
अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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जिस रावण को मारा था श्रीराम ने,
लोगों के मन में अभी भी जिंदा है।
हर दिन रावण लीला हो रहा है यहाँ,
असत्य, अज्ञान, बुराई की निंदा है।।
कोई नर हवस के पुजारी बन बैठा है,
मासूम स्त्रियों का कर रहा बलात्कार।
बार-बार रावण का रूप धारण कर,
फिर क्यों कर रहा उन पर अत्याचार।।
घर के आँगन में बैठी रोती है नारी,
माथे का सिंदूर बन जाता है अंगार।
घड़ी-घड़ी होती उनकी अग्नि परीक्षा,
देश की बेटी हैं घरेलू हिंसा का शिकार।।
पराई स्त्री पर नजर रखते हैं मनचले,
प्रेम झाँसा देकर बहलाते, फूसलाते हैं।
जीवन भर रानी बनाकर रखूँगा कहकर,
अंत में घर से भगाकर कहीं ले जाते हैं।।
बुरे मानव के अंदर रावण-ही-रावण है,
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम कहाँ से लाऊँ।
रावण राज में अधर्मी, पापी, दुराचारी हैं,
अच्छाई का राम राज फिर से कैसे बनाऊँ।।
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., संस्थापक एवं अध्यक्ष यादव समाज सेवा, कला, संस्कृति एवं साहित्य उन्नयन समिति मुंगेली।
प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, अटल स्मृति सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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