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जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही

मुकेश सिंघानिया
चाम्पा (छत्तीसगढ़)
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जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही
हंसते गाते ही गुजर जाए जरूरी तो नही

मुश्किलों के साथ इसका है पुराना राब्ता
रात ना हो दिन ही दिन आए जरूरी तो नही

उम्र भर का साथ मिल पाना तो मुश्किल है बहुत
अब वफा हर वक़्त मिल जाए जरूरी तो नही

रात दिन में ही बदल जाते हैं रिश्ते आजकल
जिंदगी भर को निभा जाए जरूरी तो नही

दर्द अपना दर ब दर गाना नही अच्छा जरा
हर समय पर हँस के दिखलाएजरूरी तो नही

कब से आंखों में समंदर सा है इक ठहरा हुआ
इस वजह भीगी नजर आए जरूरी तो नही

कश्मकश जद्दोजहद में कैसे होती है बसर
चीख कर ये बात बतलाए जरुरी तो नही

आदमी जिंदा है गर तो दर्द भी होगा उसे
मुर्दा कुछ अहसास कर पाए जरूरी तो नही

परिचय :- मुकेश सिंघानिया
निवासी : चाम्पा (छत्तीसगढ़)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं


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