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भीष्म–कृष्ण संवाद

सौरभ डोरवाल
जयपुर (राजस्थान)

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मृत्यु शैया पर लेटे-लेटे,
भीष्म के मन में ये विचार आया।
भीष्म ने श्री कृष्ण के सामने,
अपनी बात को दोहराया।।
क्या सही है और क्या गलत,
इसका उत्तर ना कोई दे पाया।
अपनी बात को अपने-अपने ढंग से,
सभी ने सही ठहराया।।
क्या सही है और क्या गलत,
हे माधव ! मुझको बतलाओ।
मृत्यु आने से पहले हे माधव,
मेरी दुविधा को दूर भगावो।।

इस पर श्री कृष्ण बोले-

हे पितामह भीष्म,
तुम्हारी दुविधा का
समाधान बतलाऊंगा ।
क्या सही है और क्या गलत,
इसका भेद बतलाऊंगा।।
पूछो राजन,
जो संशय हो मन में।
यूँ चिन्तित रहना अच्छा नही,
कुरुक्षेत्र के रण में।।

पितामह भीष्म बोले-

हे माधव! माना द्रोपदी का
चीर हरण पाप था।
पर इतना बताओ हे नाथ!
द्रोणाचार्य के साथ हुआ
क्या वो इंसाफ था।।

माना माधव पांड्वो के साथ हुआ
वो छल था।
पर माधव जो धृतराष्ट्र
और गांधारी ने खोया
क्या वो कर्मो का प्रतिफल था।।

माना नाथ! अभिमन्यु के
साथ हुआ वो धोखा था।
पर माधव निहत्थे कर्ण को मारा
क्या वो सही मौका था।।

इस पर माधव मुस्कुराये
और बोले-

हे गंगापुत्र सही-गलत
की चिन्ता करना
बेकार की बात है।
हर गलत भी सही है
यदि वो धर्म के साथ है।।
कुछ नही हुआ था रण में
ना कोई मारा गया था।
युद्ध लड़ा था मैने ही, मै ही जीता
और मैं ही हारा गया था।।

हे गंगापुत्र जन्म-मृत्यु तो
सिर्फ एक धोखा है।
ये जीवन केवल
मेरी भक्ति करने का मौका है।।

पूरी बात सुनने के बाद
पितामह मुस्कुराये और बोले-

जानता हूं माधव जहाँ आप हो
अन्याय नही होगा।
यदि सहमति है आपकी इसमें माधव
तो हर गलत भी सही होगा।।

परिचय : सौरभ डोरवाल
निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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