रक्षाबंधन गीत
रशीद अहमद शेख 'रशीद'
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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सुखदाई वर्षा ऋतु आई,
धरती पर सावन मुस्काया।
राखी पर बहना उदास है,
सब आए पर अनुज न आया।
सात समंदर पार बसा है,
पत्र बहुत लम्बे लिखता है।
मोबाइल पर करता बातें,
मुखड़ा भी उसका दिखता है।
मन में कुछ बदलाव नहीं है।
बदल गई पर उसकी काया।
राखी पर बहना उदास है,
सब आए पर अनुज न आया।
अधिक व्यस्त है वह कहता है,
उसे मिला अवकाश नहीं है।
है विदेश में दुनिया सारी,
पर भारत-सा प्राश नहीं है।
माँ के हाथों निर्मित लड्डू,
जग में अनुपम कहीं न पाया।
राखी पर बहना उदास है,
सब आए पर अनुज न आया।
पापा स्वस्थ नहीं रहते हैं,
मौन बहुत रहतीं हैं माता।
केवल सात महीने बीते,
दादी त्याग गईं हर नाता।
सभी कुशल-मंगल है घर में,
भाई को बस यही बताया।
राखी पर बहना उदास है,
सब आए पर अनुज न आया।
परिचय - रशीद अहमद शेख 'रशीद'
साहि...
























