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किस कीमत पर

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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उसने कहा कि देखो
अवाम को उनसे
कितना प्यार है,
जरा उनकी कड़ी
मेहनत तो देखो
चारों तरफ बहार
ही बहार है,
दरअसल ठाठ था
राजसी राजाओं का,
जबकि जोर था
हर ओर फिजाओं का,
खाने को तरसते लोग,
औरों पर बरसते लोग,
गुजर रही थी जिंदगी
दान के दाने पर,
पहुंच जा रहे कई लोग
मौत के मुहाने पर,
छा गई है भुखमरी
की घटा घनघोर,
बढ़ गए हैं गरीब
कई कई करोड़,
बाहर ढिंढोरची
पीट रहा था ढिंढोरा
कर दी है हमने गरीबी दूर,
नहीं नजर आएगा
कोई भूखा मजबूर,
कोई पास आने
को तैयार नहीं,
परिस्थितियां
उन्हें स्वीकार नहीं,
पर है हल्ला सब तरफ
कि जोर शोर से
बज रहा है डंका,
मत रखो मन में
कोई सुबहा शंका,
धड़ल्ले से चल रहा
रोज स्तुति गान,
बांट रहे देशभक्ति
पर रोज रोज ज्ञान,
नजरों को बांध दिखा
रहा जादू जादूगर,
बो रहे हो जहर बताओ
किस कीमत पर।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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