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दीवारें

सूर्यपाल नामदेव “चंचल”
जयपुर (राजस्थान)
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दीवारें वही घर बनाती हैं जो मिलकर खड़ी होती है।
तनहा पड़ी ईंटों की कोई पहचान नहीं होती।।
नींव भले गहरी हो पर नफ़रते जब उनमें बोती है।
गगनचुंबी नाम हो कर भी कभी आसमान नहीं होती।।

तोड़ द्वेष की दीवारें आज नया विश्वास लिखें,
हाथ दिलों पर रख कर प्यार का एहसास लिखें।
लकीरें खींच कर रिश्ते मोहब्बत के बदनाम किए,
दीवारों से ऊपर उठकर नभ में उड़ते परवाज़ लिखें।

दीवारें चौकस ही रहीं जब तलक दरवाजा एक दिखे,
खुशियां महफूज ही रही जो इरादे सबके नेक दिखे।
निज स्वार्थ की खातिर झरोखे तुम ही बनाया किए,
वो निगेहबान दीवार भी छलनी कैसे दर्द को लिखें।

दीवारें सख्त जो है ये पुरानी सोच तुम्हारी दिखे,
खड़ी कहां इनको करें ये जरूरत हमारी दिखे।
घर भी इन्हीं से और नफरत भी इन्हीं से है,
आओ सजाकर इनको प्यार का संदेश लिखें।

परिचय :- सूर्यपाल नामदेव “चंचल”
शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट)
व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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