
भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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इस मौसम का जारी तांडव,
देख रहे अब हम।
रोज कथानक के नव बरछे,
चलते पाँवों पर।
नमक निचोड़ा हर मौसम ने,
गलते घावों पर।।
भूख-प्यास की आहें सुन के,
सिल बैठे लब हम।।
उफन रहे ज्वालामुखियों को,
ठंडा करना है।
लाशों के बदले लाशों से,
लेखा भरना है।।
प्रश्न, प्रश्न को मारे कैसे,
सीख गए ढब हम।।
सिंदूरी फंदों में उलझे,
श्वासों के रेले।
मावस-पूनम ले आती जो,
छल-छंदी मेले।।
मिथकों की गठरी के नीचे,
सिसक रहे दब हम।।
सामाजिक झंझावातों का,
चखते स्वाद रहे।
इस जीवट ‘जीवन’ के दम ही,
हम आबाद रहे।।
जब मुस्कानें सजी अधर पर,
कुचले तब-तब हम।।
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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