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दिव्य प्रेम

डॉ. राजीव डोगरा “विमल”
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
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जब मैं शांत हो जाऊंगा
तुम अशांत हो उठोगे
हृदय के अंतकरण तक।

मेरा मौन
सदा के लिए तुम्हारे हृदय में
अशांति को विद्यमान कर देगा।

मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति
तुम्हारे लिए करना
कठिन से भी कठिन हो जाएगी।

नव नासिका का
भेदन करता हुआ मैं
कभी दशम द्वार के
परमानंद के अमृत कलश का
अमृत पीता हूँ।

तो कभी अनाहत मैं बैठे
अपने इष्ट का स्पर्श कर
हंसता मुस्कुराता हुआ
फिर इस धरा पर
चुपचाप लौट आता हूं।

अपने अतृप्त हृदय के लिए
तुम्हें सहस्रार का भेदन कर
दिव्य प्रेम सरिता में
डूब कर मुझ में
लीन होना ही होगा।

परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा “विमल”
निवासी – कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
सम्प्रति – भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।



 

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