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रक्षाबंधन गीत
गीत

रक्षाबंधन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुखदाई वर्षा ऋतु आई, धरती पर सावन मुस्काया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। सात समंदर पार बसा है, पत्र बहुत लम्बे लिखता है। मोबाइल पर करता बातें, मुखड़ा भी उसका दिखता है। मन में कुछ बदलाव नहीं है। बदल गई पर उसकी काया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। अधिक व्यस्त है वह कहता है, उसे मिला अवकाश नहीं है। है विदेश में दुनिया सारी, पर भारत-सा प्राश नहीं है। माँ के हाथों निर्मित लड्डू, जग में अनुपम कहीं न पाया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। पापा स्वस्थ नहीं रहते हैं, मौन बहुत रहतीं हैं माता। केवल सात महीने बीते, दादी त्याग गईं हर नाता। सभी कुशल-मंगल है घर में, भाई को बस यही बताया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहि...
कुछ अलग सृजन प्रयास
कविता

कुछ अलग सृजन प्रयास

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कुछ अलग सृजन प्रयास बिना सहारे-१२८ शब्द (काव्य-अर्थ भी नीचे वर्णित है) ************************ गहन दमन अटक खटक, पहट फकत कदर पटल। भरत अदब नयन छलक, गज़ब सड़क महल सजल। बहस डगर तड़प सबब, रहन सहन ठसन खलल। तमस गमन हवन तहत, नज़र कसक समझ पहल। तपन पवन अमन चलन, सरस जतन कलश कमल। कथन कसर कहर कलह, महक चहक सहज सफल। वतन वचन असर सबक, तड़क कड़क परख अटल। अगर मगर गरज ललक, मनन वजह नमन सबल। हवस चरस तरस भनक, सनक धमक धधक गरल। हनन दहन खनक भड़क, अहम वहम खतम शकल। नवल धवल चपल असर, कलम समझ असल सरल। अकल फसल अमल सनम, पलक फलक लहर तरल। अलख खबर मगज पलट, समझ चमक दमक बदल। धरम करम बचत ललक, शरण तनय बहन चहल। नसल मचल छनन सनन, शहर शजर करम अचल। लगन मगन सनद अलग, दहक भभक रजत ग़ज़ल। प्रत्येक लाइनों का क्रमवार अर्थ भी प्रस्...
टूटे ख्वाब
कविता

टूटे ख्वाब

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मां के डांट से रोते मैंने, बालक का आवाज लिखा है। टपक गेसुऐ नयनों से उसके, हाथों मे एक किताब लिखा है।। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है । मानव के हरेक शीर्षक से, पुरे कर्मोकाज़ लिखा है।। लोग डरते हैं जहां तर जाने से, वही गहरे पानी का तालाब लिखा है।। सोंच से पहले डर को आगे, लोगों का नया इजाद लिखा है। खुद अंधेरे मे रहकर, प्रकाश के खिलाफ लिखा है।। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।। एक महल के राजा का मैंने, बदले का अभिशाप लिखा है। राजकुमार का राह निहारे, एक कन्या का घर मे साज लिखा है।। नई नवेली दुल्हन को मैंने, मां लक्ष्मी के दो पांव लिखा है। लगे तीर सीने में आकर, सीने में वो घाव लिखा है।। गिर...
लाशों से सजाते क्यों धरती?
कविता

लाशों से सजाते क्यों धरती?

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लाशों से सजाते क्यों धरती, मानवता से घबराते हो। सब कुछ नहीं पद, सत्ता पैसा, क्यों मजलूमों को रुलाते हो? इतनी बर्बरता ठीक नहीं, जिल्लत का जहर पिलाते हो। इस नश्वर जग में आखिर क्यों, अपनों पे सितम तू ढाते हो? उस उपवन के हो तू माली, क्यों पहचान मिटाते हो। दफ़न करो तू अंधकार को, क्यों कांटे के आँसू बोते हो? चीख, दर्द, चीत्कार से दुनिया, निशि-दिन घायल होती है। शक्ति प्रदर्शन देख-देखकर, फिज़ा वहाँ की रोती है। सिर्फ विकास की बात करो, तब सुख के बादल बरसेंगे। मोहब्बत की किरनें झूमेंगी, ज़ब सर न किसी के उतरेंगे। अमनो चैन की उस दुनिया में, तब मानवता करवट लेगी। फांकों के दिन टल जायेंगे, खुशहाली तब थिरकेगी। मत रौंदों, न मसलों इज्जत, अब ना तू नर-संहार करो। अपने पथ से भटके लोगों, एक दूजे से प्यार करो। प...
लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश
स्मृति

लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बड़ा अभिमान होता है मुझे कि मैं मानवता के पैरोकार, ४८ पुस्तकों के रचनाकार प्रोफेसर श्यामनंदन शास्त्री जी की बेटी हूंँ! जिन्होंने आज से आधी सदी पूर्व ईश्वर से विकल प्रार्थना में मुझे मांँगा और मेरे जन्मोत्सव में विवाह जैसा भव्य आयोजन कर रिश्तेदारों में १०,००० के कपड़े मारे खुशी के बाँट दिए....... ये सब उस देश, प्रदेश और समाज में जहांँ बेटियों के जन्म की खबर पाकर मांँ-बाप और रिश्तेदारों की छाती सूख जाती है! चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है!! तथा मन और घर में मातम पसर जाता है!!!.... जहांँ आज के इस इकीसवीं सदी में भी कन्या भ्रुण-हत्या जैसा क्रूर, घिनौना और अमानवीय कृत्य बेखटके चलन में है!! फिर बड़े नेह से, छोह से, जतन से पाला मुझे.... रेशा-रेशा गढ़ा मुझे ... भाइयों से जायदा दुलारा मुझे... पढ़ाया मुझे... डबल एम.ए., पीएच. डी. नेट. स्लेट कराया मुझे....
राखी की हिफाज़त
कविता

राखी की हिफाज़त

मुकेश गोगड़े टोंक (राजस्थान) ******************** बेख़ौफ घर से निकलने का वादा मांगती है। बहन क्या इतना सा भी ज्यादा मांगती है। जमानेभर में प्रसारित ख़बरों को देखकर। कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।। क़दम से क़दम मिलाकर जीत दिलाती है। बेसुरे अल्फाज़ो को भी सुरीला बनाती है। प्रीत के सरोवर में इतनी कलुषिता देखकर। कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।। कोख में घुटती सांसे भी रिहाई मांगती है। भाई-बहन का समान अधिकार मांगती है। पौरुष प्रधानता का इतना ढ़ोंगीपन देखकर । कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।। प्रीत के धागों में कितनी सत्यता वो जानती है। सौतेला व्यवहार देखकर भी दुआएं मांगती है। बंजर हो जाएगा जहाँ,माँ, बहन,बेटी के बिना। कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।। परिचय :-  मुकेश गोगड़े निवासी : टोंक (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स...
प्यार का बंधन
कविता

प्यार का बंधन

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भाई-बहन का रिश्ता न्यारा लगता है हम सबको प्यारा भाई बहन सदा रहे पास रहती है हम सभी की ये आस इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। भाई बहन को बहुत तंग करता है पर प्यार भी बहुत उसी से करता है बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। बहन की दुआ में भाई शामिल होता है तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है अक्सर याद आता है वो जमाना रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। वो हमारा लड़ना और झगड़ना वो रूठना और फिर मनाना एक साथ अचानक खिलखिलाना फिर मिलकर गाना नया कोई तराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना बहुत खास होता है...
हालात
कविता

हालात

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज उजड़ा सा लगे, देख तेरा संसार संकट में दिखे मानव और घर द्वार कैसे और क्या करें लगे यह मन कहाँ विपदा हैं आन पड़ी दुःखी जन जन यहाँ बहोत ही दुःखी संसार लोग रोते हुए देख मानव भेड़ियों को स्वप्न खोते हुए कितने हुए गोलियों के शिकार कितने मार खा-खा कर मरने को तैयार छीन कर वे लोकतंत्र को ले गये अपने जाते दूर देख बिलखते हुए सारी इच्छाओं को बंदूक की नोक पर पूर्ण करवा रहे महिलाएँ और बच्चे जुल्म का शिकार हो रहे शर्मसार हुई सम्पूर्ण मानवता कहाँ जाए वो सारी जनता ? छोड़ निज घर द्वार तड़पकर, जन चले विकट विपदा से हारकर कठपुतली बन नाच डोर उनके हाथ छोड़ चलें दुनिया नहीं है कोई साथ मचा हुआ हाहाकार खोज रहे हैं नव आधार नहीं उठा पा रही भू भार त्राहि-त्राहि करती सरकार कुछ तो करो भगवन कब तक यूँ मूक खड़े रहोगे? डर के साये म...
परिंदों की व्यथा
कविता

परिंदों की व्यथा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** इंसानों ने छीन ली बस्ती हमारी विरोध की नहीं हस्ती हमारी चुन-चुन काटे हमारे आशियाने आग के हवाले हमारे आशियाने नहीं सूझता रास्ता कहाँ जाऐं उड़ते-उड़ते अब कहाँ ठहर जाऐं धीमें-धीमें सिमट रहे हैं रास्ते, धीमे-धीमे घट रहे चाहने वाले जलाशय हैं, पर पानी नहीं मिलता, छते तो हैं बहुत सकोरा नहीं मिलता, नमभूमियाँ तो है, नमी ही नहीं मिलती घोंसलों के बदले अट्टालिकाऐं मिलती थक कर बैठ गये, फैली है विरानी हम बिन यह दुनियाँ है, बेमानी हमसे ही सतरंगी है, पूरासंसार हमारे मीठे रव बिन, सब निस्सार परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमा...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** राखी का त्यौहार आया, ख़ुशियों की सौगात लाया। पाने बहिना भाइयों से उपहार। बेसब्री से करती जिसका इंतजार। सजे रंगबिरंगी राखी से बाज़ार। करते मिल उत्साह का इज़हार। स्नेह बहिना ने अपनों का पाया। राखी का त्यौहार .......। श्रावण मास पूर्णिमा पर्व। स्नेहातुर करती बहनें गर्व। रिश्ता अटूट जो इस संसार। रक्षासूत्र बाँध पाती सत्कार। उत्साह भाव चहुंदिशा छाया। राखी का त्यौहार.......। रोली अक्षत घेवर संग खुशियों की बहार। रेशम की डोर से जुड़ता अपनों का प्यार। भाई बहिन का रिश्ता राखी से बनता खास। बहिना बांधती भाई के हाथों अपना विश्वास। निश्छल प्रेम भगिनी का धागे में समाया। राखी का त्यौहार.......। हो चाहे कितनी दूर फिर भी भूल न पाती है। रक्षाबंधन के अवसर बहन भाई के आती है। स्नेह-प्रीत की डोर दोनों की बड़ी...
भाई हो तो कृष्णा जैसा
कविता

भाई हो तो कृष्णा जैसा

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भाई हो कृष्ण जैसा बहना की चाह-राह विश्वासों जैसा भाई बहन का प्यार कृष्ण और सुभद्रा जैसा।। बचपन की अठखेली ठिठोली संग साथ जीवन की शक्ति जैसा बहना की मर्यादा रक्षक सिंह काल गर्जना जैसा।। नन्ही परी बाबुल घर अंगना भाई बड़ा या हो छोटा, धूप छांव में स्वर सम्बल जैसा।। भाई बहना का रिश्ता जीवन की सच्चाई, सच्चा रिश्ता माँ बापू की प्यार परिवश भाई की संस्कृतियों जैसा।। भाई बहना कि आकांक्षो का मान जीवन के संघर्षों में शत्र शास्त्र हथियारों जैसा ।। भाई बहन का प्यार संस्कार अक्षय अक़्क्षुण, धन्य धान्य बहना अस्मत आभूषण जैसा।। भाँवो के गागर का सागर भाई बहना की खुशियां भाई बहना के सुख दुःख में युग मौलिक मूल्यों जैसा।। कच्चे धागे का बंधन रिश्तो का अभिमान भाई बहन दुनियां में दो...
जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा
कविता

जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हें नफ़रत से भी प्रेम हो जाएगा......! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!! छोड़ दोगें जिद्द हमें पाने की.......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! ना रहेगा जीवन में तुम्हारे......! किसी भी मोह का साया......!! ना कोई दर्द तुम्हारे जीवन में आएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! चाहोगे देकर आजादी हमें......! ना किसी बंधन में बाँधने की कोशिश करोगें......!! सारा समां तब प्रेम के रंग में रंग जाएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! सुनाई देगी तुम्हें बातें भी वो सारी......! जो हमनें मन में कहीं होगी......!! तुम्हारा दिल भी तब गीत हमारा गाएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! समझ जाओगे प्रेम का अर्थ......! बंद आँखों से भी हमें तब देख पाओगे......!! एक दिन समय ऐसा भी आएगा.......
प्यारी बहना
कविता

प्यारी बहना

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** संग रहती थी जब बहना सब कितना मनभावन था। प्यारी बहना संग में थी तो हर दिन जैसे सावन था॥ बचपन से दो दशको तक जो साथ रही संग में खेली। मेरी प्यारी सी बहना की बचपन की यादों की थैली॥ लिए साथ में सोता हूँ करके सारी यादें भेली। चहल पहल सी थी घर में जब बेहना घर रहती थी॥ माँ की प्यारी परी, पिता की सोन चिरैया रहती थी। सब बातों में साथ थी मेरे वो तो मेरी हमजोली थी॥ बात बात पर गुस्सा होती बहना कितनी भोली थी। सजा धजा घर अँगना था वो तो थी घर का गहना॥ बचपन में ये कहाँ पता था कुछ हि दिन हैं संग रहना। हमको ये मालूम नही था शीतल पवन का झोंका हैं॥ जीवन भर वो साथ रहेगी ये तो बस इक धोका हैं। इसी बात को समझा कर होंटों को खोला करते थे॥ वह अमानत गैर की हैं बाबूजी बोला करते थे। विदा हुई तो छूप...
रक्षाबंधन
लघुकथा

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मेघा बड़ी जतन से रेशम के धागे लिए ब्रश से झाड़ रही थी! उसके पास ही तरह-तरह के छोटे-छोटे रंगीन नग-स्टोन, गोंद-कैंची रखे हुए थे! लक्ष्य परेशान था कि मांँ क्या कर रही हैं? कहीं यह राखी तो नहीं बना रहीं... !?! पर उसने स्वयं ही मांँ के दोनों भाइयों को बाजार से राखी खरीदकर पोस्ट कर दिया था। तो अब भला मांँ राखी किसके लिए बना रही हैं!?! उसकी प्रश्न सूचक हैरान दृष्टि देख मेघा ने कहा... जितेंद्र के लिए राखी बना रही हूंँ। बिल्कुल विस्मित होकर लक्ष्य बोला अरे! वह तो मुझसे भी छोटा बच्चा है मांँ! फिर उसके लिए राखी आप क्यों बना रही हैं? मेघा ने कहा- हांँ, उम्र में वह मेरे बच्चों से भी छोटा है। पर जब मेरा पूरा परिवार कोरोना महामारी की चपेट में आया मौत से जूझ रहा था और बिस्तर से उठने की स्थिति में भी नहीं था तब इसी शहर में रहने के बावजूद कोई भी हमारा रिश्...
रक्षाबंधन में पीहर की याद
कविता

रक्षाबंधन में पीहर की याद

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** आज मैं बहुत उलझन में हूं पीहर की याद ससुराल की जिम्मेदारी में फंसी हूं ये सावन की रिमझिम बारिश मुझे पीहर के संदेश दे रही है भैया ने बुलाया है यह जता रही हैं मेरा मन पीहर में, मै ससुराल में भाई तेरा प्यार तेरी नोकझोंक वो प्यार में मेरा इतराना बहुत याद आता है चंदन, तिलक, राखी, मिठाई से सजी थाली बहुत याद आएगी पवित्र रक्षाबंधन के दिन तेरी बहुत याद आएगी तेरी याद मुझे बहुत आएगी तेरी कलाई मुझे पुकार रही होगी बहन की मजबूरी समझ लेना भैया राखी कलाई में सजा लेना भैया आज मैं बहुत उलझन में हूं पीहर की याद ससुराल की जिम्मेदारी में फंसी हूं परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
लगा अक़्ल पर ताला
कविता

लगा अक़्ल पर ताला

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसा है दौर यहाँ पर लगा अक़्ल पर ताला निज सुख सर्वोपरि हो बैठा तन उजला मन काला तालिबानी सोच में जीते आज भी कतिपय लोग लूट पाट दुष्कर्म है धंधा सुरा सुंदरी भोग रह-रह के बन जाता है क्यों मज़हब हथियार मरने और मारने को लाखों हो जाते है तैयार तालिबानी सोच के कारण भारत हुआ विभक्त लाखों लोग शहीद हो गए बहा सड़क पे रक्त ख़तरनाक मंसूबा इनका संभलो बबलू बँटी गजवाये हिंद का मक़सद है ख़तरे की घंटी मानवता और महिलाओं का दुश्मन तालिबान इंसानों के शक्ल भेड़िए सब के सब हैवान जिन्नावादी सोच के पोषक तजो कबीली चोला खाक में वरना मिल जाएगा अरमानों का डोला साहिल चलो एक हो जाओ हारेगा अपकारी वरना हमें चुकानी होगी क़ीमत काफ़ी भारी परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प...
रक्षाबंधन पर्व पर हमें गर्व
कविता

रक्षाबंधन पर्व पर हमें गर्व

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** देखो-देखो सावन मास। पूर्णिमा दिवस आया। रक्षाबंधन पर्व संग लाया। अपार हर्ष रक्षाबंधन पर्व पर। प्रति भारतीय उर होता। अपार गर्व। रक्षाबंधन पर्व हर्षोल्लास। सहित मनाते बहन-भाई। बहन भाव स्नेह धागे की । राखी बांधे भाई को रोली-अक्षत। तिलक लगाकर कर नारियल। माथे वसन डाल दीर्घायु । कामना अभिलाषा करें। भाई अपनी बहन को। आशीर्वाद देवे सदा रक्षा करने। अरू खुश रहने का भाई प्रतिवर्ष। प्रतिक्षा करे रक्षाबंधन पर्व पर। बहन का भाई गृह आना। भाई-भाभी प्रतिवर्ष बहन का। वंदन अरू अभिनन्दन। करते हर्ष संग मनाते रक्षाबंधन। पर्व और करते गर्व। ऐसा आता रक्षाबंधन पर्व। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक...
रक्षा बंधन
कविता

रक्षा बंधन

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राखी प्रीत के धागों, का त्योहार। अपनत्व भाव का प्यार, स्नेह से सना उमड़ रहा भाई बहन का प्यार। मस्तक पर तिलक, लगा कर बहना करती, प्यार की मनुहार कभी, न आये रिशतों में दरार। भाई फिर देता उपहार, न सोना न चाँदी माँगू, न महल अटरियां सदा खुशहाल रहें मेरा भैया। बस दिल में एक कोना मांगू यह मेरा गहना। समय समय पर आकर, द्धारे रखना मेरी शान, तुम मेरा अभियान। तुमसे रौशन गहरा है परिवार, सदा सुखी फूलें फलें, भैया भावज का परिवार। उमंग और उत्साह जगायें रक्षाबंधन का पावन त्योहार। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में ...
क्या कसूर
कविता

क्या कसूर

पिंकी कुमारी राय तिनसुकिया, (असम) ******************** क्या कसूर उन आँखों का जिनकी चमक छीन ली जाती है चमकने से पहले? बुझा दिए जाते हैं वे दीप जलने से पहले। थोड़ी सी देर हुई थी थोड़ा ही हुआ था अंधेरा सूने रास्ते में पड़ गई थी अकेली...। रोया था उसके पिता ने उस दिन भी जब नन्हें पैरों चल गोद में आई रो रहा है आज भी जब उस नन्ही परी के मिटते अस्तित्त्व की देकर दुहाई। बस फर्क थोड़ा सा उन आँसुओं में इसलिये है क्योंकि उस दिन तुने पिता बनाया और आज पिता तुझे बचा न सका। आज हर तरफ दुर्योधन हैं उनका अट्टहास है तांडव है। हे कृष्ण! आ एक बार फिर कलयुग में बन जा सखा, मित्र और भाई बाँधूगी राखी एक नहीं हज़ार बचा ले आकर इस कल्युग की द्रोपदी का संहार। परिचय :- पिंकी कुमारी राय निवासी : ज्योतिनगर तिनसुकिया, (असम) पत्र। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिका...
रिश्तों की डोर
लघुकथा

रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य घटना पर आधारित लघुकथा जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं। एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं। तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है? उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै न...
रक्षाबंधन का त्योहार
कविता

रक्षाबंधन का त्योहार

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मंगल करने आया सब का, रक्षाबंधन का त्योहार, पुलकित हो रहे सभी जन, भर अंतस में प्यार। विश्वास का सूत्र बाँधकर, बहन भावना भरती, सुरक्षित हो मेरा जीवन, यही बहना प्रार्थना करती, हम जैसे भी है भैया! तुमने, हमें सदा दुलराया है, सुख-दुःख सब जीवन के भूले, इतना प्यार लुटाया है, स्नेह के इस महत्वपूर्ण पर्व पर, हरियाली विकसाएँ, नष्ट हुई जो प्राकृत सुषमा, उसको पुनः बढ़ाएं, धरती माँ के बन संतान हम, कर दें यह उपकार। मंगल करने आया सबका, रक्षाबंधन का त्योहार।। भैया साथ बिताये थे जो पल, उसका एहसास ह्रदय में, पुलकन यादों की हर क्षण में, अनुभूति अनेकों मन में, सब कुछ बसता भावों में, अनुभव रहता हर क्षण है, रूठना, मनाना, इतराना, कर याद स्वयं पर गर्वित हैं, श्रावण के इस महापर्व पर, आओ करें विचार। मंगल कर...
रक्षा बंधन
कविता

रक्षा बंधन

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** सदियों से रक्षाबंधन का पर्व जात-पांत से ऊपर उठकर पुनीत पर्व को मनाते हैं। राष्ट्रहित में समाज के हर वर्ग के लोग हिल मिल कर इस पर्व को मनाते हैं बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का धागा बांध पवित्र पर्व मनाते हैं। भाई से ये कामना करती हैं संकट की घड़ी मे जब भी होती है बहन याद दिलाने को यह पर्व मनाते है। रक्षा भाई करेंगे, इतिहास गवाह है रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजी थी पर अपवाद साबित हुआ। बहन-भाई यह पर्व संकल्प के रूप में मनाते है। यह पर्व भाई बहन के पावन पवित्र बंधन को उनके प्यार को अक्षुण रखता है यह पर्व धागे को प्रतीक मान मनाते है। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
धर्म आस्था और फल
कविता

धर्म आस्था और फल

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सृष्टि के निर्माता ने उसे बनाया ही कुछ ऐसा था। जिसमें सभी लोगों का समावेश होना था। ऊपर से लाखों देवी और देवताओं का समावेश। और सबकी अलग अलग सोच और विचारधारा। कौन कैसे और कब प्रसन्न हो जाते है। और खुश होकर देते अपने भक्तों को वरदान। फिर वरदानों को पाकर करते पृथ्वी पर अत्याचार। और भक्तजन फिर करते प्रभु से बचाने की गुहार। तभी तो रामायण महाभारत और भी... रचना पड़ा उस निर्माता को। जिससे बची रहे आस्था धर्म और मानव का कर्म। और पापीयों को मिले उनकी करनी का दंड। तभी सुख शांती से रह पायेंगे पृथ्वी पर सबजन।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं र...
सागर बनकर
गीत

सागर बनकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** इस तम के पर्वत पर चढ़कर सूरज लाएंगे, फिर तो उत्सव घर-घर में हर रोज मनाएंगे। दुख के बादल दाँत दिखाते द्वारे-द्वारे पर, खट-खट कुंडी बजा रहे हैं किसी इशारे पर। शीघ्र अँधेरे को इसकी ओकात बताएंगे।। थोड़ी गलती हमसे हो गयी स्वार्थ में खोए, धर्म-कर्म सब भूल-भाल तालाबों से सोए। सागर बनकर के लेकिन अब ज्वार उठाएंगे।। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मोनो एक्सप्रेस, अमृत महिमा, नव किरण, जर्जर...
बुलेटप्रूफ कांच
कविता

बुलेटप्रूफ कांच

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहले शीशे पत्थर से चकनाचूर हो जाते थे अब नही होते बुलेट प्रूफ जो आ गए है शीशे के घरों में बैठे लोग मजे से खेलते है अब पत्थरो से जब उनका दिल करता है उछाल भी देते है वे नही घबराते अब पथराव से जनआक्रोश देख वे भी आक्रोशित होते है और लेते है संकल्प जन को निपटाने का विजयी होने पर बुलेटप्रूफ कांच बचाव कर लेता है शरीर का परंतु आत्मा को मरने से नही बचा पाता मृत आत्मवाले शरीर उसके सुरक्षा घेरे में सुरक्षित होते है बुलेटप्रूफ कांच होते तो पारदर्शी है परंतु उस पर चढ़ा दी जाती है काली फ़िल्म ताकि मृत आत्मा धारक लोगो को न दिखे परंतु उसे दिखते रहे लोग और शरीर इस निर्णय पर पहुँच सके किसे पालना है किसे निपटाना है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर ...