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ददा के कदर कर लव

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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(छत्तीसगढ़ी रचना)

जइसे मैं हर थोरकुन
रिसहा गोठ कहेंव
मोर लइका फुस ले रिसागे,
ओखर अक्कल के
कोनो तिर घिसागे,
दिन भर घर म
आबे नइ करय,
घर के चुरे भात
साग खाबे नइ करय,
दिन भर ऐती
ओती छुछवावय,
मोला देख मुंह
अंइठ रिस देखावय,
मैं अड़बड़ परेसान,
का होही सोच
सोच हलकान,
के ए हर कब तक
बइठ के खाही,
अपन जिनगी चलाय
बर कब कमाही,
अभी के संगी
संगवारी ल देखत हे,
आघु चल के का
होही नइ सरेखत हे,
ओखर कइ झन
संगी मन घर चलात हे,
बिहान होत बुता
म लग जात हे,
रात दिन के पइसा
उड़ाइ ओ दिन सटक गे,
जब दु सौ रूपिया
कमाय खातिर
दिन भर के मेहनत
म संहस अटक गे,
एके दिन के बुता
म कुछु समझ नइ आही,
पइसा बचाय
अउ उड़ाय के फरक
चार महीना कमाय
के बाद जान पाही,
ददा के जिंयत ले
सगरो सुख संसार हे,
बाप के सीख ल
मान लौ बेटा होवा
नइ रहे म हो जाथे
जिनगी अंधियार हे।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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