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किसने कब सोचा था

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

कितनी शिद्दत चाहत से नव-पीढ़ी आती है सड़कों पर।
करते अरमान सुरक्षित भविष्य भी अति सुंदर चलकर।
घर शाला से सत्ता शासन सब नियम से लेता लोहा था।
सुनने सीखने मिली उमर में जीवन से मानो सौदा था।
फजीहत राह घटित आंसू हरेक छोटे बड़े ने पोंछा था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

ये भारत देश यहां बाएं से ही चलना प्रथम जरूरी हो।
उल्टे चलते बूढों बच्चों बड़ों की लत क्यों मजबूरी हो।
खुद की जान मिटेगी और बेकसूर अकारण खोना था।
राष्ट्र विकास की राह चले मगर गलतियों का रोना था।
वाहन चालन वक्त भटके प्रसंग में दिमाग ही ढोना था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

फिर मोबाइल के सुखद प्रवेश से जीवन ढांचा बदला।
वाहन चलने में शांति सुरक्षा खो देने का सांचा मचला।
फिर चालक के इर्द-गिर्द बस बातचीत का चोला था।
गर्दन से मोबाइल चिपकाए चला सवार क्या भोला था।
ट्रैफिक पुलिस की रोकथाम कुरुक्षेत्र रण का टोला था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

जैसे खुद जीवन से प्यार नहीं हर पग पर ही मनमानी।
फिर चालक भी पथ पे दाएं बाएं सतर्कता का अज्ञानी।
खुशियों की व्यर्थ कुर्बानी में नाफरमानी का मोर्चा था।
दुर्घटना पश्चात सभी गुट ने एक दूजे को ही कोसा था।
अनचाही बेबस मौत ने बेरहम बर्बादी पाला पोसा था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

गाना सुनते बड़े हुए कि हर कदम हादसों की भरमार।
कुछ तो आकर गए परलोक कुछ जाने को खड़े तैयार।
युवा स्टंट बाजी और अनियंत्रण का भड़का शोला था।
धरा पे जन्म सौभाग्य मिटा जो भविष्य की शोभा था।
काम करो जग में कुछ ऐसा कि हटे दूर जो धोखा था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।

सुखद जीवन अनमोल मिला तब हो गए बदरंग हालात।
गर अनहोनी निज हाथों में फिर होनी की क्या बिसात।
घरद्वार रिश्ते नाते समाज में कोहिनूर देश का खोया था।
चिड़िया चुगना जैसे पछताए कड़वा बीज क्यों बोया था।
होनी करामात में विवश मगर जीवन किस पर बोझा था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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