
मोहर सिंह मीना “सलावद”
मोतीगढ़, बीकानेर (राजस्थान)
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विश्व आदिवासी दिवस ९ अगस्त को पूरे विश्व में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में सबसे पहले से रहने वाले आदिम लोगों के बंशज आदिवासी ही है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार लगभग ११ करोड़ आबादी हैं जो भारत की लगभग 8.५ प्रतिशत हैं। आदिवासियों का जीवन धरती, जल, जंगल, वन्य जीवों के साथ एवं संपूर्ण मानवता के साथ परस्पर पूरक और संरक्षित है। भारत देश में आजादी के ७५ वर्ष बाद भारत के सर्वोच्च पद पर प्रथम आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू जो कि सबसे कम उम्र की प्रथम राष्ट्रपति भी है। आदिवासी शब्द दो शब्दों से आदि और वासी से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है उस देश के मूल निवासी अगर सिर्फ भारत की बात की जाए तो १० से ११ करोड़ की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है आदिवासी समुदाय में मुंडा, संथाल, मीणा, भील, गरासिया, उरांव आदि अनेक जातियां शामिल है। जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक भारत भारत के प्रत्येक राज्य में फैली हुई है। आदिवासियों के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा की आदिवासी प्रकृति पूजक के साथ साथ सरल व सौम्य स्वभाव के धनी है। आदिवासी प्रकृति पुत्र है। सम्मान देने वालों का सम्मान करना इनका विशेष गुण है। ऐसी पवित्र भावना मैंने संसार की किसी भी अन्य जाति में नहीं देखी। अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के रूप में पहचाना जाता है। यूएनओं के द्वारा ९ अगस्त १९६३ को आदिवासियों के हक और उनके मूल अधिकारों में जागरुकता लाने के लिए एक कार्यदल गठित किया जिसकी बैठक के बाद से ही ९ अगस्त को पूरे विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की गई। २१ वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह माना कि धरती के मूल निवासी अपने ही मूल अधिकारों से वंचित किए जा रहे हैं। आदिवासी समाज को अपेक्षा बेरोजगारी, बंधुआ मजदूरी, महिलाओं का शोषण, शिक्षा से वंचित हो रहे हैं इनके साथ ही आदिवासियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आदिवासियों के संरक्षण के लिए १९९४ से विश्व आदिवासी दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है। आदिवासी समुदाय अपनी विशेष संस्कृति, परंपराओं, अधिकारों के साथ-साथ पर्यावरण बाल संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहें हैं। आदिवासी समुदाय जल, जंगल जमीन के संरक्षण की बात करता है उनकी आत्मा आज भी इनसे जुड़ी हुई है। आदिवासी समुदाय सुदूर घने जंगलों के साथ-साथ दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी निवास करते है। ये आज भी देशी तरीके से ही खेती बाड़ का कार्य करते हैं इनके पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। आदिवासी समुदाय शिक्षित तो हुआ है फिर भी अपने अधिकारी के प्रति जागरूक नहीं हुआ शिक्षा में महिलाओं का प्रतिशत आज भी टेप नहीं है आज भी आदिवासियों ने अपने देशीपन को संजो कर रखा है, अपने रीति रिवाज, परंपरा और संस्कृति, संस्कारों अपनी बोली, पहनावे को अपने संस्कारों में समेटे हुए आदिवासी एक वोट बैंक ना बन कर यह जाए इसलिए हमें चिंतन करके आदिवासियों को उनके मूल अधिकारों जो संविधान में सुरक्षित है उसके साथ-साथ उनके मालिकाना हक को भी बचा कर रखना है। आज भी उनके क्षेत्र में जहां उनकी आबादी अधिक है उनको मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे है जहां तक चुनावों के समय वोटिंग मशीन तो पहुंच जाती है लेकिन मूलभूत सुविधा नहीं पहुंच पाती आज हम आजादी को ७९ वें अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे है तो संस्कार के साथ साथ प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि जो आदिवासी समुदाय आज तक भी मुख्यधारा में नहीं जुड़ पाए हैं उन्हें जोड़ जाए और उनके लिए सभी आवश्यक मूलभूत सुविधाएं जिनकी उन्हें आवश्यकता है, उन्हें उपलब्ध करवाई जाएं और जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धरती की आभा को संजो कर रखा है। जिनकी वीरता, साहस, शौर्य का लोहा इतिहास के पत्रों में अंकित है। आदिवासियों को आज विश्व के प्रत्येक युवा को जानने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने २०१९ को आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है। अगस्त, २०१९ को विश्व आदिवासी दिवस की २५ वीं वर्षगांठ अर्थात रजत जयंती महोत्सव के रूप में संस्था भर में जोर-शोर से मनाया गया महोत्सव है। २०१९ को आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में भी मनाया गया है। २०२२ से २०३२ को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दसक के रूप में घोषित किया गया है। जिससे संसार के आदिवासियों की मातृभाषाओं, बोलियों, संस्कृति इतिहास और विविध ज्ञान सामग्री को लिखित रूप में संरक्षित और सुरक्षित किया जा सकें। आदिवासी लोगों को भारत के मूल निवासी माना जाता है। यह समाज आज भी आर्थिक और शैक्षिक विकास से काफी पीछे है। मूल निवासी होने के बावजूद इस समुदाय का समुचित विकास नहीं हो सका। इसे समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए पहली बार वर्ष १९९४ में विश्व आदिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में २३ दिसंबर १९९४ को यह प्रस्ताव पारित किया गया कि पूरे विश्व में ९ अगस्त का दिन विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। वर्ष १९९५ से २००४ के दौरान यह दिन विश्व आदिवासी दिवस के पहले अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में मनाया गया। और साल २००५ से २०१४ के दौरान विश्व आदिवासी दिवस मनाने का दूसरा अंतर्राष्ट्रीय दशक था। आदिवासी लोगों के प्रति सरकार और समाज में जागरूकता बढ़ाने, उनके आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और उन्हें शैक्षिक स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है। आज हम सभी देशवासी यह संकल्प लेवें कि संविधान में वर्णित अधिकार व हकों को आदिवासियो दिलाकर रहेंगे।
निवासी : मोतीगढ़, बीकानेर (राजस्थान)
सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक, रा.उ.मा.वि. बीकानेर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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