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मेरे सिया के श्रीराम
भजन

मेरे सिया के श्रीराम

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, मेरे सिया के श्रीराम। उनके चरित्र चित्रण से सीखे, मर्यादा ये संसार।। मोहिनी मूरत मेरे श्रीराम की, दर्शन मिले अपार। पुलकित हो उठे मन मेरा, जब भी लूं राम का नाम।। नहीं भेद करते कभी प्रभु, भावनाओं के साथ। झूठे बेर सबरी के, प्रेम से खाते हैं मेरे श्रीराम।। केवट की नौका को भी, किया प्रभु ने प्रणाम। हाथ जोड़ के केवट को, दिया भवसागर से तार।। आज्ञा से पिता दशरथ की, गए प्रभु वनवास। ऋषि मुनि की सेवा कर, किया है प्रभु ने प्रवास।। रावण पर उपकार किया, करके युद्ध अपार। तरस रहा था मुक्ति को, श्रीलंका का सम्राट।। आजीवन की साधना, लेकर शिव शंकर का नाम। राम का रूप आनंद है, चरणों में जिनके चारों धाम।। सूर्य देव आराध्य हैं, कुल दीपक हैं जिनके श्रीराम। वनवासी कहो या घट घट वासी...
अचानक एक दिन
कहानी

अचानक एक दिन

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** अरे! यह किसने इतनी ढिठाई से कमर में हाथ डाल दिया… ऋतु ने पलट कर देखा तो मनु खड़ी मुस्कुरा रही थी। ‘तौबा! मनु, तूने तो डरा ही दिया था, अचानक तू यहां कैसे दिखाई दे रही है।‘ 'यार तेरा हौसला देख रही थी। बहुत दिन बाद दिखाई दी ना, सुना था अकेले ही मस्ती मार रही है…’ ऋतु अपने मस्त अंदाज में बोले जा रही थी और मैं उसे अचंभित सी देख रही थी। वही जींस, शर्ट, बॉय कट बाल.. वही बोलने का लड़कों वाला अंदाज, कॉलेज में तो वह शरारत करने में बहुत मशहूर थी ही, पर अब शादी के बाद भी 10 साल में जरा नहीं बदली है। ‘क्यों मोटी, क्या गृहस्थी को तिलांजलि देकर मस्ती कर रही है..? मैंने मनु से पूछा- ‘क्यों यार, ऐसा तुझे मुझमें क्या दिखाई दिया… जो मुझे आवारा समझ रही है ?’ ‘नहीं रे आवारा नहीं, बस तुझे देख कर ऐसा लग रहा है जैसे तू घर के पचड़ों से दूर, ताजी सी, खिली...
बातें अनछुई
कविता

बातें अनछुई

पुष्पा खंगारोत जयपुर (राजस्थान) ******************** कुछ बातें अनछुई सी रह जाती है बात जब जज्बातों की आती है, क्या ही कहिये बातों का होना यहाँ फसानो सी जब जिंदगी हुई जाती है, रहा होगा वक्त कभी किसी जमाने में लोगो के पास एक दूजे के लिए आज तो मशीनों से बत्तर जिंदगी होती है, कभी ख्वाब आंखों में सजा करते थे आज तो नींद भी बहुत दूर रहती है, अजीब कशमकश में ढल जाती है जिंदगी न पत्थर सी है न पत्थर से कम लगती जाती है जिंदगी, कुछ बातें अनछुई रह जाती है ना भुलाई जाती है ना जहन से जाती है ll परिचय : पुष्पा खंगारोत निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
बचपन
कविता

बचपन

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** खोया है बचपन, जवानी की हसीं उम्मीद में। जैसे बेच डाला हो सबकुछ, मामूली खरीद में।। बचपन खोया, खोया भाई-बहनों का प्यार। मोह्हले की रंगत खोयी, खोये सभी त्यौहार।। मौज छुटी, मासूमियत छुटी, छुटा दोस्तों का हाथ। दिखावे के रिश्ते बनाये, लगाये बैठे है जो घात।। बचपन के खेल खोये, खोये गिल्ली-डंडा और माल दड़ी। बचपन वाला समय, नही बताती अब हाथ घड़ी।। सूर्योदय सा बचपन बीता, बीत रही दोपहर सी जवानी। कब सूर्यास्त हो जाये क्या पता, कब ख़त्म हो जाये कहानी।। सूर्यास्त होने से पहले, एक बार फिर फिर जिन्दगी को जिया जाये। चलो गाँव की तरफ सौरभ, मोहल्ले में फिर से बचपन वाली मस्तियाँ की जाये।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
स्वयं से स्वयं की पहचान
कविता

स्वयं से स्वयं की पहचान

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हो तिमिर घना, अधीरता नही स्वयं पर विश्वास हो, क्योंकि अमावस की रात मे भी निर्वाण घटित होता है कीचड़ कितना भी हो, कमल भी वहीं खिलता है दिया मिट्टी का ही हो रोशनी भरपूर देता है वो धरती का हिस्सा होता है! ईश्वर की कोई भाषा नहीं होती उस तक पहुचने का एक ही सेतु होता है , मौन का, मौन रह साधना का मौन रह कर्म करने का ! बुद्ध, महावीर या कोई संत नहीं बनना है स्वयं को अंगीकार कर स्वयं से स्वयं की पहचान कराना है ! इस राह में कुछ भी प्राप्त नहीं होता जो मिलेगा वही "स्वयं" को सार्थक करेगा, बहुत कुछ खो जाएगा, चिंता, महत्वाकांक्षा, भय, लालच, इर्ष्या, द्वेष, बेचैनी, साथ-साथ, अमूर्त दुनिया का फैलाव भी जो इंसान स्वयं बनाता है जिसमें सारा जीवन व्यतीत होता है! जिस दिन स्वयं को जानकर ...
बारूदी बस्ती
गीत

बारूदी बस्ती

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अरमानों की मौन अर्थियाँ, रोज निकलती हैं। इस बारूदी बस्ती में अब, श्वासें डरती हैं।। हिंसा ने खुशियों को खाई, जब त्योहारों की। अलगू जुम्मन बातें करते, बस हथियारों की।। समरसता से डरी पुस्तकें, आहें भरती हैं।। क्षुद्र स्वार्थ में इस माली ने, पूँजी कुछ जोड़ी। हरे-भरे सम्पन्न बाग की, मेड़ें सब तोड़ी।। कलियाँ बासंती मौसम को, देख सिहरती हैं।। डरी अल्पनाएँ आँगन से, अब मुँह मोड़ रही। हँसिया लेकर बगिया विष की, फसलें गोड़ रही।। गर्वित-गढ़ में न्याय-कुर्सियाँ, पल-पल मरती हैं।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
ह्रदय परिवर्तन
लघुकथा

ह्रदय परिवर्तन

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** एक सिद्धिप्राप्त साधु अपनी कुटिया में सोये हुए थे। रात के बारह बज रहे थे।दरवाजे पर खट- खट की आवाज हुई। साधु जी ने कहा कौन हैं? व्यक्ति ने कहा- मैं चोर हूँ। साधु जी ने दरवाजा खोल दिया और कहा- तुम्हें जो लेना है ले लो। चोर जब कुटिया के अंदर आया तब उसे कुछ भी दिखाई नहीं देने लगा जबकि कुटिया में एक दीपक जल रहा था। चोर बाहर निकला और चला गया। उसका ह्रदय ऐसा परिवर्तित हुआ कि उसने चोरी करना ही छोड़ दिया। इसके बाद वह खेती करके जीविका चलाने लगा एवं प्रवचन देने लगा। परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : ...
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम
कविता

मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम

बाल कृष्ण मिश्रा रोहिणी (दिल्ली) ******************** मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम उगता सूरज तिलक लगाता उज्जवल चंद्र किरण की वर्षा, नतमस्तक हूँ तेरे चरणों में तेरे चरणों में चारों धाम। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। तेरी माटी शीतल चंदन, जिसमें खेले खुद रघुनन्दन। जिसमें कान्हा ने जन्म लिया, कभी खाई, कभी लेप किया। सीता की मर्यादा यहाँ, यहाँ मीरा का प्रेम। मन के दर्पण का तू दर्शन तेरे आँचल में संस्कृति का मान। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। कल-कल करती नदियां अपनी संगीत सुनाए। चूं-चूं करती चिड़िया अपनी गीत सुनाए। मातृभूमि की पावन धरा, हर हृदय में प्रेम संजोए काशी विश्वनाथ की आरती, हर मन में दीप जलाए। आध्यात्म की गहराई यहाँ और विज्ञान की उड़ान। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। दिव्य अलौकिक अजर-अमर कंकर भी बन जाता यहाँ शंकर। बलिदानों की गाथा तू , तू वीरो...
दर्द बहुत हैं जिंदगी की राह में
कविता

दर्द बहुत हैं जिंदगी की राह में

सुशी सक्सेना इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** साहिब, दर्द बहुत हैं, जिंदगी की राह में। हंस के सह लूं मगर, जीने की चाह में। उम्मीदों पर क़ायम है, अरमानों की नांव, खौफ नहीं तुफानों का, अब मेरी निगाह में। जिंदगी का सच तो बहुत खूबसूरत है, मगर कांटे समेट लिए हमने, फूलों की परवाह में। परिचय :- सुशी सक्सेना निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) इंदौर (मध्यप्रदेश) निवासी सुशी सक्सेना वर्तमान में, वेबसाइट द इंडियन आयरस और पोगोसो ऐप के लिए कंटेंट राइटर और ब्लॉग राइटर के रूप में काम करती हैं। आपकी कविताएं और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। आपने कई संकलनों में भी योगदान दिया है एवं कई प्रशंसा पत्र और पुरस्कार प्राप्त किए हैं। विशेष रूप से, आपको अनुराग्यम द्वारा गोल्ड मेडल एवं वंदे मातरम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आपकी कई पुस्तकें प्रक...
शरीर की ओवरहॉलिंग का राष्ट्रीय पर्व : रविवार
व्यंग्य

शरीर की ओवरहॉलिंग का राष्ट्रीय पर्व : रविवार

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** रविवार! वो दिन जब देश के बहुसंख्यक पुरुष अपने शरीर रूपी वाहन की सर्विसिंग, डेंटिंग-पेंटिंग और फेस एलाइनमेंट की कोशिश करते हैं- और फिर थककर वापस उसी पुराने स्टार्टिंग ट्रबल वाले मोड में लौट जाते हैं। सुबह शीशे में झाँका तो माथे पर दो-चार सफ़ेद बाल ऐसे अठखेलियाँ करते मिले, जैसे मोहल्ले की गली में खड़ी बाइक को किसी मनचले ने ‘की-की’ करते हुए खरोंच मार दी हो। कभी जिन बालों को नजर न लगे, इसलिए बचपन में काजल का टीका लगाया जाता था- अब वही बाल इसलिए सफ़ेद हो रहे हैं कि किसी की नजर पड़ ही  जाए! कभी अपने बालों पर करते थे नाज़, अपना रंग जमाए रहते थे महफ़िलों में- और आज वही बाल अपना रंग बदल रहे हैं! सच कहें तो अब यह काया नामक गाड़ी, आर.टी.ओ. की अयोग्य वाहनों की सूची में और ज़िन्दगी के खेल में “एक्स...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** प्रकृति में बनकर वर्षा, हरी भरी लाली चमत्कारी प्रकृति में, बरसाती हरियाली अमृत बनकर प्रकृति को कर तृप्त सूखे से प्रकृति की प्यास, बुझाती बचाती ।।१।। प्रकृति स्वयं प्रक्रिया में करतीऋतु में वर्षा प्रकृति में कीमती उपहार लगती,अमृत वर्षा मौसम में बिन कहे आसमान से जमीन पर आंनद में प्रकृति को खूब, भिगोती है वर्षा ।।२।। प्रकृति की एक मूल आधार, मनमोहक वर्षा घनघोर घटा में उमड़ती है आसमान से वर्षा टपकती जल की असनान से बूंदे बनती वर्षा प्रकृति करती इंतजार अब आओ बरसो वर्षा ।।३।। प्रचंड, तपती, चिलचिलाती, भीषण गर्मी में असहनीय प्रकृति में मानव पशुपक्षी जीवजंतु खेत खलिहान होती जमीन वीरान सुनसान में प्रकृति से जोरशोर प्रार्थनाएं की जाती वर्षा की, ।।४।। झुलसाये, मुर्झाये प्रकृति के पेड़ पौधे की पुकार जीव जंतुओं प्राण...
इक तेरे भरोसे पे
पुस्तक समीक्षा

इक तेरे भरोसे पे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव सरल, सहज, मृदुभाषी, बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी कवयित्री मीनाक्षी सिंह की 'इक तेरे भरोसे पे' के रूप में तीसरा संग्रह है। इसके पूर्व आपका 'बातें जो कही नहीं गई' और 'निर्मल उड़ान' ने उनकी साहित्यिक पहचान को काफी हद तक स्थापित कर दिया है। ऐसे में प्रस्तुत संग्रह के प्रकाशन के बाद उनकी रचनाओं पर चर्चा परिचर्चा होना स्वाभाविक ही है। हालांकि मैं उनकी प्रथम पुस्तक की समीक्षा करते हुए जो महसूस किया था, वह काफी हद तक सफल भी मान सकता हूँ। खेल, समाज सेवा और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच साहित्य में समर्पण उनका जुनून ही कहना उचित होगा। जो उनके व्यक्तित्व को और निखार ही रहा है। प्रस्तुत काव्य संग्रह के प्रथम खंड-भक्ति भाव में पुस्तक के नामकरण वाली पहली रचना है, जिसमें उनकी अनंत सत्ता में आस्था, विश्वास...
अलबेला मौसम आया
कविता

अलबेला मौसम आया

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मौसम को मैने इस समय बदलते पाया । वास्तव में अब अलबेला मौसम है आया। ******* न पंखे की जरूरत है न हीटर की जरूरत है। देखिए मौसम कितना खूब सूरत है। ******** ऐसे अलबेले मौसम का अलग ही मजा है। मौसम खराब हो तो लगता सजा है। ******** मौसम बदल रहा है तुम मत बदल जाना। सात जन्म तक मेरा ही साथ निभाना। ******** ये मौसम प्यार का है आओ एक दूसरे में समा जायें । और दोनों मिलकर एक हो जाय। ******* चारों तरफ शांति है न कही शोर है। खुशहाली फैली चारों ओर है। ******** वे बदल गये मौसम की तरह हम इंतजार करते रहे। वे हो गये किसी और के हम सपने देखते रहे। ******** सबसे अच्छा है ये मौसम सबसे प्यारा है ये मौसम। जो करना है कर लो दोबारा नहीं आयेगा ये मौसम। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : च...
जनजाति रंग में रंगा इंदौर, धूमधाम से मनाई भगवान बिरसा की १५०वीं जयंती
देश/विदेश/प्रदेश

जनजाति रंग में रंगा इंदौर, धूमधाम से मनाई भगवान बिरसा की १५०वीं जयंती

जनजाति गौरव दिवस की इंदौर में धूम, भगवान बिरसा मुंडा की १५०वीं जयंती पर उमड़ा जनजाति समाज भगवान बिरसा की भक्ति में सराबोर हुआ इंदौर, गौरव दिवस पर दिखी जनजाति संस्कृति की झलक इंदौर। जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर इंदौर महानगर में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की १५०वीं जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई गई। इस दौरान जनजाति संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को याद किया गया। जनजातीय विकास मंच इंदौर महानगर के संयोजक श्री राधेश्याम जामले ने बताया कि सम्पूर्ण महानगर के जनजातीय समाज के भाई व बहनें यात्रा के रूप में टंटया भील चौराहे पर पहुंचे। इसी कड़ी में सभी ने टंट्या मामा भील चौराहा स्थिति टंट्या मामा भील की प्रतिमा स्थल पर पहुंच कर भारत माता, भगवान बिरसा मुंडा व टंट्या मामा की आरती कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस अवसर पर जनजाति–आदिवासी नृत्य दल ने पारंपरिक वेशभूषा एवं वाद्ययंत्रो...
सर्वदर्शी
कविता

सर्वदर्शी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** किताबों के बाद इंसानों को पढ़ने का शौक पैदा हुआ, इतना पढ़ा कि वो भी पढ़ लिया जो कभी नहीं पढ़ना चाहिए था उनके अंतर्मन का। तुमको देखने के बाद इंसानों को देखने का शौक पैदा हुआ, इतना देखा कि वो भी देख लिया जो वो छुपाना चाहते थे सदा दुनिया से। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर चर्चा कार्यक्रम
साहित्य समाचार

सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर चर्चा कार्यक्रम

इंदौर। बीती रात्रि ९ बजे किताबों की दुनिया में सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर चर्चा कार्यक्रम का सफलता पूर्वक आयोजन संपन्न हुआ। यह कार्यक्रम श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान भारत के मंच पर किया गया। इस कार्यक्रम में लेखिका सुशी सक्सेना और संस्थापिका दिव्यांजली वर्मा मौजूद थे। इस अवसर पर साहित्य, कला और संस्कृति जगत से जुड़े अनेक विद्वान, लेखक और पाठक उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान सुशी सक्सेना की पुस्तकों पर चर्चा की गई जो कि साहित्य, विज्ञान और राजनीतिक विषयों पर आधारित हैं। सुशी सक्सेना की रचनाओं में नारी जीवन, सामाजिक यथार्थ, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीय संवेदनाओं के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चा हुई। उनकी लेखनी सरल भाषा में गहरी बात कहने की क्षमता रखती है, जो हर वर्ग के पाठक से सीधा संवाद करती है। कार्यक्रम के दौरान लेखिका ने अपनी लोकप्रिय पुस्तकों के अंशों का वाचन किया गया और कुछ कवित...
मुरलीधर
भजन

मुरलीधर

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** मन बसिया, रंग रसिया गोपाल, तुझे छलिया कहूं या कहूं नंदलाल। हजारों नाम और असंख्य है अवतार, मधुर तेरी मुरली की हैं, तान ओ मुरलीधर।। गोकुलवासियों ने कोई पुण्य कमाया, जो मुरलीधर उनका सखा बन आया। सुख-दुःख का साथी बना नंदलाला, त्रिलोकी का नाथ बन गया रखवाला।। हंसी ठिठोली से चले जीवन की नैया, तारणहार ही बन गया सबका खवैया। सब ग्रामवासियों को बहुत प्रेम से समझाया, पर्वत की पूजा का जीवन में महत्व बताया।। पूजा टली इंद्र की तो, उसका क्रोध जगा, सात दिनों तक वर्षा का सैलाब लगा। त्राहि त्राहि मच गया जब चहूं ओर, तब हरी हर आये सुन दिन हीन पुकार।। गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाया, सब जीवों को उसके नीचे बसाया। मुरली की मधुर तान सुन सब भूल गए दुख और काज, तब से ही गिरधर बन गए गोवर्धन महाराज।। परिचय : रतन ...
यूँ कागज पर लिखने से क्या फ़ायदा
कविता

यूँ कागज पर लिखने से क्या फ़ायदा

इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" गोरखाना, नोहर (राजस्थान) ******************** यूँ कागज पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं, तुमने पत्थर सा दिल कह तो दिया, पत्थर पर लिखोगे तो मिटेगा नहीं। मैं तो दसतपा था फिर क्यों बुलाया, तन पर मधुमास लपेटे हुए, शरद की शीत में कमल मुरझाया, प्यास तन में लिए हुए। तुमने मुँह छिपाया तो ऐसा लगा, अब सूरज उगेगा नहीं.... यूँ कागज पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं। मैं बसंत की तीज मना लुँगा, तुम्हें कौन ऋतु बसंती बताएगा। तुम अपनी धरोहर तो दिखा, तुम्हारी धरोहर दिल में बसा लुँगा, यूँ नयनों में नयन मत डालना, फिर ये दिल किसी की मानेगा नहीं। यूं कागज़ पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं, तुमने पत्थर सा दिल कह तो दिया, पत्थर पर लिखोगे तो मिटेगा नहीं। आँख बंद की तो तुम लैला सी ...
अखंड भारत के निर्माता : सरदार वल्लभभाई पटेल
आलेख

अखंड भारत के निर्माता : सरदार वल्लभभाई पटेल

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसे वीर पुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। महात्मा गॉंधी ने जहाँ अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाया, वहीं पंडित नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण कि परिकल्पना की। परन्तु इन सबके बीच एक ऐसे पुरुष का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है जिसने भारतीय रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत की अखंडता को स्थायी रूप प्रदान किया। वे थे सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें ससम्मान “लौह पुरुष” और “अखंड भारत के निर्माता” कहा जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नडियाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता झवेरभाई एक साधारण कृषक थे और माता लाडबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। बचपन से ही वल्लभभाई में आत्मसम्मान, परिश्रम और दृढ़ संकल्प की भावना थी। उन्होंने...
बचपन की सुनहरी यादें
कविता

बचपन की सुनहरी यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** बाल दिवस आया है, फिर से शोर मचाने को, इस उम्र ने झकझोरा है, कुछ पीछे लौट जाने को। वो दिन जब हम छोटे थे, ख़्वाब बड़े सजाते थे, हर पल में था हँसी भरा, जो अब बस यादें लाते है। वो मिट्टी की गुल्लक, जिसमें सपने झनकते थे, वो कागज़ की नावें, जो बारिश में तैरते थे। वो टूटा हुआ बल्ला, जिससे क्रिकेट खेलते थे, और अम्मा की डाँट में भी, हम हँसकर मिलते थे। न फोन था, न इंटरनेट, न कोई अजब कहानी थी, बस दोस्तों की टोली, और मासूम सी जवानी थी। वो स्कूल का बस्ता, जो कंधों को झुकाता था, पर टीचर के आते ही, हर शोर रुक जाता था। आज सोचा तो याद आया, वो आमों का बाग़ कहाँ, वो गेंद जो छत पर थी, अब तक लौटी या नहीं भला। वो दादी की कहानियाँ, वो गर्मी की रातें, जहाँ परियाँ मुस्कुरातीं, और चाँद सुनाता बातें। सच कहूँ, वो दिन रेशम से भी म...
स्लोगन
कविता

स्लोगन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** शिक्षा का ना कोई मोल। जीवन बन जाये अनमोल।। बाँटो सदा ज्ञान का प्रकाश। मिलेगा मन को संतोषाकाश।। बाँटो जितना बढ़ेगा उतनासंग मिले सम्मान भी उतना।। शिक्षक हमको शिक्षा देते। जीवन की खुशियां भी देते।। हर जन-मन एक वृक्ष लगाए। हरी-भरी धरती मुस्काए।। प्रदूषण को दूर भगाओ। जन-जीवन को स्वस्थ बनाओ।। ध्वनि प्रदूषण मत फैलाओ। बीमारी को दूर भगाओ।। जल जंगल जमीन बचाओ। जिम्मेदारी आप निभाओ।। कंक्रीट के जंगल बढ़ते। कैसा मानव जीवन गढ़ते।। ताल तलैया कुँए खो रहे। खुशहाली के दौर रो रहे।। बाग-बगीचे कहाँ बचे हैं। केवल अब इनके चर्चे हैं।। अब परिवार नहीं मिलते हैं। बच्चे बालकपना खोते हैं।। दादा-दादी, नाना-नानी। इनकी केवल बची कहानी।। पति पत्नी भी नये दौर में। रहना चाहें अलग ठौर में।। दौर हाइवे आ...
अपना कहो ना कहो गम नहीं
कविता

अपना कहो ना कहो गम नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अपना कहो ना कहो गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं तुम मेरे रहो ना रहो कोई गम नहीं हम तेरे हैं तेरे ही रहेंगे सदा के लिए तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं अकेले चलोगी राह मुश्किल होगी सफर साथ चलोगी आसनी होगी तुम साथ चलो ना चलो गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं साथ तेरा मिले मंजिल मिल जायेगी उजड़े बागो में भी फूल खिल जायेगी बाद मिले ना मिले हम कोई गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं संग तेरे ये जीवन अब सुहाना लगे मन तो सुखो का अब खजाना लगे हम रहे ना रहें, फिर उसका गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं मन समंदर में मौज अब उठने लगे अरमान के दिये जलने-बुझने लगे इसको बुझाये, ये हवा में दम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निव...
बंधे हुए शब्द
कविता

बंधे हुए शब्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छोड़ दो शब्दों को स्वतंत्र, बिना दुराव छिपाव बिना घुमाव, कहने दो अपनी बात सरल और सीधी शब्दों में, ताकि न पड़े लोगों को खोजना कुछ कठिन शब्दों के अर्थ, ताकि संभावना ही न रहे कि निकल पाये अर्थ के अनर्थ, साफ शब्दों को जानने में सब है समर्थ, कवि के दिली अहसास यदि न पहुंच पाए जन मन के दिलों तक, तब उनके लिए हो जाते हैं वे तमाम शब्द बेमतलब, हां होते हैं कवियों की तलब कि वह भी शामिल हो जाये उन तमाम लोगों की फेहरिस्त में, जिन्हें लोग कहते हैं शब्दों के जादूगर, बेजोड़, बेहिसाब, बेझिझक, निडर, असल मुद्दा होता है अपनी रूह को पाठकों की रूह से जोड़ना, उड़ेलना जरूरी है उन तमाम शब्दों को जो बंध कर नहीं रहते किसी भाषाई लोगों के बंधन में, जो स्वतंत्र है अपनत्व में, खंडन में, जिस तरह नदी की बहाव को बांधकर...
तुम भी ठाकुर बन सकते हो
कविता

तुम भी ठाकुर बन सकते हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बेशक तुम को क्षत्राणी की, कोख नहीं मिल पाई होगी। हर ठाकुर की शान देखकर, तन में जलन समाई होगी।। दुख भी दुखी हुआ करता है, तुम जिसको सुख समझ रहे हो। क्षत्रिय धर्म यही है जिसको, अपना सपना समझ रहे हो।। इनके दुख लेकर जीवन में, क्या तुम सुख से सो सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर हो सकते हो।।१।। कद-काठी रँग-रूप एक सा, एक धरा का अन्न पचाते। पानी-हवा धूप-छाया में, एक सरीखा स्वाँग रचाते।। बहस किया करते हो अक्सर, इनसे हम कैसे कमतर हैं? खून एक रँग का हम सब में, फिर कैसे इतने अन्तर हैं?? चलो आज इस पर क्या मेरी, कुछ बातें तुम सुन सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।२।। तो मैं इतना बतलाता हूँ, ऐसी सीखें नहीं मिलेंगी। किसी पेड़ की दो पत्ती भी, एक सरीखी नहीं मिलेंगी।।...
लालच सिंहासन का
कविता

लालच सिंहासन का

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कहे द्रोपती ! दुर्योधन से- पतियों ने दावँ पर लगाया है, उनकी तो मति मारी है गई, तू क्यों दुष्टता लाया है। भाई भाई के बंटवारे में क्या दोष मेरा है, हे पांडव! क्यो? दुशासन के निर्लज हाथों मेरा क्यों चीर फडवाया है, अपमानित मुझे कराया है। क्यों आँख बचाते हो अर्जुन क्यों गांडीव गिर रहा हाथो से। क्यों भीम की गदा देखो छूट रही, युधिष्टिर ने मौन को साध लिया? हे गंगा पुत्र भीष्म पिता क्यों कर्मों का तुम नाश करो। दुशासन खींचो साड़ी को इसे नग्न बिठाओ जंगा पर, आज शर्त मेरी पूरी करना कोई बीच ना आए नर नारी। द्रोपती ने वस्त्र को पकड़ा है पांवो से दबा यू जकड़ा है, दोनों होंठ से दबा-दबा उस शर्म को दांतों से पकडा है, मन ही मन कान्हा को पुकारती है, तुम आ जाओ हे बनवार यदि लाज बहन की है प्यारी, तुम आ जाओ हे...