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जागना-चेतना-मरना

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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जागना

संगीत छन रहा हो
अँधेरे की जाली से
रोशनी के मानिन्द
राग.
तुम हो जाओ
विराग.
संगति को रहने दो
निर्लिप्त.
नादब्रह्म मौन
पोर-पोर से
अनुभव करो
जागने का आनंद I

चेतना

जिज्ञासा मरती है
मायूसी छोड़कर.
प्रेम मरता है
उदासी छोड़कर.
मनुष्य मरता है
राख छोड़कर
और
स्मृतियाँ शून्य.
हाँ, तारीखें
मरती हैं
तारीखें छोड़कर
यूँ रिसता है
कालपात्र
और सबकुछ
समा जाता है
धरती के रहस्यमय
हृदय में.

मरना

घराना अलग
आलापचारी अलग
लयकारी अलग
आघात की गति
और वज़न अलग.
फिर भी यह
एक ही बंदिश
आ रही है
अलग-अलग रागों में
नए-नए रूप धरकर.
अलग भावस्थिति
अलग स्वर-रचना
शब्दार्थ-गायन का
अलग स्वर-विलास
अलग विस्तार.
मुक्त करो, मुक्त करो
खुद को इस बंदिश से
अन्यथा मैं मर जाओगे
जन्मों तक यूँ ही
मरने के लिए.

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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