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प्रति गीत (पैरोडी)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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क्या देश है देशी कुत्तों का? गलियों में गुत्थमगुत्थों का।
इस देश का यारों क्या कहना, अब देश में कुत्ते ही रहना।।

यहाँ चौड़ी छाती कुत्तों की, हर गली भौंकते धुत्तों की।
यह डॉग लवर का है गहना, कुत्ते को कुत्ता मत कहना।।

यहाँ होती भौं-भौं गलियों में, होती भिड़न्त रँगरलियों में।
जो तुम्हें यहाँ पर रहना है, हर हरकत इनकी सहना है।।

आ रहे विदेशी नित कुत्ते, रुक नहीं रहे ये भरभुत्ते।
ढोंगिया रोंहगिया झबरीले, कुछ कबरीले कुछ गबरीले।।

कहीं जर्मन है कहीं डाबर है, लगता कुत्तों का ही घर है।
न्यायालय का यह आडर है, देखो इनमें क्या पॉवर है।।

गलियों में नहीं मिलेंगे अब, एसी दिन-रात चलेंगे अब।
भोजन पायेंगे सरकारी, बन गए अचानक अधिकारी।

बन रहे शैल्टर होम यहांँ, कुत्तों की है हर कौम यहाँ।
बेशक गउएंँ काटी जाएँ, पर श्वान न पीड़ित हो पाएँ।।

दिलबर के लिये दिलदार हैं ये, दुश्मन के लिये दुसवार हैं ये।
मैदांँ में अगर ये डट जाएँ, मुश्किल है कि पीछे हट जाएँ।।

ये भौंकें तुम डरना सीखो, ये काटें तो मरना सीखो।
हर तरह सरेंडर करना है, बस इसी तरह से तरना है।।

बैठें मैडम की गोदी में, कुत्तों का नहीं विरोधी मैं।
तुम बहकावे में मत बहना, इस देश में कुत्ते ही रहना।।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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