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चेतावनी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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हर ओर धुँआँ ही धुँआँ मात्र संयोग नहीं,
परिणाम निकल कर आए हैं आजादी के।
चल पड़ी तोड़ कर अनुशासन यह आबादी,
जिस पथ पर पसरे राग बड़ी बर्बादी के।।

कहने को कुछ भी कहो आपकी मर्जी है,
शायद कुछ भाग्य उदित हों अवसरवादी के।
पर हम सचेत करते हैं तुम को यह कहकर,
ये लक्षण हैं उन्मादी और फसादी के।।

यूँ स्वतन्त्रता का अर्थ नहीं स्वच्छन्द रहो,
जीवन संयम के साथ बिताना जीवन है।
खुद पर कानूनों नियमों का अंकुश न रखा,
तो पराधीन बाहों में जाना जीवन है।।

सुनने में कड़ुआ लगे-लगे तो लग जाए,
जनता के हक का हरण, बहाना जीवन है।
चल रहीं चालबाजियाँ उधर अपने हित में,
युग के सुधार का नाम निशाना जीवन है।।

नीतियाँ अधमरीं पड़ीं स्वार्थ के वशीभूत,
इस त्याग भूमि पर क्या जाने क्या हवा चली।
भर लिए खजाने लोगों ने कर लूटमार,
बढ़ रही निरन्तर और निरंकुश छला- छली।।

मिल रहीं कैदियों को सुविधाएँ जेलों में,
निर्भीक घूमते हों अपराधी गली-गली।
लग रहीं अपाहिज सरकारें इन वोटों से,
बन रहे दरिन्दे देशभक्त नित बाहुबली।।

वे जियो और जीने दो वाले ध्येय कहाँ,
खूँखार ज़िन्दगी अच्छी है यह हवा चली।
हो कष्ट किसी को हमको क्या वह जिए मरे,
इस विकट सोच की विद्या फूली और फली।।

लग रही दया की कोख हरी होना घातक,
कुछ को करुणा की आवभगत इस तरह खली।
लग उठी रोशनी ही काली जब आँखों को,
दिख उठी दुष्ट को दानवता में कनक कली।।

हर ओर बिलखते नौनिहाल बच्चे देखे,
अब तलक चीखती बेटी का स्वर मन्द नहीं।
हर रोज बुढ़ापा देख रहा क्यों टुकुर-टुकुर,
मेहनत करने के बाद कहीं आनन्द नहीं।।

सड़कों पर बैठे नौजवान को काम नहीं,
क्या बात गरीबी से हटते पैबन्द नहीं।
हर ओर बढ़ रही भूख पेट में आग लिए,
हर ओर प्यास का घोर शोर तक बन्द नहीं।।

भूखे प्यासे मर गए हजारों वे पुरखे,
जिनकी मेहनत को छीन विदेशी पले बढ़े।
स्वाधीन हुए थे बलिदानों के बल पर हम,
जिनके लालों के लाल मात्र चातुर्य पढ़े।।

क्या इसीलिए मन मार सहीं थीं पीड़ाएँ,
क्या इसीलिए अपराध बिना फाँसियाँ चढ़े।
क्या इसीलिए भोगा था नर्क बिना मर-मर,
क्या इसीलिए जेलों से भी काढ़े न कढ़े।।

तो सुनो तोड़ना मर्यादा अब ठीक नहीं,
आओ संयम से जिएँ कष्ट सहना सीखें।
किस तरह दूसरों की पीड़ा पर करुणा हो,
किस तरह उठाएँ बात स्वयं कहना सीखें।।

हर जाति वर्ग को मान मिले उत्थान मिले,
हम स्वार्थ त्याग कर बस्ती में रहना सीखें।
किस तरह बचाएँ स्वतन्त्रता एकता बढ़े,
निज मातृभूमि के लिए “प्राण” दहना सीखें।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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