
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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गीतिका छ्न्द में
जो स्वयं कर्तव्य पथ की, साधना को साध लें।
आपदा की आँधियों को, मुट्ठियों में बाँध लें।
थरथरा उट्ठें कलेजे, नाम सुनकर पाप के।
शब्द अपने आप उल्टे, लौट जाएँ शाप के।।
क्रूर होकर जो अहं को, खूँटियों पर टाँग दें।
हर प्रहर मुर्गे सरीखी, जागने की बाँग दें।
जो हृदय इंसानियत के, राग के आगार हों।
देश पर हर हाल मिटने, के लिए तैयार हों।
वे पुरुष हों या कि नारी, चाहिए इस देश को।
आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।।
दूसरों के मुँह न ताकें, साथियों को साथ दें।
जो गिरें उनको उठा लें, हाथ को निज हाथ दें।
भारती माँ की न निन्दा, भूलकर भी सह सकें।
देख कर बेचैन धरती, खुद न जिन्दा रह सकें ।
प्रेम को पूजा समझ कर, धर्म को आधार दें।
जो हृदय की बीथियों में, व्योम सा विस्तार दें।
क्या घृणा क्या द्वेष-ईर्ष्या, लोभ-लालच क्या बला!
पर जिसे चालाकियों को, परखने की हो कला।।
नीति के पक्के पुजारी, चाहिए इस देश को।
आज ऐसे क्रान्तिकार, चाहिए इस देश को।।
अन्धविश्वासी चलन की, तोड़ दें जंजीर को।
जो सुकर्मों से बदल दें, देश की तकदीर को।
राष्ट्र का निर्माण फिर-फिर, हम करेंगे आन हो।
मानवी अनमोल मूल्यों, का सुहाता गान हो ।
जो क्षितिज की दूरियों को, दूर से ही नाप लें।
शत्रु की रण योजना को, पूर्व में ही भाँप लें।
धैर्य धरती सा भरा हो, सिन्धु सी गम्भीरता।
आग सा ले तेज छीनें, शत्रु की स्वाधीनता।
वीर हों बाँके प्रहारी, चाहिए इस देश को।
आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।।
एक युग के नींव की जो, ईंट से डटते दिखें ।
मेघ से सब कुछ लुटाने, के लिए उठते दिखें ।
फूल से कोमल हृदय में, प्रीति हो पाषाण सी।
स्वप्न में भी जो न चिन्ता, पालते हों प्राण की।
जो समय के पत्थरों पर, चिह्न छोड़ें पाँव के ।
हाथ में जिनके पलें युग, धूप वाली छाँव के।
जो शहीदों को झुकाकर, शीश अभिनन्दन करें ।
देश की स्वाधीनता का, उम्र भर चिन्तन करें ।
कर्म-कारी धर्म-धारी, चाहिए इस देश को।।
आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।।
परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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