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तानाशाह के पास

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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अपने वफ़ादार
वर्दीधारी सैनिक थे,
अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि थे,
अपने अमले-चाकर थे,
अफ़सर-मुलाज़िम-कारकुन थे,
अपनी न्यायपालिका थी,
अपने शिक्षा-संस्थान थे जहाँ
टैंक खड़े रहते थे
और तानाशाही तले
जीने की शिक्षा दी जाती थी।
पर तानाशाह की
सबसे बड़ी ताक़त
हिंसक भेड़ियों के
झुण्ड जैसी वह भीड़ थी
जो तानाशाह के लोगों ने
बड़ी मेहनत से तैयार की थी।
इसमें समाज के अँधेरे
तलछट के लोग थे
और सीलन भरे उजाले
के पीले-बीमार
चेहरों वाले लोग थे
और जड़ों से उखड़े हुए
सूखे-मुरझाये हुए लोग थे।
यह भीड़ तानाशाह के इशारे पर
किसीको बोटी-बोटी
चबा सकती थी,
सड़कों पर उन्माद का
उत्पात मचा सकती थी,
बस्तियों को खून का
दलदल बना सकती थी।
सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे
का इंतज़ार करती थी।
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है।
एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है!

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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