Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

स्वयं से स्वयं की पहचान

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
********************

हो तिमिर घना,
अधीरता नही स्वयं
पर विश्वास हो,
क्योंकि अमावस की
रात मे भी निर्वाण
घटित होता है
कीचड़ कितना भी हो,
कमल भी वहीं खिलता है
दिया मिट्टी का ही हो
रोशनी भरपूर देता है
वो धरती का
हिस्सा होता है!

ईश्वर की कोई
भाषा नहीं होती
उस तक पहुचने का
एक ही सेतु होता है ,
मौन का, मौन
रह साधना का
मौन रह
कर्म करने का !

बुद्ध, महावीर या
कोई संत नहीं बनना है
स्वयं को अंगीकार कर
स्वयं से स्वयं की
पहचान कराना है !

इस राह में कुछ भी
प्राप्त नहीं होता
जो मिलेगा वही
“स्वयं” को सार्थक करेगा,
बहुत कुछ खो जाएगा,
चिंता, महत्वाकांक्षा,
भय, लालच, इर्ष्या,
द्वेष, बेचैनी,
साथ-साथ, अमूर्त
दुनिया का फैलाव भी
जो इंसान स्वयं बनाता है
जिसमें सारा जीवन
व्यतीत होता है!

जिस दिन स्वयं
को जानकर
स्वयं को पा लेंगे,
वही जीवन का सबसे
उल्लासपूर्ण दिन होगा!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *