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अब स्वीकर करो हमको

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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अब स्वीकर करो हमको
जीने का अधिकार मिला है,

हम करते हैं स्नेह तुमसे …
आक्रमक नहीं है हम,
असीम … अनंत प्रेम, मानव से
फिर क्यूँ प्रहार होता हम पर!!

सदा निवेदन रहा हमारा
हमे आजादी से जीने दो!
खुली हवा में हम सबको
स्वच्छंद किलोल करने दो!!

शीतल मलय बन समा पाए
तुम्हारे हृदय स्थल में,
इतनी सी अभिलाषा है मन मे
हमको भी थोड़ा स्नेह दे दो!!

हम हैं निश्छल-कोमल, पावन
मृदुलता से भरे हुए,
बस एक बार अपने दिल मे
थोड़ी सी जगह देदो!!

यह क्रोध नफरत का सैलाब जो
तुमसे होकर हम पर गुजरता है,
उसको स्नेह के बंधन मे
अब तो बंध जाने दो !!

स्नेह-करुणा पाकर तुमसे
जी उठें हम इस जग में,
माणिक्य मोतियों की भाँति
हमको भी समाज मे सजने दोl

मैं ऋणी रहूँगा आजीवन, अविराम,
तुम्हारा कर्म बनकर,
दुआ ही दुआ दे जाऊँगा
परमेश्वर का उपहार बनकर!

जीवन न्यौछावर कर दूँगा
इतना हम पर विश्वास करो
ना छू पाए कोई आफत तुमको
हम जीवन का कर्ज चुका देंगे!!

हर बार मिलूँगा तुम्हें वही
जहाँ मिले धरती और गगन
क्षितिज की लालिमा ओढ़े, तुम पर
इंद्रधनुषी रंग बरसा दूंगा!!

रखना अपनी दुआओं में
बस इतनी सी है अभिलाषा

अब ना हो कोई क्रूर
प्रहार हम जीवों पर
बस ये छोटा सा
विश्वास हमे दे दो!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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