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हाले बया खुद से खुद की जंग

पुष्पा खंगारोत
जयपुर (राजस्थान)
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अब डर नहीं लगता
मौत से,
मैंने जिन्दगी को
बहुत करीब से देखा है।
के डर नही लगता
किसी को खोने का,
मैंने खुद को करीब
से खोते हुए देखा है।।

के बिखरी हूँ टूटी हूँ,
खुद को बहुत समेटा है।
के अब चाहत ही खत्म
हो गई खुद से खुद की,
मैंने खुद को खोते हुए देखा है।।

के लुटे हुए मंदिरों की
सूनी दहलीज देखी है,
देखा है बिखरना मजारो का,
सूनी मांग देखी है।।
क्या कहूं अब किसी बात का
खोफ मुझे नही सताता,
हर रोज बिगडती हूँ ,
पर अब मुझे खुद का
हाल बताना रास नही आता,
के नही लगता अब इस
दुनिया में कोई अपना सा मुझे,
क्यों के इस अपनेपन को
मैंने बेगानों के रूप में देखा है।।
के अब डर नही लगता मौत से,
मैंने जिन्दगी को
करीब से जाते देखा है।।

परिचय : पुष्पा खंगारोत
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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