
भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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क्यों रहना है पीछे मैं भी, चलूँ अगाड़ी में।
बना रहा है सपनों का घर, चिन्टू बाड़ी में।।
पाँच दशक जीवन के फूँके, छप्पर-छानी में।
टूटे काँधे, दुख ढो बदली, देह कमानी में।।
जाग रही पर मृग मरीचिका, उभरी नाड़ी में।।
बी पी यल का लाभ उठाने, चूल्हा अलग जला।
रेत-सरीखा रिश्तों के, आँखों में रोज सला।।
बेयरिंग-सा फँस के है खुश, जीवन-गाड़ी में।।
चार माह तक रोज सचिव के, पूजे गए चरण।
पाँच हजारी पूजा पाकर, पास हुआ प्रकरण।।
घुला रेत, सीमेंट साथ ही, स्वयं तगाड़ी में।।
किस्तों की आवाजाही में, उभरे अवरोधक।
घात लगाकर बैठे जल में, आखेटक से बक।।
प्राण-पखेरू ले डूबी पर, रिश्वत खाड़ी में।।
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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