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Tag: शिवदत्त डोंगरे

प्रेम क्या है
कविता

प्रेम क्या है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम क्या है क्या ये किसी रिश्ते का नाम है या इसका संबंध देह से है नहीं 'प्रेम' तो इक 'अनुभूति' है वह मोहताज नहीं रिश्तों का क्योंकि रिश्ते तो अपना मूल्य मांगते हैं मूल्य न मिलने पर सिसकते, टूटते, बिखरते हैं फिर यहाँ प्रेम कहाँ. क्या प्रेम देह से जुड़ा है नहीं जिस तरह पूजा के बाद अमृत, पानी नहीं रह जाता तो प्रेम का पर्याय देह कैसे हो सकता है? प्रेम का न कोई मूल्य होता है न ही कोई दैहिक सम्मोहन प्रेम इन सब से परे है प्रेम इबादत है. प्रेम इन्सानियत है प्रेम बन्दगी है प्रेम भक्ति है प्रेम विश्वास है इसमें ना खोना है न पाना है बस करते चले जाना है. फिर ये प्रेम मनुष्य का मनुष्य से हो या मनुष्य का ईश्वर से हो या ईश्वर की किसी कृति से हो. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक...
प्रेम किया नहीं जाता
कविता

प्रेम किया नहीं जाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम में मांगा नहीं जाता प्रेम में दिया जाता है प्रेम किया नहीं जाता प्रेम जीया जाता है प्रेम में स्वार्थ नहीं होता प्रेम में परमार्थ होता है प्रेम को मापा नहीं जाता प्रेम को साधा जाता है प्रेम एक तरफा भी होता है प्रेम दूर से भी निभाया जाता है अखंड प्रेम बार-बार नहीं होता प्रेम एक ही बार में संपूर्ण होता है प्रेम पागल नहीं होता प्रेम तो चैतन्य संक्रिया है प्रेम को सोचा नहीं जाता प्रेम एक सतत प्रक्रिया है प्रेम में किसी बांधा नही जाता प्रेम में इंसान खुद बंध जाता है प्रेम में सतत प्रवाह होता है प्रेम को कहीं रोका नहीं जाता प्रेम में गमगीन नहीं होना पड़ता प्रेम में पूर्णत: लीन होना होता है 'तू नहीं तो कोई और' अ-प्रेम है प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें ? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
मैं एक सिपाही हूं
कविता

मैं एक सिपाही हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो जीता है देश के लिए, सिपाही जो मरता है देश के लिए, सिपाही फिर भी गुमनाम हैं। मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो एक शिक्षा हैं, सिपाही जो एक प्रेरणा हैं, देश पर न्यौछावर होने के लिए, फिर भी उसे स्थान नहीं मिलता दिलों में, इतिहास के पन्नों में भी सिपाही का नाम नहीं, रंगीन हो जीवन में ऐसी कोई शाम नहीं। मैं एक सिपाही हूं मेरा नाम मिलेगा सरहद पर दूर कहीं रेगिस्तानों में, पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में, अनजानी सी बारुद गोली में, और मिलेगा नाम देश के सुनहरे भविष्य की नींव में, फिर भी सिपाही गुमनाम हैं ... मैं एक सिपाही हूं जिसकी कल तक जय-जयकार थी, तब देश को मेरी जरूरत थी, आज मुझे भुला दिया है, जब मुझे देश की जरूरत है, कल तक कंधों पर मेरे देश की सुरक्षा का भार...
मैं आदमी हूँ
कविता

मैं आदमी हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं आदमी हूँ मुझे परेशानी भी आदमी से ही है मैं परेशान भी आदमी के लिए ही हूँ क्योंकि मैं आदमी होने से पहले किसी जाति का हूँ किसी धर्म का हूँ किसी संप्रदाय और विचारधारा का हूँ जिससे कारण मुझे आदमी आदमी नहीं बल्कि दिखाई देता है तो कोई विरोधी कोई दुश्मन, कोई ऊँचा, कोई नीचा कोई काला तो कोई गोरा हाँ मैं आदमी हूँ। मुझे आदमी होने का मूल्य पता नहीं इसलिए मेरा दुःख कभी जाता नहीं. मेरे विचार ही मेरे दुःख है इस बात को मैं समझता नहीं. खुद से ही अनजाना हूँ. इसलिए आदमी होकर भी आदमी से ही बेगाना हूँ. सुखी मैं, जानवरों जितना भी नहीं पर सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हूँ हाँ मैं आदमी हूँ। आदमी होने की कीमत कुछ इस तरह मैंने अदा की है आदमी होकर आदमी को ही आदमी से जुदा की है क्योंकि मेरी खुशी ...
स्पर्श
कविता

स्पर्श

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सुनो ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, संवेदना की आख़िरी परत तक, जिसकी पहुँच हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी निर्मल चेतना. घेरे मन और मगज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी मीठी वेदना, अंतर्मन की समझ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसके पार तुम्हें देखना, मेरे लिए सहज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी अनुभूती के लिए. उम्र भी एक महज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसमें सूर्य सी उष्मा हो जिसमें चांद सी शीतलता जिसमें ध्यान की आभा हो जिसमें प्रेम की कोमलता जिसमें लोच हो डाली सी जिसमें रेत हो खाली सी जिसमें धूप हो धुंधली सी जिसमें छाँव हो उजली सी जो तन मन को दे उमंग नयी जो यौवन को दे तरंग नयी जो उत्सव बना दे जीवन को जो करूणा से भर दे इस मन को ऐसा स्पर्श दे दो मुझे.... परिचय :- शिवदत्त ड...
नारीत्व
कविता

नारीत्व

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आ गए तुम? द्वार खुला है अंदर आ जाओ। पर तनिक ठहरो ड्योढी पर पड़े पायदान पर अपना अहं झाड़ आना। मधुमालती लिपटी है मुंडेर से अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना। तुलसी के क्यारे में मन की चटकन चढ़ा आना। अपनी व्यस्ततायें बाहर खूँटी पर ही टाँग आना जूतों संग हर नकारात्मकता उतार आना। बाहर किलोलते बच्चों से थोड़ी शरारत माँग लाना। वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है तोड़ कर पहन आना। लाओ अपनी उलझने मुझे थमा दो तुम्हारी थकान पर मनुहारों का पँखा झल दूँ। देखो शाम बिछाई है मैंने सूरज क्षितिज पर बाँधा है लाली छिड़की है नभ पर। प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर चाय चढ़ाई है घूँट घूँट पीना। सुनो! इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : दे...
मैं शून्य हूँ
कविता

मैं शून्य हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मै शून्य हूँ अपूर्ण हूँ पूर्ण होने की कोई चाह भी नहीं मेरा ख़ुद का कोई वजूद नही कोई अहंकार नहीं कोई आग्रह भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं है कोई चाहत भी नहीं है मै तनहाई में भी अकेला नहीं होता और भरी महफिल में भी मेला नहीं होता मेरा कोई मोल नहीं है मै सत्ता के गलियारों मे नहीं मिलता मैं दुनिया के बाजारों मे नहीं मिलता मैं तपस्वी के मन मे मिल सकता हूँ मै निर्जन वन मे मिल सकता हूँ मैं आकाश के सुनेपन में मिल सकता हूं मै किसी के अकेलेपन मे मिल सकता हूँ तुम शून्य को अपने मे से घटा भी दोगो तो तुममे कुछ कम नहीं होगा हाँ तुम चाहो तो मुझे अपने में मिला सकते हो कुछ मै तुम में जुड़ जाऊंगा कुछ तुम मुझ में जुड़ जाना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
संवादहीन जो …
कविता

संवादहीन जो …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* संवादहीन जो मौन खड़ा है अंधियारे में ये कौन खड़ा है आकुल प्रश्न ये बहुत बड़ा है ये सत्य, जो स्वीकार नहीं है मत सोच ये तेरी हार नहीं है प्रयास रहे तो स्वर्ग धरा है पाप पुण्य का लेखा जोखा करो तुझको है किसने रोका तपे वही जो स्वर्ण खरा है पीड़ा का परिसीमन क्या है जीवन क्या है, मरण क्या है समयचक्र में सभी पड़ा है मृत्यु द्वार पर जीवन नाचे पाप पुण्य के किस्से बाँचे युग युग की यही परंपरा है विकट प्रश्न ये बहुत बड़ा है परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
सैनिक का प्रेम
कविता

सैनिक का प्रेम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हाथों में यह कलम ना होती, निकलते न ये भाव, आंखें कभी ना रोती तन्हाई हमें यूं न चुभती, यदि तुम मेरे पास होती आने वाला पल याद तुम्हारी लाता है जाने वाला पर टीस पीछे छोड़ जाता है जितना चाहा तुम्हें भूलना उतना ही तुम याद आती हो तुम्हें याद करने की जरूरत ना होती यदि तुम मेरे पास होती तुम्हें कुछ लिखना चाहा, जब भी मैंने भावों को शब्दों में ना बांध पाया दिल की आवाज सुन लेती आंखों की जुबान समझ लेती यदि तुम मेरे पास होती बाहों में तुझे ले लूँ, चाह ये बार-बार होती दामन में तेरे, सर रख रोता सिंदूर मांग में तेरी भर देता सोचते-सोचते दिन कितने गुजर गए हालत हमारी यूं ना होती यदि तुम मेरे पास होती।। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा...
मेहमान बन के
कविता

मेहमान बन के

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेहमान बन के आये थे, मकीं बनके बैठ गये, आसमां के चंद टूटे हुए क़तरे, ज़मी बनके बैठ गये, वैसे तो ऐसा कोई दर्द न था, जाने क्यों अश्क़ पलकों पे नमीं बन के बैठ गये, बस दो कदम साथ चलने का ही वादा था, कब कैसे वो, हमनशीं बन के बैठ गये, शरिकेग़म थे वैसे तो वो मेरी हर नफ़स के, भरी बज़्म में न जाने क्यों वो, अज़नबी बन के बैठ गये। ठहाकों से भरी बज़्म लूटने वाले, क्यों अचानक इतनी सादगी बनके बैठ गये। भले बुरे की परख अब वो ही जाने, मुझे परखने के लिए, पारखी बनके बैठ गये। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
वहम होता है
कविता

वहम होता है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वहम होता है, सितारे कभी टूटा नहीं करते, उड़ा के शिगूफे ख़ुद ही, लूटा नहीं करते, कसैले होते हैं, अक्सर शिकवों के वार, कड़वी बातों से कभी मुंह जूठा नहीं करते, लौट के फिर आ मिलता है, अपना ही कर्मदण्ड, आसमां की तरफ मुँह करके, कभी थूका नहीं करते, उमर भर का लेखा जोखा होता है, यूँ तिनको को संभालना, बना के अपना ही आशियाना, ख़ुद ही फूंका नहीं करते, वज़ह लापरवाही है या और ही कुछ शायद, यूँ हमसफर तो कभी, रस्तों पे छूटा नहीं करते, माना के शिकवे गिलों का बोझ नहीं सँभलता, जान बूझ कर तो, अपनी छाती कूटा नहीं करते, बादलो जी भर के तर कर दो, ज़मीं का जिस्म, बिना नमीं के तो ज़मीं में, अंकुर फूटा नहीं करते। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
तेरा मेरा इतना नाता
कविता

तेरा मेरा इतना नाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं परिपक्व एक बुढ़ापा तू मुस्काता बचपन सा मैं ढलती एक रात हूँ तू उगता सूरज प्यारा मैं प्यासी बंजर धरती तू बरसता सावन सा आया तेरा मेरा इतना नाता मैं माटी का दीपक तू उजली बाती सा मैं कलकल बहती नदिया सी तुझमे जोर समुंदर का सारा तेरा मेरा इतना नाता मैं एक सूखा फूल हूँ तू नन्हा कोपल का जाया मैं हूँ कड़वी नीम निम्बोली तू मीठा शहद सा भाया तेरा मेरा इतना नाता मैं पल पल बीता लम्हा हूँ तू नए साल सा इठलाता मैं हूँ एक खत्म कहानी तू ख्वाब सा सबको भाता तेरा मेरा इतना नाता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
वही तो नहीं …
कविता

वही तो नहीं …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जिसे देख के बहार आयी थी मेरे मे निखार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। जब ये घटना -घटी तुम थे नायक मै थी नटी निहारती रही कटी सी कटी रह गयी आंखें फटी सी फटी मैं हिस्सो में अब बंटी ही बंटी मन ने माना मै पटी तो पटी उसके लिए स्वर्ग से उतार आयी थी मुर्तिवत खड़ी जैसे उधार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। सांसे मानों थम सी गयीं निगाहें उसपे जम सी गयी मैं थोड़ी सहम सी गयी उसपे जैसे रम सी गयी गुस्सा भी अधम सी गयी ज़िंदगी से ग़म सी गयी मैं लिए जिंदगी के सपने हजार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। मेरे खुशी का ठिकान नहीं था उस जैसा कोई पहलवान नहीं था मुझ जैसा वो नादान नहीं था उसका पटना आसान नहीं था वैसा कोई महान नहीं था अब मेरा कोई अरमान नहीं था उसके मिलने से पहले मैं बीमार आयी थी कहीं तुम वह...
कश्मकश आम इन्सान की
कविता

कश्मकश आम इन्सान की

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* न जानवर हूँ न हैवान हूँ दुख है मैं इन्सान हूँ अर्थ बदल गया ईमान जल गया मैं पत्थर नही हूँ. इसलिए ठोकर खाता हूँ दिल है.. इसलिए टूट जाता हूँ. मैं सच बोलता हूँ तो साथ छोड़ता है इन्साफ वक्त का पाबंद हूँ मगर उपलब्धी का हकदार नही. कर्तव्य में विश्वास है मगर प्रशंसा का अधिकार नही दिखावे से जलता हूँ इज्ज़त पे मरता हूँ धोखे का भय है दोस्ती से डरता हूँ गली में टहलता हूँ हर दरवाजा़ आज बन्द है मतलब के लोग हैं इस बात का रंज है. दुख का साथी नही सुख का ढोल है बेटे का बाप से भाई का भाई से दौलत का खेल है बाप के मरनें तक रिश्तों में मेल है सच पे जी सकता नही झूठ सह सकता नही न ढल सका मैं कभी इसका मुझको खेद है बदल गया हर चीज़ क्यों इसमें कोई भेद है हर लोग आज़ हैवान हैं गम तो है इस ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो झोंक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है शिकार मानसिक-शारीरिक प्रताड़नाओं और अपने परायों से बलात्कार की हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता संस्कृति ...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भी मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
आज की नारी
कविता

आज की नारी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* नारी शक्ति, नारी देवी, नारी पूजा है नारी कर्म की देवी, जिसका कर्म ही पूजा है नारी शक्ति, नारी भक्ति, नारी एक ज्वाला है, नारी गर है संग तो रब रखवाला है, नारी निर्मल इतनी जितना पावन नर्मदा का पानी है नारी सिर्फ दो शब्द नहीं खुद एक कहानी है . नारी जितनी सहनशील दुनिया में कोई नहीं सुन नारी की गाथा प्रकृति सदियों सोई नहीं कल्पना चावला, किरण बेदी, नहीं किसी से कम है इंदिरा का दम क्या किसी गौतम से कम है आज की नारी के कदमों में फौलाद सा दम है चाहे तो आजमा लो हौसला नहीं किसी से कम है हर परिवर्तन को नारी ने सबसे पहले स्वीकार किया अपने विवेक का परिचय दें हम सब को अंगीकार किया प्रगति पथ पर नारी गतिमान इस पर तुम विचार करो कमजोर आंकने वालों इस चुनौती को स्वीकार करो नारी का सम्मान करो नारी का सम्म...
वीर सिपाही
कविता

वीर सिपाही

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। जब याद तुम्हारी आयेगी, आंखो से पानी आयेगा। राखी लेकर रोए बहना, कौन उसे समझाएगा । मिलन की तमन्ना बच्चों की, उसको न भूल जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। आना पापा लौटकर, बेटी के आँसू कहते है। छोड़ कर जब से आप गये, टूटे टुटे से रहते हैं। लेकर तिरंगा हाथों मे, आगे बढ़ते जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। जाते जाते कह गये थे बच्चों से, खिलौना लाने को। खिलौना चाहे मत लाना, पर कह दो जल्दी आने को। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। पत्नी से भी कहा था होली पर आने को । रंग बिरंगी चूडियां चाहे न लाना, पर कह दोसजने सजाने को, ...
मैं अभी हारा नहीं
कविता

मैं अभी हारा नहीं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* इतना भी नकारा नहीं हूँ, दीन बेचारा नहीँ हूँ, मै धधकती एक ज्वाला, भोर का तारा नहीँ हूँ, सोच लो, समझ लो, मै अभी हारा नहीँ हूई। तुम कहाँ पहचान पाएँ, हम कई बार आये, कभी ईसा तो कभी सुकरात बनकर बिष पिया और मुस्कराए, राख हो जायें जो जलकर, मै वो अंगारा नहीँ हूँ, सोच लो समझ लो, मै अभी हारा नहीँ हूई। मै महाराणा की हिम्मत, मै शिवाजी की वसीयत, मै भगतसिंह की हूँ छाया, बुद्ध गौतम की नसीहत, मै गर्जता एक सागर, रेंगती धारा नहीँ हूँ, सोच लो समझ लो, मै अभी हारा नही हूँ। फिर उठी गम की घटाएँ, फिर हुई बोझिल दिशाये, आसमां सर पर उठायें, फिर चली पागल हवाएँ, मै जीवन की इक हकीकत, व्यर्थ का नारा नहीँ हूँ, सोच लो, समझ लों मै अभी हारा नहीँ हूँ। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : द...
जंग इसी को कहते हैं
कविता

जंग इसी को कहते हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेरी बात पर गौर देकर कहना कुछ लोगों का है कहना मीडिया भी यही कहता और दिखाता है की सेना ने कई सालों से जंग नहीं देखी है। कोई इनकों लेकर आये और जम्मू कश्मीर तथा सीमांत का दौरा कराये जहां पर हजारों की गिनती मे सैनिक घायल होते है जो आंतकवादियो और देश द्रोहियों से लड़ते हैं। इनके परिवार गम के आसूं पीते है मुसीबत और तंगी की जिंदगी जीते हैं और दोस्तों आप कहां रहते हैं शायद जंग इसी को कहते हैं। आइये आपको सियाचिन की सैर कराये बर्फ से ढके हुए पर्वत व नदियाँ दिखाये जहाँ का तापमान माइनस ४० डिग्री सेल्सियस है क्या आप जानते हैं ? लेकिन हमारा सैनिक यहां पर निरंतर रहता है और दुश्मन की गोलियों को अपने सीने पर सहता है इनमें से आधे तो सर्दी का शिकार हो जाते है सीमा से अंदर न आ जाये दुश्मन इसलिए कई तो अपने हाथ या पैर गंवाते है शा...
पत्थर और माटी
कविता

पत्थर और माटी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************** पत्थर गिरा माटी पर माटी हो गई चूर पत्थर हुआ घमंड से भरपूर बोला अकड़ कर, देखा मेरा बल तुममें-मुझमें हैं कितना अंतर। माटी बोली सच कहा तुमनें पत्थर हैं बड़ा मुझमें और तुममें अंतर, मैं माटी तुम हो पत्थर, मैं देती जीवन जड़-चेतन कों, तुमसे मिलती केवल ठोकर, मैं खेतों में फसल ऊगाती, बागों में फू़ल महकाती, हरी-भरी धरती करती। पेड़-पौधे, फल-फूल, धरती का हर प्राणी, तुमसे होता आहत, रह जाते सब मन मारकर तुम देते केवल ठोकर, तुममें-मुझमें है अंतर मैं देती जीवन, तुम देते केवल ठोकर। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच प...