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टूटे ख्वाब

मनीष कुमार सिहारे
बालोद, (छत्तीसगढ़)
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मां के डांट से रोते मैंने,
बालक का आवाज लिखा है।
टपक गेसुऐ नयनों से उसके,
हाथों मे एक किताब लिखा है।।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है ।
मानव के हरेक शीर्षक से,
पुरे कर्मोकाज़ लिखा है।।
लोग डरते हैं जहां तर जाने से,
वही गहरे पानी का तालाब लिखा है।।
सोंच से पहले डर को आगे,
लोगों का नया इजाद लिखा है।
खुद अंधेरे मे रहकर,
प्रकाश के खिलाफ लिखा है।।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।।

एक महल के राजा का मैंने,
बदले का अभिशाप लिखा है।
राजकुमार का राह निहारे,
एक कन्या का घर मे साज लिखा है।।
नई नवेली दुल्हन को मैंने,
मां लक्ष्मी के दो पांव लिखा है।
लगे तीर सीने में आकर,
सीने में वो घाव लिखा है।।
गिरते लहु का उस बेटे से,
ममता का पुकार लिखा है।
दुल्हन की नयनों से मैंने,
बहती गंगा धार लिखा है।।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।।

खुशहाली जीवन में मैंने,
युद्धों का हुँकार लिखा है।
जलते लौ की बुझ हवा से,
हर घर में अन्धकार लिखा है।।
प्रजा भरोसी राजा का मैंने,
दुष्कर्मों का हिसाब लिखा है।
कुरुक्षेत्र सा हर कण-कण में,
लहु से लिपटे लाश लिखा है।।
थर-थर कांपे शत्रु रण में,
प्रजाओ की गुम आवाज लिखा है।
अन्त तक लड़े राजा का मैंने,
टुटी एक तलवार लिखा है।।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।।

मतलबी दुनिया में मैंने,
तुलना का हर शख्स लिखा है।
अपनो का अपनो से मैंने,
मिले दान में रक्त लिखा है ।।
शुभकार्यों से पहले मैंने,
बलि का रीति-रिवाज लिखा है।
ऐसे सोच के प्राणी का मैंने,
पृथ्वी पर जन्मोजात लिखा है।।
मस्त मगन पढ़ते बालक का,
माता का आवाज लिखा है।
पहुंच पेज़ पर पंख दबाकर,
बालक से बंद किताब लिखा है।।
अचानक वो मेरी आंख खुली तो,
टुटे सारे ख्वाब लिखा है।।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।
कि मैंने एक ख्वाब लिखा है,
आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।।

परिचय :- मनीष कुमार सिहारे
पिता : श्री झग्गर सिंह
निवासी : पटेली, जिला बालोद, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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