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मुकद्दर

डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
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मेरे मुकद्दर में है
“मुकद्दर” पर कविता लिखना।
और उसको
प्रकाशन के लिए भेजना।
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मिलता वही है हमें
जो मुकद्दर में लिखा होता है।
फिर इंसान क्यों अपने
मुकद्दर पर रोता है।
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हमारे कर्मों से ही
हमारा मुकद्दर बनता है।
अच्छा करने पर
हमें अच्छा ही मिलता है।
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जो हमारी किस्मत में लिखा हो
वो मुकद्दर कहलाता है।
यह जन्म के समय
विधाता द्वारा लिखा जाता है।
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कभी किसी की लॉटरी लगती है
और गरीब अमीर बन जाता है।
यही सब
मुकद्दर कहलाता है।
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लोगों की दुआओं से
आपका मुकद्दर बदल सकता है।
आपको रंक से राजा
बना सकता है।
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केवल मुकद्दर के
आसरे मत बैठे रहिये।
कुछ अच्छे काम कर अपनी
सफलता की कहानी कहिए।
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तुमको मैने अपना
“मुकद्दर” समझा था।
लगता है अब
मुकद्दर ने साथ छोड़ दिया।
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परिचय : डॉ. प्रताप मोहन “भारतीय”
निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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