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भ्रम का दल-दल

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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भ्रम
भ्रम तो भ्रम है
मति भ्रम
दृष्टि भ्रम
दिशा भ्रम
भांति भांति के भ्रम
नित्य छलते हैं भ्रम
कारण-अकारण
भ्रमित करते हैं
मानव मन…..

मन चंचल है
बदलती रहती है
मन की दशायें
कभी गम तो
कभी खुशी
कभी ईर्ष्या
को कभी तुष्टि
कभी प्रेम तो
कभी नफरत
कभी ग्लानि
तो कभी लगाव
कभी उद्वेग
तो कभी उन्माद
कभी क्रोधावेश
तो कभी कामावेश
नाना रकम के
प्रपंच जीवन में
भ्रमित करते हैं
मानव मन……

मन
सदा ही रहा है
सुविधावादी
जब संगम होता है
स्वार्थ और सुविधा का
मजबूर करता है मन को
बदलने को सात्विक राहें
और फिर मन
चाहे-अनचाहै
लगता है दौड़ने
आपराधिक मार्ग पर
दिग्भ्रमित मन
करने लगता है अकरणीय
शांत करने को
अपने महत्वाकांक्षी अहम् को
होने लगता भ्रमित फिर
मानव मन…..

शोणित प्रबल कंपन
संवेदनहीन स्पंदन
शोणित प्रबल कंपन
लिप्सा युक्त क्रंदन
बढे दिन ब दिन
लालची स्तवन
होता जब सब
का एकीकरण
स्वाभाविक है
हो जाता है भ्रमित
मानव मन…

क्या करे बेचारा मन
नासमझ
कैसे तोड़े ये भ्रमजाल
भ्रम
सदैव आकर्षित करता है
मगर…. ये दलदल
फंसाता मन
गहरा… और गहरा
विडम्बना कैसी
कहाँ टूटता भ्रमजाल
परंतु
टूट जाये जो इक बार
ये भ्रमजाल
हो सकता है समाधिस्थ
ये मानव मन…!!!

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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