Monday, December 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

BLOG

प्रकृति की पूजा
कविता

प्रकृति की पूजा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गरजती-चमकती बिजलियों से अब डर नहीं लगता अपने पसीने से सींचे हुए खेतोँ में लगे अंकुरों को देखकर लगने लगा हमने जीत ली है मान-मन्नतो के आधार पर बादलों से जंग। वृक्ष कब से खीचते रहे बादलों को अब पूरी हुई उनकी मुरादें पहाड़ो पर लगे वृक्ष ठंडी हवाओं के संग देने लगे है बादलो को दुआएँ। पानी की फुहारों से सज गई धरती की हरी-भरी थाली और आकाश में सजा इन्द्रधनुष उतर आया हो धरती पर बन के थाली पोष। खुशहाली से चहुँओर हरी-भरी थाली के कुछ अंश नैवेध्य के रूप में ईश्वर को समर्पित कर देते है किसान श्रद्धा के रूप में शायद, ये प्रकृति की पूजा का फल है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश...
हम छोटे ही अच्छे थे
कविता

हम छोटे ही अच्छे थे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे नंगे पैर दौड़ लगाते, सजाते ख्याबो के लच्छे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे नियम बना है जीवन मेरा, नि...
कहाँ गंगाजल है
ग़ज़ल

कहाँ गंगाजल है

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** निकलता नहीं, क्यों सवालों का हल है, हैं गलत फॉर्मूले और कुतर्कों में बल है । लूटे जाएं हमसे और निठल्लों में बांटे- राजधानी, या फिर, घाटी-ए-चम्बल है । सब अपेक्षाओं से नाता, जो हैं तोड़ देते- उन्हीं बावलों का, बस जीवन सफल है । अपनी व्यवस्था की डोर, है चार हाथों- व निर्णय सभी का, अलग आजकल है । जब आजाद हैं हम, तो कुछ भी करेंगे- और कुर्सी पर बैठे, गांधी जी अटल हैं । गिरी मक्खी नहीं, दूध में छिपकली है- इसे पूरा ना बदलना, मेरे साथ छल है । तूने ही तो किया, सारे तत्वों को दूषित- अब ढूंढ़ता फिर रहा, कहाँ गंगाजल है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षि...
तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …
ग़ज़ल

तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही। अपने दिल से कर दो रुखसत ये हो नहीं सकता।। लाख फेरो यूँ नज़र मुझको जलाने की खातिर। पलट - पलट के न देख तू ये हो नहीं सकता।। मैं वाकिफ हूं तेरी हर एक उन कमजोरियों से। तुम उनसे तोड़ चुकी हो रिश्ता ये हो नहीं सकता।। मुझको मालूम है तेरे दिल को बिछड़ने का है डर। जिस्म से जान हो जाए अलग ये हो नहीं सकता।। हम तुम एक हैं जनम से, है ज़माने को खबर। तेरी इजाज़त न हो ज़माने को ये हो नहीं सकता।। परिचय :-  सुधाकर मिश्र "सरस" निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) शिक्षा : स्नातक व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९ मूल निवासी : रीवा (म.प्र.) रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण री...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते अपने रिश्तों से दूर होने लगे है, क्यों लोग इस कदर मजबूर होने लगे हैं। दुश्मनो से दोस्त कर रहें है इल्तजा, कपटहीन चेहरे कितने मगरूर होने लगे है। ज़माने का कैसा हो गया मिजाज, भ्रातृ भाव कितने बेनूर होने लगे है। आजमा कर देख निर्दय ज़माने को, चेहरे पर कई चेहरे जरुर होने लगे है। रिश्ते,नाते सब विचित्र मायाजाल, पैसे ही चेहरों के नूर होने लगे है। चाह न रख स्वर्णिम पंखो की अब, सारे सपने अब चूर चूर होने लगें है। तंगहाली, कविता हमारी हमसफर, अल्लाह के करम, पुरनूर होने लगें हैं। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
हार और जीत
आलेख

हार और जीत

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हारना किसे अच्छा लगता है और जीतना किसे बुरा लगता है किसी को नहीं | तो जीतकर दिखाना यदि कोई वंश हन्ता है उससे | यदि किसी ने तुमसे तुम्हारा स्वजन छीन लिया है तो तुम उसके पराक्रम छीनने का साहस न करके अपनों से ही उलझने में स्वयं को महाक्रमी समझते हैं, तो क्या कहा जा सकता है ? आपको प्रगतिशील तब माना जाता जब अपनी प्रगति के आगे हन्ता को कहीं टिकने नहीं देते | उसी के संबंधियों के आगे नतमस्तक होकर स्वजनों के पराजय की कामना करने का तात्पर्य तो सायद स्वजनहन्ता की पंक्ति में ही खड़ा हुआ माना जाता है, इसमें कितनी बुद्धिमत्ता कही जा सकती है | जीवन में रूखापन तुलनाओं से आता है, और बिना तुलना मजा भी कहाँ आता है ? जरूरी है तुलना करना पर उस तुलना की वजह से हीन भावना या अहंकार नहीं आना चाहिए | प्रेणादायक तुलना करना बहुत अच्छी बात है, परन्तु किसी ...
राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका
आलेख

राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र का तात्पर्य मात्र देश नहीं, देश के साथ उसकी संस्कृति भी है। इसमें वन, पहाड़, नदियाँ व  सामाजिक रीतिरिवाज भी समाविष्ट हैं। राष्ट्र एक प्रवाहमयी इकाई है। साहित्यकार जो अनुभव करता, वही लिखता है। साहित्य, समाज का दर्पण ही है।  आदिकाल, भक्तिकाल व रीतिकाल तक राज्याश्रय, अध्यात्म व श्रृंगार के संदर्भ में लिखा गया। आधुनिककाल में राष्ट्रप्रेम व समाजसुधार की स्वस्थ भावनाओं द्वारा साहित्य, सामान्यजन से जोड़ा जाने लगा। गद्यविधा भारतेंदु युग  इस नवजागरण युग में सदियों से सोए भारत ने अँगड़ाई ली। राष्ट्रवादी-भाव, जनवादी- विचारधारा, संस्कृति- गौरवगान, स्वराज्य- भावना पर भी लेखनी चलने लगी। भारदेन्दु अंग्रेजों की फूट नीति में... "सत्रु सत्रु लड़वाई दूर रहि लखिय तमासा" "उठो हे भारत, हुआ प्रभात" नारी दशा पर  " स्त्रीगण को विद्या देवें " ...
दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है
ग़ज़ल

दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** मुझको आदत नही ठगने की जमाने को, हर रोज निकलता कमर कस कमाने को। साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर, जुबां जब बोले बचता न कुछ छुपाने को। तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से, तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को। माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना, बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को। करते रहे यूं ही गर हम हर बार नादानियां, रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को। दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के "जैदि" थोड़ा कहीं ज्यादा, छोड़ो न इस पैमाने को। अर्थ :- साफगोई :- स्पष्ट वादिता दौर-ऐ-गर्दिश :- बुरा समय परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटे...
आना जाना
कविता

आना जाना

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** लगा हुआ है आना जाना! बंदे इस पर क्या पछताना! सृष्टि ने यह नियम बनाया, जो भी जीव यहां हैं आया, वक़्त सीमित सबने पाया, रह कर बंदे इस दुनिया में इक दिन सबको चले जाना!... सारे आने वाले यहां पर, देखे दुनियादारी यहां पर, मेरा मेरा ही करे यहां पर, इतना सा भूल है जाता, कुछ भी साथ नही जाना!.... ये दुनिया जानी पहचानी, वो दुनिया तो है अनजानी, दोनों की हैं अजब कहानी, चले गए जो इस दुनिया से, नही उन्हें अब वापस आना!... सुख- मंदिर जग में सारे, लगते जो हैं सब को प्यारे पर ये नही है तारणहारे करना होगा सत्कर्म फ़कत यही तो बस साथ हैं जाना!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
ठिठुरन
कविता

ठिठुरन

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय पुराना बीत गया, धूँध से सहम रीत गया, कहीं बाढ़ की आफत आयी, महामारी ने छीना सब हर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कुंठित मन का आस है झेला, कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला, दिनकर को ढक दी तम चादर, जन जीवों में छिपा उत्कर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कामगार भी ठिठुर गए हैं, सबके अरमां भी बिटुर गए हैं, मानवता पर बड़ी बीमारी, अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। लटके कुसुम भारी जल कण से, दुबके बाल शीतों के रण से, देती है दर्द अब ठलुआ रुई ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
दिल से
कविता

दिल से

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वो यादें वो लम्हें वो बातें वो दिन, क्यां लिखूं मैं अपनी कलम से। वो दोस्तों के साथ बितें दिनों की बात क्यां कहूं मैं अपने दिल से।। आखिर अपने तो अपने ही होते है याद कर लेता हूं मैं फिर से। बस यूं चलते रहे आगे बढ़ते रहे मिलेंगी सफलता जरुर राही ने कहां मंजिल से। दिल की सुन अपनी मन की कर और आगें बड़ लहारों ने कहां साहिल से। जिंदगी एक खेल हैं कभी खुशी-कभी गम है और मत ले टेंशन जियों दिल से।। गीत-संगीत‌ सुर ताल जहां सुनाई देती है भरी महफिल से। हर समंदर के उस पार तैर कर जाना है जहां गहराई ही क्यों न हो झिल से।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
जादुई चिराग़
कविता

जादुई चिराग़

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** सफल होती जिंदगी भी बेहिसाब लगती है! मेरी मेहनत लोगों को जादुई चिराग़ लगती है।। थक हार के जब भी कभी मैं बैठ जाती हूं, सोचती हूं फिर में खुद को अकेला ही पाती हूं ।। एक दिन मैं अपने मन को बड़ा किया नही जाता, छोटे-छोटे पहलुओं से मिलाकर जिया नहीं जाता ।। काश सच मैं कोई जादुई चिराग़ मेरे पास भी होता अब छुट्टी लेकर इंतमिनान से घर बैठा नही जाता।। की लम्हे छोटे-छोटे से है और काम बहुत है मुझे किसी एक के हालत को देखकर सोचा नहीं जाता।। जादुई चिराग़ होता तो मांग लेती सबकी खुशी, किसी एक की खुशी पर मुझसे खुश रहा नही जाता।। मेरे पहलू मैं बैठकर देखोगे तो पाओगे मुझे तुम इस कदर, तुम्हारी खुशी मैं खुश हूं मुझे अपने लिए जीना नहीं आता।। नायाब कोई जादुई चिराग़ की तरह अब और मुझसे, वक्त की रेत पर...
वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है
ग़ज़ल

वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************          ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है नया कुछ कहाँ नये साल में वही सब पुराना सा हाल है लुटी सी थकी सी हैं ख्वाहिशें दबी हैं जरूरतों के तले सरेआम होती नीलाम रोज तमन्नाएं बेमिसाल है नही बदला ढंग कहीं कोई वही आदतें है पुरानी सब है अभी भी बेपरवाहियाँ नही समझा कोई कमाल है यूँ डरे डरे तो हैं सब मगर है दिलों में सबके ही खौफ़ सा तो भी जश्न कैसे छूटे कोई ये तो रूतबे का सवाल है न की खैर की कभी मिन्नतें किसी हाल चाहे ही हम रहे जो मैं पी गया हूँ उदासियाँ मेरे दर्द को भी मलाल है न ही दिन ही बदला न रात ही न नया कोई भी कमाल है कहो किस तरह से कहें इसे भला हम की ये नया साल है मत पूछ मुझसे तू रास्ता मैं भटक रहा हूँ यहाँ वहाँ मुझे खुद की कुछ भी खबर नही मेरा जीना जैसे बवाल ह...
पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका
गीतिका

पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** जल ही जीवन, तत्त्व प्रमुख है, जलमय है सारा संसार। उठ जाता है दाना-पानी, बिन जल मचता हाहाकार।।१ जल में रहकर बैर मगर से, करता कभी नहीं विद्वान, पानी फिर जाता है श्रम पर, मत पानी पर लाठी मार।।२ कच्चे घट में पानी भरना, अर्थ और श्रम का नुकसान, आग लगा देता पानी में, जिसने खुद को लिया निखार।।३ अधजल गगरी चले छलकते, जाने कब पानी का मोल, पानी भरना, पानी देना, पानी सा रखना व्यवहार।।४ चुल्लू भर पानी में मरना, नहीं चाहता है गुणवान, तलवे धोकर पानी पीना, सीख गया मन का मक्कार।।५ दूध-दूध पानी को पानी, करता सच्चे मन का हंस, हुक्का-पानी बंद न करना, कभी किसी का पानी मार।।६ घाट-घाट का पानी पीना, नहीं सभी के वश की बात, पानी पीकर कोस न 'जीवन', पानी की सबको दरकार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतू...
नया साल ऐसा आये
कविता

नया साल ऐसा आये

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** नया साल ऐसा आये सबकी खुशियाँ लाये। गरीब का ठिकाना हो सबको आबो-दाना हो रहे नहीं तकलीफ कोई भी सबकी बिगड़ी बात बनाये नया साल ऐसा आये...... कोई ना बीमार रहे खुशियों की बौछार रहे बैर रहे ना कहीं किसी में सब अपना कर्तव्य निभाये नया साल ऐसा आये ..... माता पिता का हो सम्मान पूरे सबके हों अरमान बनी रहे जीवन भर शान बात समझ ये सबके आये नया साल ऐसा आये ....... कब किसको आना-जाना है वक्त के हाथ जमाना है प्रेम की बांधे डोर चलो रब के मन को ये ही भाए नया साल ऐसा आये सबकी खुशियां लाये। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
नव नवल नूतन
कविता

नव नवल नूतन

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कल रात से ही, ज़मी से लेकर, आसमाँ तक था, ठंड का पहरा, दसों दिशाओं तक उसने फैला रखा था कोहरा ही कोहरा, जम चुकी थो नवजात ओस, कहीं नहीं था कोई भी शोर, सनसनाती तीर सी हवा चल रही ठंड के पँखों से दिखला रही जोश, सूरज खो चुका गर्म एहसास, नहीं मानता धरा का ऐहसान, पर जरा ठहरो! गौर से देखो नर्म-गर्म हथेलियाँ फैलाकर, भविष्य के गर्भ से पैदा हो रहे नव वर्ष शिशु को थाम रहा सूरज परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
सृजन फुहार
कविता

सृजन फुहार

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। अब तो टीवी चैनल सारे, दिन भर शोर मचाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़ देख देखकर, रक्त चाप बढ़वाते हैं। तुकांत काव्य अनुराग बहुत, नए ढंग से लाते हैं। दंगा-पंगा, रथ-पथ गाता, लठैत टिकैत छाते हैं । गिरी गाज खत्म राज विधान, समाधान तक आती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। पद पाने का लालच हरदम, इस तरह समाया रहता । टूटी फूटी नाक बचाने, तिकड़म ही लाया करता। होता जोर नहीं पैरों में, चाल बहुत तिरछी चलते। खिसियाये से नेता बनते, अहम वहम में दम रखते। नौ मन तेल बिना ही राधा, मोहन के गुण गाती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है...
वीर सपूत
गीत

वीर सपूत

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** देश के प्यारे वीर सपूतों तुमको मेरा सलाम। देश की खातिर लड़ते लड़ते दे दी अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। गलत बात से दूर रहो तुम यही हमारा नारा है, भारत प्यारा देश हमारा सारे जहां से न्यारा है। प्यारे भारत देश के हित में सरस प्रेम फैला दें, दुश्मन के ऊपर हम मुसीबत के पत्थर बरसा दें। देश की खातिर मर मिट जाएं दे दें अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। भारत मां के चरणों में हम शीश काट कर रख दें, जिसने हम पर आंख उठाई उसे काट कर रख दें। भगत सिंह के वंशज हैं हम दुश्मन को समझा दें, और कारगिल विजय दिवस की उनको याद दिला दें। प्यारे भारत देश की खातिर हो जाएं कुर्बान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्...
उम्मीदों का आसमान
कविता

उम्मीदों का आसमान

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बीता यह पल जैसा भी, सहा सभी है हमने। खट्टे मिठे अनुभव सारे, किया सभी है हमने।। जीवन है अनुभव शाला, सब कुछ यही सिखाता है। होते हैं नित नई परीक्षा, समय बदलता जाता है।। उम्मीदों का आसमान भी, सदा रखा है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने कभी धूप कभी है छाया, है यह रीत निराली। सुख दुख है उसकी माया, कभी दशहरा दिवाली।। चार दिन की इस जीवन में, देखा सभी है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने आए कुछ ऐसे पल भी, याद रहेंगे जो हमको। कुछ खोया कुछ पाया है, भूल नहीं सकते उसको।। जैसा भी अवसर आया, उसका मान किया हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने उम्मीदों के आसमान में, सदा उड़ाने भरना। सीखा है हालातों से, सदा खुशी से रहना।। राम लगा आना जाना, सदा नहीं है रहने बीता यह पल जैसा भी स...
विदाई
कविता

विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नये वर्ष में नवशक्ति से नया इतिहास गढो नये इतिहास के लिए कुलांचे भरो गगन में ढलता सूरज देता विगत वर्ष को बिदाई। नव वर्ष हो सर्वमान्य के लिए सुखदाई।। चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राहों में पड़ा पत्थर ठोकर से ठुकराता है एक अकेला फिर हुजूम, हुजूम से कारवा साथ है यही जान तू जिंदगी अपनी राहों में हम अकेले हैं नया वर्ष इतिहास गढ़ने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रस...
प्यार मोहब्बत में छिपा
कविता

प्यार मोहब्बत में छिपा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार एक ऐसा शब्द है, संसार में ममता और आराधना छिपी है। मोहब्बत एक ऐसा अल्फाज़ है, दुनिया में जन्नत का रास्ता छिपा है व आरज़ू की मन्नतें छिपी है। जीवन का सार ही प्रेम प्यार, मोहब्बत है, इंसानियत को जीवित रखने को, मानवता बचाने के लिए यशु फिर जीवित हो गया, नफ़रत मिटाने को उसमें ईश्वर की आत्मा छिपी है। कुदरत का करिश्मा ही कहें, गीता, कुरान, बाईबल, गुरू ग्रन्थ साहिब पथ-प्रदर्शक रहे, धर्म निरपेक्षता लिए हमारा संविधान भारतीयता की पहचान लिए विश्वदर्पण में इंसानियत की तस्वीर छिपी है। धर्म और मजहब की परिभाषा ही बदलने लगी है इस कलयुग में हिंसा सिर्फ हिंसा आधुनिकता की दौड़ में, चोला पहनकर गगन ईश्वर को भी धोखा दे रहे हैं, खून खराबे में देखो जन्नत ख़ुदा की कहीं नजर नहीं आ रही है जैसे कहीं गुम या छि...
नव वर्ष स्वागत गीत
गीत

नव वर्ष स्वागत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्ध दिसम्बर के जाते ही, आया जग में नूतन वर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। कोरोना पर हुआ नियंत्रण, टीकों ने पाई है जीत। यत्न सकल मानव रक्षा के, सफल हुए हैं आशातीत। लाएँगे परिणाम सुखद ही, सकारात्मक सब संघर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। बाज़ारों में चहल-पहल है, बढ़ने लगे सभी व्यापार। प्रतिष्ठान खुल गए सभी अब, घर से निकले हैं नर-नार। पाएँगे सब अच्छे अवसर, अब होगा सबका उत्कर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। अकर्मण्यता लुप्त हो गई, करने लगे सभी जन कार्य। निज जीवन निर्वाह के लिए, हुआ परिश्रम है अनिवार्य। उन्नत होंगी सभी दिशाएँ, कहीं नहीं होगा अपकर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उ...
धूमिल होंगी सृष्टियां
कविता

धूमिल होंगी सृष्टियां

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** चढ़ी जा रहीं सभी चोटियाँ घर-घर की मासूम बेटियां बेटों से कमतर नहीं हैं वे अब न सेंकती घर में रोटियां इनमें ऊर्जा झासी की है और कल्पना सी है शक्तियां ये सीता हैं ये राधा हैं ये घर भर की हैं विभूतियाँ माँ के आंखों की सपना हैं वृध् पिता की दृढ़ लाठियां समझो ना कमजोर इन्हे अब अब समाज की बन्द मुठ्ठियाँ जितना इन्हे जलाया हमने उतनी प्रखर हुईं दृष्टियां इनके बढ़ते कदम न रोको वर्ना धूमिल होंगी सृष्टियां परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
आ हिंदी बैठ ज़रा
गीत

आ हिंदी बैठ ज़रा

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ। नवयुग की इस परिपाटी पर, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। भूल गए हैं पथ के पंथी, पंखों को लहराना। भूल गये हैं मातृभूम पर, अपना ही ध्वज फहराना।। भूले भटके इन राहगिरों में, फिर से वो ही उद्गार भरूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। निर्झर मिश्री तुझसे बहती, किसलय सीखे खिलना। हिंद धरा की हिंद वाणी तू, बहुत ज़रूरी तुझसे मिलना।। अंग-अंग में रंग भरूँ मैं, नित अवलेखा से प्यार करूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। चरण पखारूँ नित उठकर, गुणगान करूँ मैं तेरे। तू ही धरणी, तू ही करणी, ये मान भरूँ मैं तेरे।। अपनेपन का आभास करा, कभी न तेरा अपकार करूँ...
मंगलमय हो
कविता

मंगलमय हो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो, नित नई सफलताएं पाएं। नव वर्ष तुम्हें दे हर्ष सदा, उन्नति के पथ पर बढ़ते जाएं।। नव उमंग नव तरंग लेकर, खुशियों से सराबोर हो जाएं । नव उल्लास उत्साह मन में, जीवन उपवन सृजित हो जाएं। मन मंदिर में दीप जलाकर, अज्ञानता को सूदूर भगाएं , काम क्रोध मोह जलाकर, जीवन को सुस्वर्ग बनाएं।। सुखद पल हृदय में लाकर, संस्कार बीज रोपित हो जाएं। नव रुप हर क्षण नवरंग दें, नव जीवन सुखमय हो जाएं।। गुरुजी का श्रवण कर लें, नव ऊर्जा नव जोश लाएं। संयम नियम साधना से ही, नूतन वर्ष का बधाई पाएं।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एव...