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कश्मकश आम इन्सान की

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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न जानवर हूँ न हैवान हूँ
दुख है मैं इन्सान हूँ
अर्थ बदल गया
ईमान जल गया

मैं पत्थर नही हूँ.
इसलिए ठोकर खाता हूँ
दिल है.. इसलिए
टूट जाता हूँ.

मैं सच बोलता हूँ
तो साथ छोड़ता है इन्साफ
वक्त का पाबंद हूँ मगर
उपलब्धी का हकदार नही.
कर्तव्य में विश्वास है मगर
प्रशंसा का अधिकार नही

दिखावे से जलता हूँ
इज्ज़त पे मरता हूँ
धोखे का भय है
दोस्ती से डरता हूँ

गली में टहलता हूँ
हर दरवाजा़ आज बन्द है
मतलब के लोग हैं
इस बात का रंज है.

दुख का साथी नही
सुख का ढोल है
बेटे का बाप से
भाई का भाई से
दौलत का खेल है
बाप के मरनें तक
रिश्तों में मेल है

सच पे जी सकता नही
झूठ सह सकता नही
न ढल सका मैं कभी
इसका मुझको खेद है
बदल गया हर चीज़ क्यों
इसमें कोई भेद है

हर लोग आज़ हैवान हैं
गम तो है इस बात का
मर रहा इन्सान है.

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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