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मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम

बाल कृष्ण मिश्रा
रोहिणी (दिल्ली)
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मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम
उगता सूरज तिलक लगाता
उज्जवल चंद्र किरण की वर्षा,
नतमस्तक हूँ तेरे चरणों में
तेरे चरणों में चारों धाम।
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।।

तेरी माटी शीतल चंदन,
जिसमें खेले खुद रघुनन्दन।
जिसमें कान्हा ने जन्म लिया,
कभी खाई, कभी लेप किया।

सीता की मर्यादा यहाँ,
यहाँ मीरा का प्रेम।

मन के दर्पण का तू दर्शन
तेरे आँचल में संस्कृति का मान।
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।।

कल-कल करती नदियां
अपनी संगीत सुनाए।
चूं-चूं करती चिड़िया
अपनी गीत सुनाए।

मातृभूमि की पावन धरा,
हर हृदय में प्रेम संजोए
काशी विश्वनाथ की आरती,
हर मन में दीप जलाए।
आध्यात्म की गहराई यहाँ
और विज्ञान की उड़ान।
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।।

दिव्य अलौकिक अजर-अमर
कंकर भी बन जाता यहाँ शंकर।

बलिदानों की गाथा तू ,
तू वीरों की पहचान।
जय-जय माँ भारती,
जय यह पवित्र धरा महान
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।।

परिचय :- बाल कृष्ण मिश्रा
निवासी : रोहिणी, (दिल्ली)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

1 Comment

  • Bal Krishna Mishra

    🌼 कविता का काव्यात्मक सारांश “ मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम ” 🌼

    यह कविता मातृभूमि को समर्पित एक भावपूर्ण वंदना है।
    सूर्य की ऊष्मा और चाँद की शीतल किरणों से पवित्र हुई धरती को प्रणाम करता  हुँ।
    यह वही भूमि है जहाँ राम और कृष्ण ने बाल-लीलाएँ कीं, और जहाँ सीता की मर्यादा व मीरा का प्रेम बसता है।

    इस पावन धरती की मिट्टी में संस्कृति, श्रद्धा और स्नेह का वास है।
    कल-कल बहती नदियाँ, चहचहाती चिड़ियाँ और काशी विश्वनाथ की आरती—सब मिलकर इसे दिव्य बनाती हैं।

    कुल मिलाकर, अपनी मातृभूमि के प्रति गहरा सम्मान, प्रेम और गर्व व्यक्त करता हुँ |
    “मातृभूमि (माँ), तुझे मेरा प्रणाम।”
    🙏

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