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साकार रूप लेता सपना

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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एक दिन मैं यूँ ही
सड़क पर गुजर रहा था,
रास्ते पर कुछ गिरा पड़ा था,
बीमार, भूख-प्यास, से निढाल,
सड़क के आध बीच लगा
जैसे मेरा स्वप्न पड़ा हो !!

एक श्वान था,
जीवित किन्तु
मरणासन्न स्थिति में!
आत्मा सहित अपनी
श्वास की तरह
समेत लिया स्वयं में!!

उस दिन बहुत कुछ
गिरा मेरे अस्तित्व से
मोह- माया, राग-द्वेष,
क्रोध- अहंकार,
तमाम संपत्तियां
भी मेरे जेब से गिरी थी,
मेरी गृहस्थी भी
गिरी थी उस दिन!!

मेरे पास था नन्हा जीवन
जिसकी आंखों में मुझे
मेरे सपने दिखाई दे रहे थे,
ममता- करुणा,
स्नेह से भरे जीवन
जीने का स्वप्न!

उसी दिन मैंने ईश्वर से
ऋग्वेद के चरवाहों की
करुणा-स्नेह और संरक्षण
मांगा जीवों के जीवन के लिए !
धरती से बस अपने
शरीर जितनी जगह मांगी,
प्रकृति माँ से हल जितनी
शक्ति से जुट सकूं खेतों में
नंदी देव की जगह
इतना सहनशक्ति मांगी !

प्रभु से मांगा मुझे मेरे
ज्ञान से ज्यादा शब्द और
सत्य से ज्यादा तर्क मत देना !
सत्य के सत्य से परिचित
कराया मुझे मेरे ईश् ने !

सपने पूरे हो
जाए ये जरूरी नहीं-,
सच्चाई सदैव निर्मम
और कठोर होती है,
वो हर सपने की
परिक्षा लेती है,
जो स्वप्न उसकी
कसौटी पर खरा ना उतरे
उसे बेदर्दी से तोड़ देती है!!

मैं भी कई बार टूटा-जुड़ा,
टुकड़े टुकड़े हुआ वजूद मेरा,
किन्तु मेरे लक्ष्य और
स्वप्न ने हिम्मत
का साथ नहीं छोड़ा !
पवित्र प्रण जो किया था …
“जीवों को जीवन
जीने की आजादी का!!”

प्रतिदिन विषमताओं
ने मेरा स्वागत किया
फिर भी मैं अडिग खड़ा रहा
ईश्वर द्वारा प्रदत्त
परीक्षाओं हेतु कि,
हर जीव के अन्धकार भरे
जीवन मे खुशियाँ
की सहर लाना होगा!!

मेरे प्रभु तक मेरी
विह्वल पुकार पहुंची
मैं थक चुका था
किंतु हारा नहीं था,
प्रभु ने करुणा बरसाई,
जीवों के संरक्षण का
सपना साकार रूप ले रहा है !!

श्वान नगर आकार ले रहा है,
देवों के देव राहें
जटिल बनाते जा रहे हैं,
मैं भी कदम ताल कर रहा था,
आज भी चलायमान हूँ,
निरन्तर रहूँगा
“जीवों का मसीहा” बनकर!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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