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इत्तेफाक

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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आज हमारा समाज
जिस जगह खड़ा है
मैं नहीं समझता
कि यह इत्तेफाक है,
लाखों करोड़ों जुल्म
ज्यादतियां सह कर
मुस्कुराने में कोई तो बात है,
शांत स्वभाव में हरदम रहना,
लेकिन अत्याचार
को नहीं कभी सहना,
लेकर शांत पड़े रहे दिल
में ज्वालामुखी की धधक,
जब चाहे प्रतिक्रिया
दे दे नहीं ऐसी सनक,
भविष्य की स्वाभाविक
चिंताएं लेकर,
करते हर काम अपनों
की बलाएं लेकर,
अच्छे कामों की
सराहना भी की
उज्जवल भविष्य
की दुआएं देकर,
खौलते खून की
उबाल दिखाये हैं
शस्त्र से लैस भीमा
कोरेगांव में,
जब तक अत्याचारियों को
समूल नष्ट न कर दिए
सुस्ताये नहीं किसी
पेड़ की छांव में,
हमने लड़े और जीते भी कई युद्ध,
मगर हमने जग को
दिये भी हैं दैदीप्यमान बुद्ध,
अस्पृश्यता की बात
कर बैठाया गया
समतायुक्त शिक्षालय
से निश दिन बाहर,
भावनाएं व्यक्त न
कर बाबा साहेब ने
खुद को मजबूत बनाया
अंदर ही अंदर घुटकर,
जो काम किसी अदृश्य
शक्तिशाली ने नहीं किया
कर डाला उसने ऐसा
चमत्कारिक काम,
कर दिया आजाद,दे दी
मुक्ति अस्पृश्यों व नारियों को
आज जग में गूंज रहा
बारंबार उनका नाम,
ये सारी बातें महज
इत्तेफाक नहीं है,
सोच समझ कर बोलियेगा
जनाब और मत कहना
इन दमितों में कोई
विशेष बात नहीं है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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