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मेरे सिया के श्रीराम

प्रतिभा दुबे “आशी”
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

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मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, मेरे सिया के श्रीराम।
उनके चरित्र चित्रण से सीखे, मर्यादा ये संसार।।

मोहिनी मूरत मेरे श्रीराम की, दर्शन मिले अपार।
पुलकित हो उठे मन मेरा, जब भी लूं राम का नाम।।

नहीं भेद करते कभी प्रभु, भावनाओं के साथ।
झूठे बेर सबरी के, प्रेम से खाते हैं मेरे श्रीराम।।

केवट की नौका को भी, किया प्रभु ने प्रणाम।
हाथ जोड़ के केवट को, दिया भवसागर से तार।।

आज्ञा से पिता दशरथ की, गए प्रभु वनवास।
ऋषि मुनि की सेवा कर, किया है प्रभु ने प्रवास।।

रावण पर उपकार किया, करके युद्ध अपार।
तरस रहा था मुक्ति को, श्रीलंका का सम्राट।।

आजीवन की साधना, लेकर शिव शंकर का नाम।
राम का रूप आनंद है, चरणों में जिनके चारों धाम।।

सूर्य देव आराध्य हैं, कुल दीपक हैं जिनके श्रीराम।
वनवासी कहो या घट घट वासी, ऐसे ही मेरे श्रीराम।।

मन में रहे सद्भावना, करते सदा ही सबका कल्याण।
मेरे प्रभु श्रीराम के मुख पर, आभा नारायण समान।।

परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे “आशी” (स्वतंत्र लेखिका)
निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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