
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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गिर रही है रोज़ ही,
क़ीमत यहाँ इंसान की
बढ़ रही है रोज़ ही,
आफ़त यहाँ इंसान की
न सत्य है, न नीति है,
बस झूठ का बाज़ार है
न रीति है, न प्रीति है,
बस मौत का व्यापार है
श्मशान में भी लूट है,
दुर्गति यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,
क़ीमत यहाँ इंसान की।।
बिक रहीं नकली दवाएँ,
ऑक्सीजन रो रही
इंसानियत कलपे यहाँ,
करुणा मनुज की सो रही
ज़िन्दगी दुख-दर्द में,
शामत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,
क़ीमत यहाँ इंसान की।।
लाश के ठेके यहाँ हैं,
मँहगा है अब तो कफ़न
चार काँधे भी नहीं हैं,
रिश्ते-नाते हैं दफ़न
साँस है व्यापार में
पीड़ित यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,
क़ीमत यहाँ इंसान की।।
एक इंसाँ दूसरे का,
चूसता अब ख़ून है
भावनाएँ बिक रही हैं,
हर तरफ तो सून है
बच सकेगी कैसे अब,
इज्जत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही
क़ीमत यहाँ इंसान की।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।










