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लालच सिंहासन का

किरण विजय पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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कहे द्रोपती ! दुर्योधन से-
पतियों ने दावँ पर लगाया है,
उनकी तो मति मारी है गई,
तू क्यों दुष्टता लाया है।
भाई भाई के बंटवारे में
क्या दोष मेरा है, हे पांडव!
क्यो? दुशासन के निर्लज हाथों
मेरा क्यों चीर फडवाया है,
अपमानित मुझे कराया है।
क्यों आँख बचाते हो अर्जुन
क्यों गांडीव गिर रहा हाथो से।
क्यों भीम की गदा देखो छूट रही,
युधिष्टिर ने मौन को साध लिया?
हे गंगा पुत्र भीष्म पिता क्यों
कर्मों का तुम नाश करो।
दुशासन खींचो साड़ी को
इसे नग्न बिठाओ जंगा पर,
आज शर्त मेरी पूरी करना
कोई बीच ना आए नर नारी।
द्रोपती ने वस्त्र को पकड़ा है
पांवो से दबा यू जकड़ा है,
दोनों होंठ से दबा-दबा
उस शर्म को दांतों से पकडा है,
मन ही मन कान्हा को पुकारती है,
तुम आ जाओ हे बनवार
यदि लाज बहन की है प्यारी,
तुम आ जाओ हे गिरधारी।
एक साड़ी के टुकड़े के खातिर
आज कर्ज चुकाये बनवारी,
असंख्य साड़ी में द्रोपती सी
नारी साडी़ मै ढक दी थी।
हुआ दुशासन डेर वहां,
दस हाथीयो का बल वह चूर हुआ।
आ लाज बचाई गिरधारी
एक अबला को सबला कर दी है।
जब बजा धर्म का शंखनाद
असत्य पर सत्य के विजय हुई,
लहराई देखो धर्म धवजा,
श्री कृष्ण की वाणी से
देखो फूलो सी बिखराई गीता।

परिचय : किरण विजय पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४” से सम्मानित
४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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