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प्रकाश का पर्व: दीपावली

रूपेश कुमार
चैनपुर (बिहार)
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दीपों का ये पर्व है निराला,
हर घर में छाए उजियाला।
अमावस की रात में चमके दीया,
हर मन गाए प्रेम का जिया।

रामचंद्र जब लौटे वन से,
चौदह बरस बिताए बन से।
अयोध्या वासी ने दीप जलाए,
राम-सीता का स्वागत पाए।

यही है दीपावली की बात,
सदियों से चलती परंपराओं की बात।
अंधकार पर जब होती जीत,
तभी मनाते दीपों की रीत।

लक्ष्मी माता आतीं द्वार,
संग में लातीं सुख-सम्पार।
धन, समृद्धि, शांति का वास,
हर मन में हो प्रेम प्रकाश।

गणेश जी का हो पूजन,
बिना उनके नहीं शुभ आरंभन।
वो देते हैं बुद्धि-विवेक,
सच्चे पथ पर चलना नेक।

धनतेरस से मेला छाए,
हर गली, हर घर मुस्काए।
नरक चतुर्दशी लाए शुद्ध विचार,
दीप जलाएं, करें संहार।

फिर आती अमावस रात,
हर कोना रोशन, हर बात खास।
पटाखों से न हो शोर बड़ा,
प्रकृति बचाना भी है सदा।

गोवर्धन पूजा, अन्नकूट त्योहार,
कृष्ण भक्ति में लगे परिवार।
अन्न की महिमा सब समझें,
धरती माता को नमन करें।

भाई दूज का प्रेम प्रसंग,
बहन-भाई का पावन संग।
स्नेह, विश्वास, रिश्तों का प्यार,
दीपावली का यही उपहार।

चलो जलाएँ दीप विचारों के,
प्रेम बाँटें हर एक द्वारों पे।
दीपावली का यही संदेश,
सच्चाई, सद्भावना और विशेष।

परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार
शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी !
निवास : चैनपुर, सीवान बिहार
सचिव : राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान
प्रकाशित पुस्तक : मेरी कलम रो रही है
सम्मान : कुछ सहित्यिक संस्थान से सम्मान प्राप्त !
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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