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अनहदें…
कविता

अनहदें…

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है, मैंने सरहदों के दायरों में रहकर ये जीवन जिया है, मैंने शिखरों की चाह नहीं थी, सरहदों की परवाह थी हमें, गुजर गयी वो हदें जिनकी परवाह थी हमें, वो अनहदों के दायरे आज भी गूँज रहे हैं। वो नयनों की रोशनी कहीं खो गयी है, पर तुम्हारी खुशबू चंदन की तरह महसूस हो रही है वो शिरोमणि चमक रही है कानों में तुम्हारी आवाजें गूँज रही हैं।। मैं शान्त और शालीनता से तुम्हें महसूस कर रही हूँ, अभी भी अनहदों से गुजर रही हूँ, वो हल्की सी मुस्कराती हुई सुबह, वो शीतल होती हुई शाम, बन्द नयनों से महसूस किये जा रही हूँ,। बन्द कानों से तुम्हारी आहटों का अहसास जम़ी पे तुम्हारे कदमों को इस मखमली दूब के सहारे महसूस किये जा रही हूँ,।। अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है मैंने, सरह...
मित्र एक हो पर नेक हो
लघुकथा

मित्र एक हो पर नेक हो

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। एक का नाम जय दूसरे का धीरेन्द्र था । दोनों ही अपने काम को बखूबी करते थे। पूरे गाँव में दोनों के चर्चे थे। एक समय ऐसा आया जब दोनों अपनी शिक्षा के लिए साथ साथ शहर में रहने लगे। शहर में रहते हुए उन्हें मात्र कुछ महीने ही हुए थे कि धीरेन्द्र गलत संगत में पड़ गया। उसे कुछ गलत आदतों ने घेर लिया था। वह अपनी आदतों के कारण घर से पढ़ाई के नाम पर लाया हुआ पैसा अपनी गलत आदतों में खर्च कर देता था। जब इस बात की भनक जय को लगी तब उसने वीरेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु जिन लतों ने धीरेन्द्र को घेर रखा था वो उसका पीछा छोड़ने का नाम नही ले रही थी। अब तो धीरेन्द्र जय के सामने कभी सिगरेट तो कभी शराब पीकर आने लगा, नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि अब वह जय की जेब से पैसे भी चुराने लगा। जय ने लाख क...
जरा देख के चलो
कविता

जरा देख के चलो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फूल हैं कम, कांटे हैं ज्यादा, जरा देख के चलो। भरोसा कम है, धोखा ज्यादा, जरा देख के चलो। मुस्कान कम, तनाव है ज्यादा, जरा देख के चलो। आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना, जरा देख के चलो। आसमां कम, औ ऊँचे मकां ज्यादा, जरा देख के चलो। फायर ब्रिगेड कम, शार्टसर्किट ज्यादा, जरा देख के चलो। परिन्दे हैं कम, बहेलिए ज्यादा, जरा देख के चलो। खरे इंसान कम, खोटे ज्यादा, जरा देख के चलो। सूरज है क़ैद, सितारे सोये, जरा देख के चलो। ये रंग-रलियां औ वो कहकहे, जरा देख के चलो। जिस्म का बाज़ार, उड़ते पैसे, जरा देख के चलो। रेशमी आँचल, अश्क़ से भींगा, जरा देख के चलो। रेंग रही मौत, उड़ते वायरस, जरा देख के चलो। ये तूफ़ान, वो बाढ़ का पानी, जरा देख के चलो। पलभर की जवानी, लंबी जुदाई, जरा देख के चलो। अम्न, तहज़ीब की बिगड़े न खुशबू, जरा देख के चलो। ...
बीस साल बाद
कहानी

बीस साल बाद

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "बीजी, देखो मेरा करनू घर लौट रहा है पूरे बीस साल बाद। मैंने एक ही नजर में पहचान लिया। जरा भी नहीं बदला है। सुलेखा-सुचित्रा, तुम भी देखो। "खुशी से उछलती कूदती अखबार हाथ में लिए सावित्री अंदर भागी। "सवि पुत्तर, कौन करनू? तू किसके लौटने की खुशी में पागल हो रही है। यहां तो कोई करनू नहीं है। "बीजी ने आश्चर्य से पूछा। "देखो, वहीं करनू जो बीस साल पहले गुम हो गया था। "कहते हुए सावित्री ने अखबार बीजी के सामने फैला दिया और अंगुली से इशारा कर करनू का चित्र दिखाने लगी। उसकी आंखों में उमड़ी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी या कि बाहर आने को मचल रही थी। उसने बीजी के सामने से अखबार उठाया और करनू के चित्र को पागलों की तरह चूमने लगी। ये सब देख कर बीजी के दिल में घंटियां सी बजने लगीं। वे फौरन समझ गई कि सावित्री क्या कहना चाह रही है। करनू के मिलने के का...
देशप्रेम
कविता

देशप्रेम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज हम सब को एक साथ आना होगा मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा, देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण उससे हम सबको बचना बचाना होगा। ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा, देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा। देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा, देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है, ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा। जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा, देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते, ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा। उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा, समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात वरना समुद्र...
दर्द की सज़ा
कविता

दर्द की सज़ा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हुआ न दर्द मुझे भी हुआ करता था, जब तुम बेमतलब मुझे तकलीफ देते थे। आए न आंखों में आंसू मेरी आंखों में भी आते थे, जब तुम बिना मेरे कुछ बोले मुझे दर्द दिया करते थे। टूटा न दिल मेरा भी टूट जाता था, जब तुम पास होकर भी अनजान बन निकल जाते थे। हुई न तकलीफ मुझे भी हुआ करती थी, जब तुम औरों के लिए मुझे छोड़ चले जाते थे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पिता
कविता

पिता

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** जो अपने पूरे परिवार के लिए है हर समय जीता, जो अपने सपनों को छोड़ बच्चो के ख्वाब है सिता, जो कभी न बताए की उस पर क्या-क्या है बिता, वो दुनिया का अनमोल रत्न है पिता। मेरा स्वाभिमान, मेरा सम्मान, मेरा अभिमान, है मेरे पिता। अपने बारे में कभी न सोचते, बस हमारे ही सपने संजोते, मेरा मान मेरी उड़ान, है मेरे पिता। गलती होने पर तुरंत कर देते माफ, उनका दिल है कितना साफ़, बाहर से सख्त अंदर से नरम, उनकी डाट भी है कितनी अनुपम। मेरी जान है मेरे पिता, दुनिया का अनमोल रत्न है पिता, जो हमेशा सब को देता, पर खुद के लिए कभी कुछ न लेता। वो महान इंसान है पिता, वो भगवान है पिता। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ...
आईना
लघुकथा

आईना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से कमरे में पड़े आईने को देखा ही नहीं था। शायद वह बुला रहा है, मन विचलित हुआ। धीरे से उसे उठाया ऊपर धूल की परत जमी थी। साड़ी के पल्लू से ही धूल साफ की। "अचानक अतीत ने मुस्कराते हुए हाथ पकड़ लिया।" अरे! अभी कुछ जिन्दगी बाकी है। आईना तो देख लिया करो। "खुश हो ना ! "हां हां, सब चित्र सामने है, वो देखो कहते, मैंने कार स्टार्ट करती मधु की ओर संकेत किया।' आई ! 'मैं दोस्त के साथ घूमने जा रही हूं, दस बजे तक लौट आऊंगी।" कार से जाती हुई मधु को मैंने दरवाजे की आड़ से देख लिया था। बीए एल एल बी कर रही मधु राष्ट्रीय खिलाड़ी, स्व. निर्णय की धनी तथा बड़ी समझदार पोती का मुझे गर्व था। उसकी हर हरकतें मेरी जिन्दगी से मिली जुली थी। फर्क इतना ही था उसे उसकी प्रत्येक ख्वाइश पूरी करने के अवसर थे, आधुनिक साधन उपलब्ध थे समाज की हर गतिविधि से वह पर...
सावन का आगमन
कविता

सावन का आगमन

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** आगमन सावन का देख है हर्षचित्त सारा वन हुआ, खिल उठी हैं पुष्प कलियां है प्रमुदित हमारा मन हुआ। भवरों की गुंजा शोर करती चढ़ा पत्तियों पर नव-यौवन है, तितलियां नित्य नृत्य हैं करतीं आया झरता देख सावन है। मयूरी की नुपुरें छम हैं करती देखो झूमें ये सारा उपवन है, पंछियों के मीठे स्वरों से देखो हुई सुगंधित ये शीतल पवन है। सरिता की धारा बहती वेग से उल्लासित हुआ ये गगन है, आकाश से देखो धरा मिल गई कैसे इक होकर लागे मगन है। मेढ़कों की गुंजा है सुनती कोयल की कू-कू को नमन है, बगियों में झूले पड़ गए हैं देखो झूमता ये सावन है। परिचय :- आरती यादव "यदुवंशी" निवासी : पटियाला, पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
धरा पर सूर्य
गीत

धरा पर सूर्य

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन, अपने जीवन का- अंधेरा भी मिटाना है, धरा पर सूर्य लाकर उजालों को चुराना है । इन केशों के जंगल की है, छाया बहुत काली, नहीं सच देखने देतीं हैं मेरी आँख मतवाली । हुई है आन्दोलित जीभ कि हमको और खाना है । ये मन, अब तो गगन को माँगते थकता नहीं देखो, कि उड़ जाता है, बाँधे से भी ये बंधता नहीं देखो । अधरों पर लगा ताला हृदय में डूब जाना है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मो...
मेरी यह अभिलाषा है…
कविता

मेरी यह अभिलाषा है…

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ********************                लावणी छंद में कविता मेरे मन की यह अभिलाषा, प्रेम बढे जग खिल जाये । राग द्वेष से हटकर प्राणी, प्रेम गले से मिल जाये ।। प्रेम से बढकर कौन जहां मे, मुझको प्यारे बतलाओ । नम्र निवेदन यही करूँगा, पाठ प्रेम का सिखलाओ ।। १ बिना प्रेम के जग की रचना, मन कैसे हो पायेगी । प्रेम रूप ही ईश्वर का है, देख अक्ल आ जायेगी ।। सच्चा ज्ञान प्रेम है मानो, काली रातें कहतीं हैं । ये कटतीं हैं प्रेम मग्न हो, अंधकार को सहतीं हैं ।। २ तुलसी सूर कबीर कहें सब, प्रेम ड़गर चलते जाना । ईश्वर तुम से दूर नहीं हैं, जाओ तो मिलते जाना ।। मीरा गाये प्रेम मग्न हो, मैं तो हरि की हो गई रे । हरि की चादर ऐसी ओढ़ी, प्रेम गली में सो गई रे ।। ३ नारद वींणा वादन करते, भज नारायण कहते हैं । जगत सार बस हैं नारायण, प्रेम गली में रहते हैं ।।...
समर्पण रिश्तो का
कविता

समर्पण रिश्तो का

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है, कमियो को करके नजर अंदाज, खूबियो को अपनाना जरूरी है! कटु वाणी को नियंत्रण मे रखकर, मृदु भाषी होना जरूरी है! गैर भी हो जाते है अपने, बस वाणी मे मिठास जरूरी है, सिर्फ लेने का भाव ना होके, देने का भाव जरूरी है! झूठ से ना जीती गई कोई लडाई, साथ सच का होना जरूरी है! गलत की भीड मे ना होकर शामिल, साथ सच्चाई के चलना जरूरी है! आईना दूसरो को दिखाने से पहले, अंतर्मन मे झांकना जरूरी है! षड्यंत्रो से रची जाती है महाभारत, मधुर संबंधो के लिए निष्पक्षता जरूरी है! भूल जाएंगे सब तेरी जिन्दगी भर की अच्छाई, बस तेरी एक गलती होना जरूरी है! किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
साहित्य और समाज
कविता

साहित्य और समाज

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** साहित्य और समाज का आपस में गहरा नाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। मनोभावों को शब्द रूप दे साहित्य रचा जाता है सत्य झलक समाज की साहित्य ही दिखलाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। नई दिशा समाज को साहित्य ही दिखलाता है सजक कर समाज को अपना कर्तव्य निभाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। निराशा में भी आशा की किरण दिखलाता है सोच-समझकर कर चलना सिखलाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। कालजयी सृजन समाज ही करवाता है साहित्य संरक्षण भी समाज करवाता है समाज साहित्य का आधार कहलाता है। कालजयी सृजन कर साहित्यकार सम्मान पाता है मर कर भी अमर हो जाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है...
आशा की किरण
कविता

आशा की किरण

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** आशा की किरण, दिखाती कविता। मुझको मुझ तक, लाती कविता। अन्तर्भावों की, अभिव्यक्ति कविता। हमें भावाभिभूत, बनाती कविता। परोपकार और परहित कर, खुशियां लेना सिखाती कविता। निस्वार्थ सेवा भाव से, हर्षित सदा करती कविता। हृदय व्यथित जब होता है, भाव अंकुरित करती कविता। मन भावोन्मत्त जब होता है, नवकाव्य सृजन करती कविता। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
वार
छंद

वार

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धार छन्द (चार वर्ण-सात मात्रा-२२२१) सीमा पार। बैरी चार। अत्याचार। हाहाकार। चारो ओर। मानो खोर। नाता तोड़। माथा फोड़। भागे लोग। बिना जोग। ऐसी होड़। खाना छोड़। ना है आस। कोई पास। काया खास। सत्यानाश । छूटे कूछ। नाही पूछ। काटे पेट। देवी भेंट। पानी आज। खोयी लाज। धोती ढाल। खोती लाल। खोटे लोग। का है योग। ना है रोध। कोई बोध। नाही नेह। कोई गेह। तेरा क्षेम। कैसा प्रेम। मानो खार। सीमा पार। रोको यार। ऐसी धार। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
कर्म में शर्म कैसी ?
कविता

कर्म में शर्म कैसी ?

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक छोटी सी चीटी भी, करती रहती कर्म यहाँ हाथी को भी मेहनत करने में, आती नहीं है शर्म यहाँ याचक भी जी लेता है, करते-करते कर्म यहाँ राजा को भी कभी न आई, राजपाट में शर्म यहाँ नन्ही चिडिया दानों के लिए, करती रहती कर्म यहाँ जंगल का राजा शिकार में, नहीं किया कभी शर्म यहाँ इस दुनिया मे भगवान ने, आकर किया कर्म यहाँ फिर इन्सान को आती है, क्यो करने में शर्म यहाँ सासें भी तब तक चलती है, हृदय करे जब कर्म यहां निर्जीव हो जायेगी काया, धडकनें करे जो शर्म यहाँ जीवन का है सार यही कि, करते रहो कर्म यहाँ मानवता से बढ़ कर दूजा, "सुकून" नहीं है कोई धर्म यहाँ स्वर्ग नरक का खेला कह कर, छलते रहते कर्म यहाँ यहीं किया है यहीं मिलेगा, जीवन का है यही मर्म यहाँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पद...
दुर्योधन नही सुयोधन
कविता

दुर्योधन नही सुयोधन

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** मैं समय ठहर सा गया युद्ध जब भीम सुयोधन बीच हुआ, उस रणभूमि का कण-कण साक्षी क्या उसका परिणाम हुआ। अंत समय तक वीर लडा़ सौ बार गिरा फिर खड़ा हुआ, हो धर्म विजेता या पाप पराजित पर वीर सुयोधन अमर हुआ। क्षण मृत्यु का निकट हुआ माधव को निकट बुलाकर बोला, संतप्त हृदय से पीड़ा निकली तत्काल संभलकर यु बोला। हे गिरिधर एक बात सुनो मैं नीच नराधम दुर्योधन हूं, मैं पाप मूर्ति में कली रूप मैं अधर्म का संचित धन हूं। मैं विषघट हूं कुलनाशक मैं अनीति का वृहद वृक्ष हूँ। भातृशत्रु मैं कुटिल कामी मैं क्रोध लोभ का प्रबल पक्ष हूं। है कितने ही अवगुण अपार मैं महाभारत का हूँ आधार, मेरे कारण गीता कही मैं पाप स्वयं सत का आधार। तुम धर्म स्वयं को कहते हो सत्य सनातन बनते हो, पापों का दमन ध्येय तेरा इस हेतु देह नर धरते हो। क्या पाप कहो ...
भौतिकतावादी संसार
कविता

भौतिकतावादी संसार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भौतिकता का प्रेमी यह जग रंग-रूप आकार सराहे करे सदा भौतिक सत्यापन दृश्य, गंध, स्पर्श, नाद से करता है पहचान सभी की चमक-दमक का सतत प्रशंसक कृत्रिम गंध से भ्रम का पोषक कोमल सतहों को शुभ माने स्वर की सरगम में डूबा है ठाट-बाट के पीछे पड़ता महलों के शिखरों को देखे कुटिया उसके लिए उपेक्षित धन से तोले मान-प्रतिष्ठा बाहर-बाहर परखे सबकुछ देख नहीं पाए अंतर्मन भौतिकतावादी संसार परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विध...
मिलन यामिनी
कविता

मिलन यामिनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं बादल गरज रहे कहीं दमक रही दामिनी तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी तरु पल्लव भी मुखरिततो हो गए पागल लताओं का संबल दूर कहीं भाग रहे मेघों के संगम तुम तुम आए नहीं मैं बांट रही जोहती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी तराजू में पंकज भी सिर झुकाए बैठ गए खग वृंद भी अपने घरों को लौट गए मैं खड़ी द्वार पर प्रतीक्षा थी कर रही तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी नीरज तरंगे भी टकरा रही कूल से अभी भी झूम रहे पाकर मधुपुष्प से कुमकुम रोली लिए मैं सजा रही आरती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी दामिनी की धमक से मेघ बोखला गए बरसा कर अमृत करण इंद्र छटा दिखा गए मैं भी गाती रही पुष्प लिए सारथी तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी देखो अब मैंघो ने प्रृषठ् भाग दिखा दिया इंद्र धर्म के सप्तरंग लि...
षडयंत्र आतुर हैं
गीतिका

षडयंत्र आतुर हैं

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जन संख्या की, जब यहाँ भरमार है ये महंगाई का मुद्दा तो सदाबहार है। जब चाहो विरोध कर सकते हो तुम कोई मौसम या फिर कोई सरकार है । दिखीं नहीं तुमको निन्यानवें अच्छाइयां मेरी ही एक गलती पर बस टकरार है। देश निगलना चाहते हैं, वह नास्ते में कहते हैं हमको भी तो इससे प्यार है । षडयंत्र आतुर हैं, आस्तित्व मिटाने को ये अपनी संस्कृति भी, बहुत लाचार है । अहिंसा के जाल की तासीर तो देखो इसे हम समझ बैठे कि शीतल बयार है । सबके सुख की, क्यों करें हम कामना जब दरिन्दों के, हर हाथ में तलवार है। तुम जो हमको, घाव देते जा रहे हो चुकायेंगे, ये तेरा हम पर जो उधार है । जब संघर्ष करना ही पड़ेगा, देर क्यों या फिर बता की मिटने को तैयार है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प...
गुरु महिमा
कविता

गुरु महिमा

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं ज्ञान का अनमोल खजाना वो ही तो पाते हैं। गुरुदेव की अमृतवाणी निज जीवन अपनाते हैं सारे जहां की खुशियां अपने कदमों में पाते हैं। दिव्यज्ञान की ज्योति जला उर का तम मिटाते हैं सही-गलत का भेद पूज्य गुरुदेव ही बताते हैं। मां-बाप तो देते जन्म गुरुदेव पहचान दिलाते हैं भवसागर से पार उतरना गुरुदेव ही सिखाते हैं। गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं जीवन की बाधाओं से सहज ही मुक्ति पाते हैं। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा
आलेख

गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव जीवन में "गुरु" का महत्व वो स्थान रखता है। जिसके बिना मानव के महत्व और असितत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तभी "मां" को प्रथम गुरु कहा गया है। जीवन में हम जिस व्यक्तिव से कुछ सीखते हैं वो हमारे लिए गुरु तुल्य है। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता है। मिट्टी को, जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है । बाँध क्षितिज रेखाओं में, नये आयाम बनाता हैं। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता हैं। ज्ञान को, जो विज्ञान तक ले जाता है। विद्या के दीप से , ज्ञान की जोत जलाता है। अंधविश्वास के, समंदर को चीर, नवीन तर्क के, साहिल तक ले जाता है। मानवता की पहचान से, जो परम ब्रह्म तक ले जाता है। सत्य -असत्य, साकार को आकार कर जाता है। जीवन-मरण, भेद-अभेद के भेद बताया हैं। वह प्रकाश-पुंज , ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है। कल आषाढ...
गुरू
कविता

गुरू

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** गुरु वही जो जीवन के अंधेरों में प्रकाश बन कर आते हैं। ईश्वर के बाद हमें ज्ञान की सीख सिखाते हैं। जीवन पथ पर जो राह दिखाते हैं। मन के भीतर वो विश्वास का दीपक जलाते हैं। हमें इंसानियत और धैर्यता का पाठ पढ़ाते हैं। गुरू वही जो संकट से लड़ना सिखाते हैं। गुरु वही जो हमें संपूर्ण मानव बनाते हैं। गुरु पुस्तक गुरु अरदास हुए। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
गुरुदेव की भक्ति
गीत, भजन

गुरुदेव की भक्ति

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** भक्ति मैं करता तेरे साझ और सबेरे। चरण पखारू तेरे साझ और सबरे। चरण पखारू तेरे साझा और सबरे। तेरे मंद-मंद दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरे मंद-मंद दो नैन...। क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन, आते है निश दिन मंदिर में। एक समान दृष्टि तेरी पड़ती है उन सब जन पर। पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर। तेरे कर्णना भर दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरी कर्णना भरे दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन।। त्याग तपस्या की ऐसे सूरत हो। चलते फिरते तुम भगवान हो। दर्शन जिसको मिल जाये बस। जीवन उनका धन्य होता। जीवन उनका धन्य होता। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब।। ऐसे गुरुवर विद्यासागर के चरणों में संजय करता उन्हें वंदन, करता उन्हें शत शत वंदन।। परिचय :- बीना ...
गुरु जीवन है
कविता

गुरु जीवन है

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** विश्व मे सबसे पहले पूजें जाते है गुरु, विश्व मे सबसे महान होते है गुरु, गुरु बिन ज्ञान कि कल्पना नही कि जाती, गुरु बिन मानवता का कोई अस्तित्व नही होता, गुरु हमें ज्ञान कि शिक्षा, दीक्षा देते है, गुरु हमारे सपनों को हमेशा साकार करते है, जीवन के सबसे पहले गुरु माँ-बाप होते है, जीवन के सबसे पहली पाठशाला हमारी घर होती है, सबके लिए गुरुओं कि जरुरत होती है, भले शिक्षा हो या कला, खेल, अभिनय, गुरु बिन कुछ नही है सकारमय, गुरु बिन जीवन है अंधकारमय, गुरु बिन जीवन है अशिक्षित, गुरु बिन जीवन है पशुओं के समान, जहां गुरु नही होते वहाँ बुद्धि नही होती, जहां गुरु नही होते वह जगह जंगल के समान है, गुरु से ज्ञान कि उत्पति होती है, ज्ञान से विज्ञान, साहित्य, कला, अभिनय, समाजिक रहन सहन कि उत्पति हो...