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पैसे मांगलो तो…

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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विषय: वर्तमान परिदृश्य (कोरोना)
विधा: कविता/मुक्तक

हर किसी को रोटी की अहमियत सिखाने लगे है लोग।
अबतो चलते रस्ते औकात दिखाने लगे है लोग।
जिसने कभी पैसों के अलावा किसी को नही पूजा,
अबतो नास्तिक होकर भी मंदिर जाने लगे है लोग।

जो जाया करते थे टाई लगाकर रोज़ दफ़्तर को,
अब वही सब्जी का ठेला लगाने लगे है लोग।
आया अब कोरोना ऐसा सबक सिखाने कि,
अब घर मे ही बनी चीज़े खाने लगे है लोग।

कोरोना में कमाई की हदें भी पार की जिसनें,
अब वही एक एक करके ऊपर जाने लगे है लोग।
पहले जो कहते थे कि मरने की फुर्सत भी नही है,
अब वही फुर्सत में ज़हर खाने लगे है लोग।

जो उड़ाया करते थे कभी लाखों किसी महफ़िल में,
अब वही पैसा पाई पाई करके बचाने लगे है लोग।
जो छाया है आजकल हमारे बीच तंगी का दौर,
पैसे मांगलो तो हालत खराब बताने लगे है लोग।

परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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