!!
हम पशुओं में भी भाव है
उस निःस्वार्थ प्रेम को समझते हैं!!
हमको भी आजादी प्यारी है,
तुम प्रेम, स्नेह, संरक्षण दो
है हाथ जोड़ कर विनती तुमसे
हम सबका अधिकार हमे दे दो !!
है सही मायने में आजादी
जब सभी जीव स्वतन्त्र रहें
उन्नत होगा देश तभी हर
चेहरे पर मुस्कान खिले !!
आजाद देश में हमको भी
स्वतंत्रता का वरदान मिले,
हर एक एक जीवों का “जीवन”
तिरंगे के रंग में ढ़लने दो!!!
जय हिंद
परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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