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साहित्य और समाज
संपादकीय

साहित्य और समाज

आज की अतिथि सम्पादक माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** साहित्य की समाज में कल और आज की भूमिका देखी जाये तो बहुत ज्यादा फर्क आया है। एक पंक्ति ऐसी होती थी की पूरे देश में राष्ट्र प्रेम की लहर दौड़ जाती थी और आज एक पंक्ति ऐसी स्थिति पैदा करती है कि शर्मिंदगी से नजरें झुक जाती है। ऐ मेरे वतन के लोगों। और मुन्नी बदनाम हुई। कहां से कहां आ गये हम। क्या यही सब युवाओं के बीच, बच्चों के बीच परोसा जाना चाहिए। साहित्य समाज को बहुत कुछ देता है! साहित्य अपने मनोभावो को व्यक्त करने का, मनुष्य के लिये सबसे अच्छा साधन है! कुछ संदेश कुछ शिक्षा - साहित्य से देश की सभ्यता देश की संस्कृति की पहचान होती है हमारा देश जग मे सभ्यता और संस्कृति के लिये विख्यात है ! विगत कुछ समय से बहुत ही निम्न स्तर के लेखन ने समाज को, देश को अलग ही जगह ला खड़ा किया है ! साहि...
डर हमारा ठहर नहीं जाता
ग़ज़ल

डर हमारा ठहर नहीं जाता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** डर हमारा ठहर नहीं जाता। रास्ता जब गुज़र नहीं जाता। राह के बीच में रखा पत्थर, कतरा-कतरा बिखर नहीं जाता। भूख से कुछ निज़ात पा जाएं, जब निवाला उतर नहीं जाता। हम पे अपना असर जताने को, कोई चेहरा सँवर नहीं जाता। मंजिलों का पता लगा लें पर, राह कोई उधर नहीं जाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
शारदा सुता
कविता

शारदा सुता

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** थी वह तो भारत रतन आभा जिसकी फैली दिग् दिगन्त जब ताल ने बदली करवट हेमा, लता बन मुस्काई सुर साम्राज्ञी वह तो युगों-युगों तक दिलों में छाई भारतीय संस्कृति की थी पहचान भारत माता का जग में बढ़ाया मान कोयल सी मीठी रसभरी स्वर कोकिला वह कहलाई त्याग और प्रेम की मूरत महकती रहेगी तब तक तारे हैं जब तक जमीं पर शारदा सुता वह तो मां शारदा मेंं ही समाई परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
सच्चा भक्त
लघुकथा

सच्चा भक्त

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग-अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं। मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन मे...
हम भूल रहें संस्कृतियां
कविता

हम भूल रहें संस्कृतियां

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** हिमगिरी भी मौन वेश में था, पक्षी का कलरव व्याकुल था। वीरान पङी थी वे राहें, जिससे गुजरा सेना दल था। कुछ भी न बचा है मन में, है बची शेष स्मृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। रो रही माओं की आँखे, जो पुत्र की राहें तकती। ना रहा पुत्र अब उनका, बहना भी मन में व्यथित थी। क्यों नहीं समाप्त है होती, इस देश में है जो त्रुटियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। पुलवामा हमला हुआ जब, वीरों ने प्राण गँवाए। ठुकराके शहादत उनकी, वैलेंटाइन डे सभी मनाए। पुलवामा के दृश्य याद कर, गौरव ने लिखी कुछ कृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
अनुपम दोहे
दोहा

अनुपम दोहे

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** १) दिनन बाड़ बीते जग सत्य ना दीखो मोए । टहरत आऊं मशान तौ साँचहिं सन्मुख होए।। २) क्रोधि शील सज्जन चपल ज्ञानी मूर्ख अनजान। लेकर सबको जो चलैं। वो ही चतुर सुजान।। ३) पर परनिंदक को नहीं अनुपम पाए पार। कपट, घृणा, छल ईर्ष्या निंदा कै श्रृंगार।। ४) दूरी इनसन राखिए जो निज हित की चाह। दिखैं जहां कर जोड़ कै तुरत बदल लो राह।। ५) स्वप्न दिखै चितवऊं उहय 'अनुपम' तोरो रूप। हाँसे जग मुझपर स्वयं लेकर चरित कुरूप।। ६) जे भगतन खैं जो कहैं तसहिं तुरत तस पाएं। ज्ञान डरो बौनो जहाँ भगति बो रस कहलाए।। ७) लंबी रचना का कहूँ ? जा में शब्द हजार। दोह बखानत मैं चली ले ग्रंथन को सार।। ८) पण्डित सो ना बांचिये जिनके ज्ञान अगाध। शीश स्वयं के दम्भ अरु प्रशनन करत हैं घाघ।। ९) हरि से गाढ़ी प्रीति तौ शास्त्र रटे का काम? ...
अपना बसंत ऋतु
कविता

अपना बसंत ऋतु

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** हमारे मन में हरियाली सी जब आई है। फूलों ने जब अपनी गंध को भी उड़ाई है।। कोयल भी गाती है जब कुहू-कुहू, भंवरे भी दिल से करते रहते है गुंजार। आई है इस रंग बिरंगी रंगों वाली इन सभी तितलियों की मौज बहार।। फूलों पर हैं भवरे अपना रंग जमाए। आम के पेड़ भी अपना मोजर दिखाए।। हमलोग करने ऋतुराज का स्वागत आए। खेतो में सरसो भी बैठा अपना फूल खिलाए।। हरियाली का मौसम है जिसे कहते है बसंत ऋतु। न सर्दी है न गर्मी है देखो आया अपना बसंत ऋतु।। घर में आया नया फसल और साथ में नया उमंग। चलो बनाकर खाएं पकवान अपनो के संग।। परिचय :- विकास कुमार निवासी : दाऊदनगर औरंगाबाद (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मधुमास बसंत
कविता

मधुमास बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित मही छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहित वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषकहिय प्रफुल्लित आनन्द मय, अभिसारित तरु रसाल पर भौंर। शुभ मधुमास बसंत की लावण्यता नीलाभ अलौकिक प्रकृति में जोर। वसुधाधर मुस्कान सजीली अरुण, सुरभित दिग्दि...
हिजाब और बदलाव
कविता

हिजाब और बदलाव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** औरतों को बस.. डराया जाता है। कभी हिजाब और कभी घुंघट की आड़ लेकर, सभ्यता-संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। वह कुछ नहीं जानती। यह समझा कर, घर की चारदीवारी में बैठाया जाता है । तुम्हारे यह करने .....से तुम्हारे वह करने...... से धर्म का नाश होगा । देवी की उपाधि देकर पत्थर बनाया जाता है। तुम बाहर निकली...... तो, क्या-क्या ??? कहेंगे लोग। चरित्र हीनता का डर दिखाकर, पर्दों के पीछे, तुम बहुत कीमती....... हो। कहकर..... छुपाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। फर्क इतना है कि दिल से देखती है। दुनिया दिमाग से आंकती नहीं। प्यार के लिए हर किरदार को जी जाती है। अपमान को भी चिंता-सुरक्षा मान, खुद को जानने की कभी कोशिश करती ही नहीं। हर किरदार में जीती है। ल...
आग लगाते हैं जो
कविता

आग लगाते हैं जो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आग लगाते हैं जो वो भी यहीं रहते हैं, लगी आग बुझानेवाले भी यहीं रहते हैं। बहने दो गंगा-जमुनी तहजीब अपनी, अमन का पैगाम देनेवाले यहीं रहते हैं। ये मुल्क हमने पाया नदियों खून बहाकर, अपना सर्वस्व लुटानेवाले यहीं रहते हैं। हुकूमत की बदौलत कुछ तबाही मचाते, अच्छी सियासतवाले भी यहीं रहते हैं। सरकारी इम्दाद खा जाते हैं मुलाजिम, नमक का दरोगा जैसे भी यहीं रहते हैं। जवानी के दिनों में इतना मुँह मत मार, देख एक अदद बीबीवाले यहीं रहते हैं। रंजो-गम से भरी है ये दुनिया हमारी, मगर हँसने-हँसानेवाले यहीं रहते हैं। अक्ल से तू बौना है मगर दुनिया नहीं, इंसाफ करने वाले भी यहीं रहते हैं। तुम्हारी बद्द्ुवाओं से वो मरेगा नहीं, दुआ देने वाले भी तो यहीं रहते हैं। मत उतार तू किसी के तन का वो कपड़ा, देख कफन देनेवाले भी यहीं रह...
शुभाषित
कविता

शुभाषित

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** हर आंगन में खुशियों का संसार हो। विश्व में अमन शान्ति का व्यव्हार हो।। जैसे प्रकश से तिमिर का नाश है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। अच्छे कर्म का मन में प्रभाव हो। स्नेह भरे जीवन में स्वभाव हो।। जैसे गंगा की धारा पवित्र है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। हर पल में नव ऊर्जा का संचार हो। सभी सुखी सभी निरोगी जीवन हो।। जैसे फुलों में खुशबू की बौछार है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर) अतिरिक्त : रेल परिवहन एवं प्रबंधन में डिप्लोमा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
शत शत नमन
कविता

शत शत नमन

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** जो भी गया वहां लौटकर वापस आज तक कोई नहीं आया जो भी गया वह बहुत खूब गया इंदौर की सरजमी का चमकता सितारा डूब गया इंदौर से सिनेमा जगत में जाने के बाद मुंबई में स्वर का सूरज व्यस्त हो गया लता दीदी के रूप में बसंत पंचमी के दिन मां शारदा की गोद में अस्त हो गया आपके जाने से अधूरा रहेगा स्वर संगीत का यह चमन स्वर साम्रागी लता दीदी को समर्पित श्रद्धा सुमन मां शारदा की पुत्री आपको हमारा शत शत नमन शत शत नमन परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
किराये का जब था मकान
कविता

किराये का जब था मकान

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किराये का जब था मकान, बदल-बदल कर, आती थकान, कामों में ही उलझ कर रह गये, घर न बना सके ऐसे वो नादान, खुशबू भरे मौसम कई आये गये, बहारों में भी, मन रहता, बेजान, ठिकाने ओरों के देख होते मायूस, अपने घर का सपना, न था आसान, बैंक ने जब हमें दी, कर्ज की सौगात, दिला दी घर ने समाज में नई पहचान परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टे...
अडिग चांद
कविता

अडिग चांद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आते हैं आकर चले जाते हैं तूफानों के सैलाब अंबर के सीने पर बादलों का घूमडना चांद का छुपना बदली मेंढके चांद के तले किसी के दिल का सिमटना शून्य सा, निर्विकार, निर्बाध, असीम आगोश पाने भागना बादल का। वलय को चांद समझ कतरे-कतरे दिल बादलों के वे जाते हैं देख अडिगता उस चांद की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मै...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "बह...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पंँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलते लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई-नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे तरुणाई पर ताजगीभरी कुछ मंत्र शक्ति शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी स...
कई रुप है नारी के
कविता

कई रुप है नारी के

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कई रुप है नारी के, हर रुप में नारी महान। पुत्री भगिनी पत्नी, जननी है देवी समान।। बेटी बनकर आती, स॑ग में है खुशी लाती । बाप की ऑंखो में, ममता ये बरसाती।। गुंजती घर ऑंगन में, किलकारी मधुर मुस्कान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। भैया की प्यारी है, बहना ये दुलारी है। इसकी मिठी बातें, इस जग से न्यारी है।। मिलकर खेलें कूदें, लगते हैं बड़े नादान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान फिर ये पत्नी बनतीं, जीवन भर संग रहती। सुख हो या दुख जो भी, मिलकर है सब सहती।। बहू रुप में पाती है, ससुराल में ये सम्मान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। माता का रुप महान, दूजा नहीं इसके समान। ममता की ये मूर्ति, करुॅणा की है ये खान।। ऑचल की छांव तले, पाते सुख है भगवान कई रुप है नारी के ...
इस देश की माटी चंदन है
कविता

इस देश की माटी चंदन है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** जीतूंगा मै हर बाजी ऐसा अपने आप से वादा करो जितना तुम सोचते हो कोशिश उससे भी ज्यादा करो। किस्मत चाहे रूठे हिम्मत और हौसला कभी ना टूटे फौलाद से भी मजबूत तुम अपना इरादा करो इस माटी में हम भी जन्मे हैं इसका कर्ज हमें चुकाना है जिसका तुमने खाया है उसका तुम फर्ज अदा करो। इस दुनिया में हम आए हैं तो मोहब्बत से जीना सीख लो दिल मैं अगर मोहब्बत है तो नफरत को अपने से जुदा करो। नेक नियत और इमान से ही इंसानियत यहां बसती है जीवन अगर जीना है फिर इस बुराई से पर्दा करो। इस देश की माटी चंदन है जर्रे जर्रे में-रब भी बसता है हो गए कई कुर्बान वतन पर तुम भी तन मन फिदा करो देश के दुश्मनों को तो हमने रन में उनकी औकात दिखाई है इनका हमको डर नहीं मगर ये गद्दारों को इस घर से विदा करो। परिचय :- सीताराम पवार ...
झर्र बिलैया
गीतिका, बाल कविताएं

झर्र बिलैया

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** टी ली, ली ली झर्र बिलैया। खा गई अक्षु, सारी मलैया। अम्मा से कट्टी क्यों कर लूं वह तो मेरी जय-जय मैया। करवाऊंगी, मैं सबकी पिट्टी जब भी आयेंगे, आबू भैया। किट्टू हैं, मेरी प्यारी दीदी संग-संग नाचें ता-ता थैया। मैं भी पढ़के दिखलाऊँगी- चाचा जी मेरे, बहुत पढैया। जब हम अच्छे काम करेंगे- तो फ्रेंड बनेंगे सभी सिपैया। रोज खिलाया करती हप्पा- जब-जब घर आती है गैया। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाच...
यूँ ही नही मिलती मंजिल
कविता

यूँ ही नही मिलती मंजिल

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** यूँ ही नही मिलती मंजिल, सतत चलना पढ़ता है कोशिशे बार-बार हमें अनवरत करना पढ़ता है. मेहनत दिन-रात कर, लक्ष्य के मार्ग पर, लोगों से लड़ कर, राहें अपनी गड़ कर. चलना पढ़ता है........!! सपने को साथ लिए, जोश और जुनून. लिए, जीत का लक्ष्य लिए, हार कर भी जीत के लिए. चलना पढ़ता है........!! कांटों भरी इन राहों में संघर्ष की इन मैदानों में सुखों का त्याग कर, लक्ष्य अपनी साध कर, चलना पढ़ता है.......!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाश...
वजह
कविता

वजह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट की वजह बनो क्यों दर्द की वजह बनते हो? मोहब्बत की वजह बनो क्यों नफरत की वजह बनते हो? जीने की वजह बनो क्यों मृत्यु की वजह बनते हो? निभाने की वजह बनो क्यों बिखरने की वजह बनते हो? हंसने की वजह बनो क्यों रुलाने की वजह बनते हो? दोस्ती की वजह बनो क्यों दुश्मनी की वजह बनते हो? सम्मान की वजह बनो क्यों अपमान की वजह बनते हो? आशा की वजह बनो क्यों निराशा की वजह बनते हो? जीताने की वजह बनो क्यों हराने की वजह बनते हो? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
दिल का गुलाब हो
कविता

दिल का गुलाब हो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गुलाब हो या मेरा या उसका तुम हो दिल। तुम ही बतला दो अब ये खिलते गुलाब जी।। दिल में अंकुरित हो तुम। इसलिए दिल की डालियों, पर खिलाते हो तुम। गुलाब की पंखड़ियों कि, तरह खुलते हो तुम। कोई दूसरा छू न ले, इसलिए कांटो के बीच रहते हो तुम। पर प्यार का भंवरा कांटों, के बीच आकर छू जाता है। जिसके कारण तेरा रूप, और भी निखार आता है।। माना कि शुरू में कांटो से, तकलीफ होती हैं। जब भी छूने की कौशिश, करो तो चुभ जाते हो। और दर्द हमें दे जाते हो। पर तुम्हें पाने की, जिद को बड़ा देते हो। और अपने दिल के करीब, हमें ले आते हो।। देखकर गुलाब और, उसका खिला रूप। दिल में बेचैनियां बड़ा देता हैं और मुझे पास ले आता है। और रात के सपनो से निकालकर। सुबह सबसे पहले, अपने पास बुलाता है। और अपना हंसता खिल खिलाता रूप दिखता है।। मोहब्बत...
कलयुग के पाप
कविता

कलयुग के पाप

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** नशा पान करके-करते घर को बदनाम, घर कि बहु बेटी इज्ज़त को करते निलाम.! घर कि लक्ष्मी बना कर लाते बइमान, पैसो कि चाह मे गलत करते बलवान.! कब तक सहन करोगे गलत व्यवहार, दुर्गा काली बन कर करो संघार.! गलत आचरण गलत व्यवहार है मनुष्य के कलयुग के पाप, बेटी बहु कि इज्ज़त सम्मान करो असहाय दिनहिन कि मदद करो बन लो अच्छा इंसान..!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
उस वक़्त
कविता

उस वक़्त

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** उस वक़्त तुम्हें फिर कैसा लगेगा। जब वक़्त तुम्हारे संग नहीं चलेगा।। नहीं साथ देगी, जब किस्मत तुम्हारी। दगा कर कोई जब, तुमसे करेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। औरों पे हँसना, तुम छोड़ दो। खुद पे घमण्ड यह, तुम छोड़ दो।। बिगड़ेगा जब कोई, खेल तुम्हारा। चेहरा यह नकली, जब तुम्हारा हटेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। किसी की राह में, मत कांटें बिछाओ। किसी की मुसीबत, नहीं ज्यादा बढ़ाओ।। पड़ेगी कभी तुमको, इनकी भी जरूरत। मगर जब मदद तेरी, कोई नहीं करेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। अपनी बुराई को, पहले मिटाओ। आत्मा अपनी पवित्र, पहले बनाओ।। गलत काम किसने, यहाँ नहीं किया है। तुम्हारा भी सच जब, मालूम चलेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। परिचय :- गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" निवासी : बारां (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
श्रद्धा सुमन
कविता

श्रद्धा सुमन

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** महान विभूति की भारत भूईयां से विदा हो गई। सद्कर्म कर लता जी पंचतत्व में विलीन हो गई।। सुरों की खान थी, फिल्मी जगत में पहचान थी। सुरों की ताज़ थी, सुमधुर सुरीली आवाज़ थी।। लता मंगेशकर देश की मशहूर गायिका हो गई... दुनिया का एक अनमोल सितारा, वह प्राणों से प्यारा है। पार्श्वगायिका का देख नज़ारा, मेहनत से गीत संवारा है।। भारतीयों की जिंदगी का वह एक संगीत हो गई... स्वर कोकिला उपाधि मिली, स्वर साम्राज्ञी कहलाई। नाइटिंगल ऑफ इंडिया ना जाने और कई उपाधियां पाई।। भारत रत्न से विभूषित वह लोकप्रिय हो गई.. ९२ वर्ष तक आभा बिखेरीं, गीत-संगीत ही दुनिया रही। फिल्मों को दी नई परिभाषा, सम्मान उन्हें मिलती रही।। श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, दुनिया को अलविदा कह गई... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी...