
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
********************
पहले के ज़माने में हमारे युवा मुल्क जीतने, फतेह करने निकलते थे। यात्राएँ करते थे, या फिर किसी के प्यार में पागल होकर फ़रहाद-मजनूँ-महीवाल बन जाते थे- क्रमशः शीरीं, लैला और सोनी की तलाश में भटकते रहते थे। वे इब्ने-बतूता, वास्को-डी-गामा और राहुल सांकृत्यायन की तरह सभ्यताओं, संस्कृतियों, द्वीपों-महाद्वीपों की खोज में निकलते थे। लेकिन आज की तारीख़ में युवाओं ने इन सबको अलविदा कह दिया है- अब तो एक ही खोज बची है- वो है नौकरी। कोई पूछे कि नौकरी क्यों करी? तो हम कहेंगे-गरज पडी इसलिए करी। और गरज है कि- बिन नौकरी छोकरी नहीं आती।
विद्या ददाति सरकारी नौकरी, सरकारी नौकरी ददाति सुंदरी कन्या।
बड़ी हसीन है ये नौकरी। ये जिधर भी निकले, इठलाती-बलखाती, भाव खाती ..नौकरी इतना भाव खाती है की एक बार मिल जाने के बाद नौकर आदमी खुद पूरी जिन्दगी भाव खाने के लायक ही रह जाता हैl एक अनार सौ बीमार की तरह सब मुँह उठाए इसके दीदार को पागल। इस समुधर मिलन की वेला में दिन रात दें निसार, इसके साथ रंगीन रातें गुज़ारने को हर कोई बेताब। इसके लिए एप्रोच, चरणवंदन- सब किया जाता है, बस नौकरी दिलाने वाला चाहिए। नौकरी आज के ख्वाबों की असली कसौटी है। जिसने इसे पा लिया, वही सिकंदर- बाकी सब ‘असफलताओं’ के मुर्दे आँकड़े। प्यार-दिल का मामला है तो शादी-ब्याह तनख्वाह का। शादी के शामियाने में बायोडाटा की जगह अपॉइंटमेंट लेटर ज्यादा पक्का रंग लाता है। शगुन में पहली सैलरी बहू को चढ़ाना शुभ माना जाता है- और अमृतमय जीवन की लंबी गारंटी समझी जाती है।
इस देश में पढ़े-लिखे होने का सबूत डिग्री नहीं, नौकरी है। डिग्रियाँ तो अब मोबाइल कवर की तरह हो गई हैं- सजावट मात्र। असली फ़ोन तो नौकरी है।
वर-वधू के विज्ञापन भी चीख-चीखकर इसकी गवाही देते हैं- “वधू चाहिए जो सर्वगुण संपन्न हो, सुंदर हो, सुशील हो, गृहकार्य में दक्ष हो, और वर चाहिए, एक ही पात्रता .. स्थायी सरकारी नौकरी वाला हो।” जब मैं नौकरी कह रहा हूँ, तो इसमें बाय डिफ़ॉल्ट सरकारी जोड़ ही लीजिए। जैसे कोलगेट मतलब टूथपेस्ट, टॉपाज़ मतलब शेविंग ब्लेड, वैसे ही नौकरी मतलब सरकारी। निजी नौकरी तो आजकल दिहाड़ी मज़दूरी जैसी ही रह गई है। उससे बेहतर तो मनरेगा की १०० दिन की गारंटी है- कम से कम यह कहने में तो शर्म नहीं आएगी कि मजदूरी कर रहे हैंल जी हाँ कर रहे हैं मित्र, लेकिन सरकार की कर रहे हैं, किसी धन्ना सेठ की नहीं। नौकरी किसलिए की जाती है? तनख़्वाह के लिए। नौकरी का मतलब है रोज़ ड्यूटी जाना। ड्यूटी करना और काम करने में अंतर है। सरकार तनख़्वाह ड्यूटी करने की देती है, काम करने की नहीं। काम करवाने के लिए सरकार पर अतिरिक्त बोझ डालना ठीक नहीं ,इसके लिए आवेदन कर्ता हैं न, वे सुविधा शुल्क देते हैं।
सरकारी नौकर ऐसा नहीं कि निजी संस्थानों का ख़्याल नहीं रखते। वे पूरी तरह रखते हैं। खुद भले ही सरकारी स्कूल में मास्टरी करें, लेकिन बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं- चाहे इसके लिए परिवार को दूर शर में ही क्यों न भेजना पड़े। यह कुर्बानी भी मंज़ूर है।
खुद सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर या डॉक्टर हों, लेकिन अपने परिवार का इलाज बड़े से बड़े निजी अस्पताल में करवाते हैं- वह भी पूरे ठाठ से। वे सरकार पर बोझ नहीं बनना चाहते। जितना सरकार उन्हें दे रही है, वह क्या कम है l उनके अनुसार शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाओं के लिए वे क्यों सरकार पर और बोझ बनें?
आदमी सरकारी नौकरी इसलिए चाहता है कि उसे दो बार ‘घर जमाई’ बनने का मौका मिले- एक बार सरकार का, दूसरी बार उस परिवार का जहाँ उसका ब्याह हो। इसे कहते हैं दोनों हाथों में लड्डू। जो लोग कहते हैं- “शादी एक लड्डू हैं- जो खाए वो पछताए, जो न खाए वो भी पछताए”- तो कहना पड़ेगा कि शादी का लड्डू कहने से पहले एक बार सरकारी लड्डू चखें । एक बार चख लिया तो बाद के सारे लड्डू भी अपने-आप स्वादिष्ट लगने लगते हैं।
देखो न, नौकरी के पीछे बेइंतहा भागते लाखों जवानों को- भागते-भागते जवानी बुढ़ापे में बदल जाती है। नेता लोग अपनी काली ज़ुबान पर नौकरी चढ़ाकर बोलते हैं- “इस साल इतनी नौकरियाँ…” और हवा में उनके वादों का जादुई चिराग बेरोज़गारों को धुंधला नशा पिला देता है। निजी नौकरी तो नौकरी नहीं- वह तो कुम्भीपाक नर्क है। क्यूंकि वह नर्क ही है जहाँ काम जैसे निकृष्ट पुरुषार्थ को तवज्जो मिलती है l
सरकारी नौकरी स्वर्ग की सीढ़ी है, जीते-जीते मोक्ष।
देखो न इन निजी कार्यालयों को- सुबह की नींद हराम, सोमवार का अवसाद, शुक्रवार का इंतज़ार और बॉस के चेहरे पर स्थायी क्रूर भाव- जैसे आप हर ग़लती के दोषी हों। ऑफिस की राजनीति, कॉफ़ी मशीन के पास की ‘मीटिंग्स’ और वीकेंड पर ‘वर्क फ्रॉम होम’- ये सब मिलकर निजी नौकरी को वैसा दर्जा देते हैं जैसे कम सीटें लाने वाली पार्टी को विपक्ष का। सरकारी नौकरी लम्बे सीरियल की तरह होती है- एक बार रोल मिल जाए तो बस! भुगतान नियमित मिलता रहेगा। जब चाहो छुट्टी ले लो। कोई भी विभाग ले लो, बस सरकारी लिखा होना चाहिए आगे। सब एक बेल के तूमडे।
चिंता मत करो, बाप को भी चिंता है। वह भी बैठा है किसी न किसी जुगाड़ में। बात कर ली है उसने उस ऑफिस से जहाँ से रिटायर हुआ। वहीँ लगवा देगा। बाप के अधिकारी रहे वर्मा जी का लड़का इसी कार्यालय में नियुक्त हुआ है, वही अपॉइंटिंग ऑफ़िसर है। कागज़ात दिखा दिए हैं। रुपयों-पैसों की बातें भी हो गई हैं।जितना दूसरों से लेते हैं उस से पचास हजार कम लिए हैं ,वर्मा जी कितना मान रखते है अब भी l उधर कन्या-पक्ष वाले खन्ना साहब भी रोका रोके बैठे हैं- कहते हैं अपॉइंटमेंट लेटर आते ही बेटी का रिश्ता पक्का समझो। कुछ तो रिटायरमेंट फंड का पैसा है, कुछ पड़ोस के शर्मा जी से उधार ले लेंगे। “हो ही जाएगा… बस एक बार लग जाए नौकरी।” जाते-जाते सरकारी जमाई पर एक तुकबंदी इस खाकसार की पढ़ते जाइए
सरकारी जमाई- हास्य कविता
रुक गए तीर बाप के ताने के,
आने लगे रिश्ते घरजमाई बनाने के।
हर तरफ बधाई और वाह वाही है,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
मोहाले की लडकियां भी करने लगी गौर,
चल गया यारों के संग दारू पार्टी का दौर!
पड़ोसन भी अब लगती नहीं पराई है।
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
साली भी अब जान छिड़कती जाए,
साला भी अब मुह नहीं बिचकाए।
सास खिलाये रबडी छैना और रस मलाई है,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
बाप का निठल्ला भैरू अब बन गया दुलारा
बहिन की राखी और माँ की आँखों का तारा।
कभी ना होगी कम रिश्वत की मोटी ये कमाई है,
मुस्कुराइए कि आप सरकारी जमाई हैं।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन ) किताबगंज प्रकाशन, गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻














