Tuesday, December 16राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

BLOG

प्रेम
कविता

प्रेम

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम का एक कठिन इतिहास रचा रचना कारों ने आज मनुज के जीवन का इतिहास बन गया कल्पित प्रेम प्रकाश किया है भाषा का श्रिंगार और काव्यों का जटिल विकास समर्पित कर डाला माधूर्य कवि ने कविता मे चुप चाप प्रेम का दे जीवन्त प्रमाण प्रकृति की बृहद छटा का राग इसी मे हरि ने ले अवतार दिया जन जन को प्रीति पराग भूमि की मूर्त कल्पना कर दिया जब माता का सम्मान तभी से राष्ट्र प्रेम का आज अभी तक गूँज रहा स्वरगान कहीं पर देश कहीं पर प्रिया कहीं माता की स्नेह प्रतीति कहीं पर वेद कहीं कूरान सभी सद्गग्रंथो मे ये गीत प्रेम है वह अनंत सी भेट दिया विधिने है जिसे समान मृत्यु से अमर लोक के बीच बना डाला इसने सोपान प्रेम है सर्व व्यापी कर्तार यही है मूर्त रूप साकार यही पाषाण सदृश्य कठोर यही निर्झरिणी निर्मल रूप ...
मीठी वाणी
कविता

मीठी वाणी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मीठी वाणी मीत मिलते, तीखी वाणी शत्रु पनपते। मीठी मीठी वाणी बोलिए जगत में मधुरता घोलिए। मीठी वाणी देव की जानी तीखी वाणी दैत्य निशानी। मीठी वाणी दिल मिलाए तीखी वाणी कहर बरपाए। मीठी वाणी औषधि बनती तीखी वाणी जहर उगलती। मीठी वाणी सबको भाती, जगत में सम्मान दिलाती। मीठी वाणी उपजे सुविचार, तीखी वाणी कुत्सित विचार। प्यारे तुम भी मीठा ही बोलो, पहले तोलो फिर मुख खोलो। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, र...
ये चमन में देखूँ
कविता

ये चमन में देखूँ

असमा सबा ख़्वाज लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर से तारी है सितम अपने वतन में देखूँ इस वबा को तू मिटा दे, ये चमन में देखूँ ढेर लाशों का बना रूह लरज़ जाती है ज़िन्दगानी है फ़ना, मौत जिसे आती है ख़ून के अश्क हैं ग़मगीन बयाँबानी है फ़िक्र उसको है कहाँ जिसकी ये सुल्तानी है वो निगहबान है लेकिन वो हयादार नहीं जान लेवा है मगर वो तो वफ़ादार नहीं मेरे अल्लाह सबा, की ये दुआ है सुन ले ज़ालिमों को तू बना नेक, सदा है सुन ले परिचय :- असमा सबा ख़्वाज निवासी : लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
सुनाइ नहीं देता अब
कविता

सुनाइ नहीं देता अब

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सुनाइ नहीं देता अब, कहीं सगीत का आलाप, लोगों की प्रतिभा भी, न दिखाती, कोई प्रताप, खुलते नहीं रोज की तरह, आज घरों के दरवाजे, जनमानस के चेहरों से, झांक रहा है, शोक संताप, नगर के रास्तों पर हंसती, खेलती थी, जो जिंदगी, बागानों में पेडो की छाव तले होता था प्रेमालाप, दीमक की तेरह खोखली, हो गईं जब, सब आशायें, मूक दर्शक बन गये हम, दूर से सुनते, रुदन, प्रलाप, जब अच्छा समय न रहा, तो ये समय भी न रहेगा, परमेश्वर की असीम कृपा से दूर होगा ये अभिशाप" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** आग से उठने वाली चिंगारी-- कुछ पल में बुझ जाती है-- कौन जानता है चिंगारी कहां और कैसे लगती है--- चिंगारियां से उभर कर आने वाला इंसान बहुत मजबूत होता है-- हर बार कोशिश की जिंदगी की चिंगारी देर तक ना जले इन रास्तों पर चलना नहीं सकता था फिर भी भी मत बोल मुझे चिंगारियां में धकेला जाता था-- जिंदगी काहे बर्बाद कर रही थी-- सोचा था वह आएंगे जरूर-- जिन्हें हर वक्त सहयोग देता रहा सोचता रहा वह कहां है -- क्यों नहीं आते आज इंसान दोमुंहा क्यों हो गया है यहां कुछ वहां कुछ ---- कभी खुदा को धोखा देता है कभी खुद को धोखा देने में लगेरहता है गरीबी क्या है-- कैसे आती हैं यह स्वार्थ लोगों की उपज है जो सिर्फ अपने लिए सोचते हैं-- गरीबी का मजाक उड़ाते हैं हर वक्त अपने सम्मान -- दिखावे के लिए तो हर पल दान देना चाहते हैं हर वक...
नई मिसाल
Uncategorized

नई मिसाल

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** गगनचुंबी इमारतों की भीड़ में, आक्सीजन के अभाव में, लम्बे-लम्बे कतारबद्ध पेड़-पौधों से युक्त हरियाली वाला शहर विकास की राह में जाने कहाँ खो गया? भरी दोपहरी में एक ठंडी छाँह ढूंढ़ रहा युवक आज साँसे मांग रहा हैं, नन्ही चिरैया, तोता,कबूतर अपना ठिकाना ढूँढ़ रहे है, हे ! अट्टालिका वीरों दो इंसानियत की नई मिसाल, झगझोरों अपने नवस्वप्न को करो नवसंकल्प पहले हरे वृक्ष, खुली हवा, शुद्ध आक्सीजन मिले सभी को फिर हो शहर का विकास। परिचय :- डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय शिक्षा : पीएच.डी, एम.ए हिन्दी साहित्य, बी.जे.एम.सी, आयुर्वेद रत्न। निवासी : इंदौर, (मध्यप्रदेश) रुचि : लेखन,पठन,पर्यटन प्रकाशन : विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में नियमित बाल कहानी, लघुकथा, कविता का प्रकाशन। सम्प्रति : निजी महाविद्य...
इश्क को
कविता

इश्क को

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हरीफ़ इश्क को कुचलने मे लगे है वो मस्ती में मचलने में लगे है ** ख़्वाब हमारे सभी पलने लगे है क्यों हमें पिछे से छलने लगे है ** कामयाबी की ओर धीरे-धीरे बढे दिल ही दिल अपने जलने लगे है ** हर पल साथ रहने के वादे करते थे वो भी आज हमसे दूर रहने लगे है ** शिकायत नहीं की अब तक कहीं नजर बचा कर वो निकलने लगे है ** किस पर यकीं करूं किस पे नहीं सोच - सोच वो बुदबुदाने लगे है ** माफी भी शायद दे सकू या नही मै क्योंकि सरेआम वो कुचलने लगे है ** लाख बन जाएं भले वो गुलाब पर मेरी ऑखो मे वो अब चुभने लगै है ** जब बूलंदीयो को हम छुने लगे है मोहन हरिफ़ो के सुर बदलने लगे हे ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घ...
तम्बाकू: एक भूरा जहर
कविता

तम्बाकू: एक भूरा जहर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आया प्रचलन अमेरिका से, दुनिया में बोया जाता है। आर्यावर्त में नंबर दूसरे पर, यह पाया जाता है। हो जाती है सुगंध की कमी, जब यज्ञ पूजा में, तंबाकू ताजगी खातिर, तब सुलगाया जाता है।। मगर देखो कैसा रूप, धारण कर लिया इसने। तम्बाकू सुर्ती खैनी का बिजनेस, कर लिया जिसने। धरा पर रूप धारण करके, चूरन बनकर आया। मुखों में हम सबके घाव, कैंसर कर दिया इसने।। बीड़ी सिगरेट जैसा उपयोग, इसका धूम्रपानों में। धुँआ बन जहर भरता है, यह तो आसमानों में। तम्बाकू हुक्का चिलम की, आदत बनकर देखो। लगाता आग सीने में, श्वशन के कारमानों में।। लिखा हर पैक पर होता, तम्बाकू जानलेवा है। फिर भी हम खाते हैं इसको, जैसे सुंदर सा मेवा है। समझ आता नहीं हमको, मेधा चकरा सी जाती है। जानलेवा बिके थैली में, तो यह कैसी सेवा है।। धारा बर्बादी की ब...
सेवा
कविता

सेवा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** रख लो सेवा भाव, मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । बनेंगे बिगड़े काम रख लो सेवा भाव मन तेरा खुश रहेगा। दया धर्म हृदय में रख लो दीन दुखी की सेवा कर लो कर लो कुछ उपकार मन तेरा खुश रहेगा । जैसी सेवा बने तुम कर दो तन से मन से या फिर धन से दुआ मिले भरपूर मन तेरा खुश रहेगा । संतों की करना सेवकाई गरीब से ना करना बेवफाई मिल बांट कर के तू खा ले सब मेरी जान है भाई मन तेरा खुश रहेगा। मन तेरा खुश रहेगा। अगर तेरे पास है ज्यादा उसमें से तू बात दे थोड़ा एक चेहरे पर मुस्कान तू लेआ मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । ना मैं मंदिर में रहता हूं ना मैं मस्जिद में रहता हूं किसी दुखियारे की कर लो सेवा मैं तो वही रहता हूं मन तेरा खुश रहेगा।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा ...
सतरंगी आसमान
कविता

सतरंगी आसमान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं | मेरे शहर की एक बहुत खूबसूरत तस्वीर सजा रहे है | सफेद रंग कण मानवता के कैनवास पर बिखर कर मसीहा बन कर अनगिनत ज़िन्दगानी बचा रहे हैं | नीले पराग अपने हाथों में असीम कर्त्तव्यता भर कर तन और मन से इंसानियत की सेवा किए जा रहे हैं | परिश्रम की आग में तपते झुलसते कुंदनी खाकी रंग अमन और चैन के फौलादी स्तंभ बनाए जा रहे हैं | नेतृत्व की काबिलियत की शक्ति से भरे अद्भुत रंग शहर को फिर एक बार से जीने काबिल बना रहे हैं | स्निग्ध स्नेह और अपनत्व के खुदरंग घुल मिल कर निस्वार्थ भाव से सेवाएँ और महादान लुटाए जा रहे हैं | सकारात्मकता के चटकीले रंग से सजे कई लाख मन हर पल हर एक के लिए जीवनी दुआएँ किए जा रहे हैं | खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं |...
भूल गई थी सच्चाई ये
ग़ज़ल

भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** भूल गई थी सच्चाई ये, वो अपनी नादानी से। मछली कैसे रह पाएगी, दूर, गई जो पानी से।। मानवता तो आभूषण है, मरने तक जो साथ रहे। मानव कैसे भुला सकेगा, मानवता मनमानी से।। तर्क जीत भी जाए लेकिन, सच तो हार नहीं सकता। ज्ञानी कब हारा है लोगों, दुनिया में अज्ञानी से।। नाहक, चुपड़ी रोटी खाए, हक जेलों में सिर पीटे। आंखें देख रही है मंजर, सारा ये हैरानी से।। नम होने की देर फकत है, मिट्टी है जरखेज बहुत। जल्दी ही चहकेगा गुलशन, बाहर आ वीरानी से।। माना जान है तुझमें लेकिन, है क्या जानवरों सा तू। कब तक दूर रखेगा खुदको, तू फितरत इंसानी से।। दूर करें क्यों "अनंत" उनको, रूहें जिनकी एक हुई। मर जाता है दूर हुआ तो, दीवाना, दीवानी से।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७...
तेरा एक बार संवरना बाकी है
कविता

तेरा एक बार संवरना बाकी है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन में संवारती आई हो तुम, चेहरा तेरा लगता जैसे शाकी है, बहुत बार संवार चुकी हो प्रिय, तेरा एक बार संवरना बाकी है। पैदा हुई जब परिवार ने संवारा, रूप तेरा हर जन को था प्यारा, तेरा एक बार संवरना बाकी है, कह रहा है पागल दिल हमारा। बड़ी हुई तब बच्ची कहलाई थी, पोशाक नई-नई कई मंगवाई थी, बचपन में जब तुम संवरती रहती, दिल में तुम बहुत ही इतराई थी। मेहमान जब कभी घर में आते, नई-नई पोशाक चुनकर के लाते, पहनाकर तुम्हें बेहतर से कपड़े, परियों की कई कहानियां सुनाते। सजने संवरने का क्रम यूं चला, मां बाप का मिलता रहा दुलार, पहन पोशाक रंग बिरंगी तन पे, भाग दौड़ की नहीं मानी है हार। युवा अवस्था में जब रखा है पैर, नहीं जमाने में तब युवा की खैर, सभी अपने ही तुम्हें लगते रहे हैं, माना ना तुमने कभी कोई भी गैर। ...
कलम ही ताकत है
कविता

कलम ही ताकत है

वंशिका यादव बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) ******************** गम,खुशी, दर्द, मोहब्बत हर चीज का हिसाब रखती है। ये लेखनी है जनाब जो हम सभी के अल्फाज़ लिखती है। इस कलम के सहारे ही हमने कितना कुछ सजोया होगा। इस लेखनी के ताकत से ही हमने कितना कुछ पाया होगा। अपनी जिंदगी के पलो को लेखनी से ही सजाया है। और इस कलम के बूते ही मैंने बहुत कुछ पाया है। ये कलम लिखती है किसी की मौत या फिर जिन्दगी। मैं अपने जीवन भर करूंगी इस कलम की बन्दगी। एक आम इंसान के लिए मामूली सी चीज है कलम। मुझसे पूछो! यारा मेरे लिए जन्नत है कलम। इन्दौरी साब, गुलज़ार साब ने नाम कमाया है। मैंने अपना कलम को ताज पहनाया है। कलम मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा साया है। इसी के दम पर ही मैंने जन्नत पाया है। वैसे तो मैंने जिन्दगी में बहुत सी चीजें पायी हैं। पर मैं दुनिया की सबसे अमीर हूँ क्योंकि मेरे हिस...
मन होता है
कविता

मन होता है

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन होता है कभी-कभी उड़ती तितलियों को देख मेरा मन भी होता है कि उड़ जाऊँ और स्वयं को आकाश के सप्त रंगों से रंग लूँ। नदी को देख लगता है निर्मल धार बनकर कल-कल बहती रहूँ। जब मन का कोई कोना घोर अंधेरे में होता है तब निशा से पूछने का मन होता है क्यों खाली-खाली सा है मन कहीं कोई आशा का चिराग क्यों नहीं जलता है ? उगते सूरज से पूछने का मन होता है भोर के संग क्यों नहीं उठती उमंग ? मन के अंतर्द्वंद से पीछा क्यों नहीं छूटता है? चलते रहते हैं प्रश्न मन को दौड़ाती रहती हूँ। मन तो आखिर मन है कभी होता उदास कभी कहीं खुशी के पल ढूँढता है। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
वृक्ष की तटस्था
कविता

वृक्ष की तटस्था

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हे ईश्वर मुझे अगले जन्म में वृक्ष बनाना ताकि लोगों को ओषधियाँ, फल-फूल और जीने की प्राणवायु दे सकूँ। जब भी वृक्षों को देखता हूँ मुझे जलन सी होने लगती क्योकि इंसानों में तो अनैतिकता घुसपैठ कर गई है । इन्सान-इन्सान को वहशी होकर काटने लगा वह वृक्षों पर भी स्वार्थ के हाथ आजमाने लगा है। ईश्वर ने तुम्हे पूजे जाने का आशीर्वाद दिया क्योंकि बूढ़े होने पर तुम इंसानों को चिताओ पर गोदी में ले लेते शायद ये तुम्हारा कर्तव्य है। इंसान चाहे जितने हरे वृक्ष-परिवार उजाड़े किंतु वृक्ष तुम इंसानों को कुछ देते ही हो। ऐसा ही दानवीर मै अगले जन्म में बनना चाहता हूँ उब चूका हूँ धूर्त इंसानों के बीच स्वार्थी बहुरूपिये रूप से। लेकिन वृक्ष तुम तो आज भी तटस्थ हो प्राणियों की सेवा करने में। परिचय :- संजय वर्मा "द...
ये हवाएँ
कविता

ये हवाएँ

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** ये हवाएँ....मन को चीरते हूए..... मेरी रूह को छेड़ रही है..... लगता है....छू कर तुम्हें..... मेरी ओर बड़ रही है..... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... गंध तुम्हारा..... स्पर्श तुम्हारा..... एहसास एक नया सा साँसों में खोल रही है..... उलझ कर मेरे बालों से खेल रही है..... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... बार बार टकराकर मुझसे..... बस एक ही आवाज मेरे कानों में दे रही है..... भटकाकर मुझकोे मुझ से...... तुम्हारा नाम मेरे ध्यान में भर रही है.... ये हवाएँ.....कुछ कह रही है...... लेकर तुम्हारा नाम बह रही है..... कभी दायीं तरफ से.....तो कभी बायीं तरफ से..... अपने भँवर में मुझे ये कैद कर रही है..... आकर मेरे करीब तुम्हारी याद दे रही है..... ये हवाएँ.....
कुछ इस तरह
कविता

कुछ इस तरह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हम बिखरगे कुछ इस तरह कि तुम संभाल भी न पाओगे। हम टूटेंगे कुछ इस तरह तुम जोड़ भी न पाओगे। हम लिखेंगे कुछ इस तरह कि तुम समझ भी न पाओगे। हम सुनाएंगे दास्तां कुछ इस तरह कि तुम कुछ कह कर भी न कह पाओगे। हम जाएंगे इस जहां से कुछ इस तरह कि तुम्हारे बुलाने पर भी कभी लौटकर न आएंगे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
अंगूर की ये बेटी
ग़ज़ल

अंगूर की ये बेटी

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** २२१ २१२२ २२१ २१२२ अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन अंगूर की ये बेटी कितनी है ग़म कि मारी। रहती है क़ैद हरदम बोतल में ये बेचारी।। बेबस समझ के इसको जिसने भी चाहा छेड़ा। कितनों ने साथ इसके यूँ रात है गुजारी।। दर-दर भटक रही है सड़कों पे बिक रही है। है बदनसीब कितनी अंगूर की दुलारी।। गलियों से ये महल तक हर रात बनती दुल्हन। देखो नसीब इसका फिर भी रही कुंवारी।। ग़म हो या हो खुशी ये होती शरीक सब में। फिर भी इसे बुरी क्यों कहती है दुनिया सारी।। दिल टूटा जब किसी का इसने दिया सहारा। ग़म के मरीज़ों को है ये जान से भी प्यारी।। समझा न ग़म किसी ने देखो निज़ाम इसका। हँस-हँस के सह रही है हर ज़ुल्म ये बेचारी।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)...
मेरे जीवन साथी
पत्र

मेरे जीवन साथी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जीवन साथी, हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सही है कि मुझे गुस्सा कुछ अधिक ही आता है, मैं समझता भी हू्ँ, पर क्या करूँ तुम साथ होती तो शायद कुछ बदलाव हो भी जाता, पर ये नापाक पाक के समझ में कहाँ आता है? पाकिस्तान सिर्फ़ हमारे मुल्क का ही नहीं कहीं न कहीं हम दोनों का भी दुश्मन है। वह तो बस जैसे इसी ताक में रहता है कि इधर हम अपनी महरानी के पास पहुंचे और वो बार्डर पर कुछ न कुछ बघेड़ा खड़ा कर दे। हमारा दुर्भाग्य देखो कि जब जब लम्बी छुट्टियां मिली भी, ये नापाक पाक कबाब में हड्डी बन ही जाता है। मगर तुम निराश मत हो, मैं भी अपनी टुकड़ी के साथ सालों की नाक में दम करता रहता हूँ।खैर...छोड़ो। मैं कह नहीं पा रहा हू्ँ फिर भी कोशिश कर रहा हू्ँ। ये अलग बात...
पुरानी यादे
कविता

पुरानी यादे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कैसे भूलूँ में बचपन अपना। दिल दरिया और समुंदर जैसा। याद जब भी आये वो पुरानी। दिल खिल जाता है बस मेरा। और अतीत में खो जाता हूँ। कैसे भूलूँ में बचपन अपना।। क्या कहूं उस, स्वर्ण काल को। जहां सब अपने, बनकर रहते थे। दुख मुझे हो तो, रोते वो सब थे। मेरी पीड़ा को, वो समझते थे। इसको ही स्वर्णयुग कह सकते ।। मेरा रहना खाना और पीना। माँ बाप को, कुछ था न पता। ये सब तो, पड़ोसी कर देते थे। इतनी आत्मीयता, उनमें होती थी।। अब जवानी का, दौर कुछ अलग है । शहरों में कहां, आत्मीयता होती हैं। सारे के सारे, लोग स्वार्थी है यहाँ के। सिर्फ मतलब के, लिए ही मिलते है।। पत्थरो के शहर, में रहते रहते । खुद पत्थर दिल, हम हो गए है। किस किस को दे, दोष हम इसका। एक ही जैसे सारे, हो गए है।। अन्तर है गांव और शहर में। अपने और पराए में । वहां सब...
तोहफा जिन्दगी का
कविता

तोहफा जिन्दगी का

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** कल भी मेरा था, आज भी मेरा हैं ये जग भी मेरा है फिर किस बात की चिंता है, सब अपने पराये है ये दुनिया तो एक रेन बसेरा है। ये धरती ये आसमां खूबसूरत दुनिया का तोहफा है। मुस्कुराते, गुनगुनाते हुए आज के सफ़र को अपनी खुशी समझो यही प्यार का तोहफा है। जाने अनजाने मुलाकात उस रब से हो जाये प्रीत की रीत चंदन की खुशबू की हवाओं में बिखेर देना ताकि सांसौं को मिलें एक नया तोहफा। जानते हों रब से बात तो एक मजाक था मैं ईश्वर को अपने अन्दर देखता हूं, अपनों में देखता हूं, चंचल है, चकोर है, नित नये स्वरूप लिए दिखाई देते हैं गगन जब गहरी नींद में होता हूं मेरे करीब आकर बैठ जाते हैं सपनों का सागर लिए मधुबन में कहते यही प्रिय तुम्हारा तोहफा है। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया म...
आदमी
कविता

आदमी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** खुद तमाशा आजकल बनने लगा है आदमी खुद की परछाइयों से अब डरने लगा है आदमी टुकड़े कर रहे हैं हम धर्म और भाषा की इसलिए नफरतों की भीड़ में चलने लगा है आदमी सारी खुशियां पास है अपने फिर भी कस्तूरी की तलाश में भटक रहा है आदमी घर परिवार संगी साथी सब छोड़ कर पैसों के पीछे भाग रहा है आदमी आज स्वार्थ की खातिर अपनो को मार रहा है आदमी क्या आदमखोर हो गया है आदमी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार ...
बेटी बना पाओगे क्या…?
कविता

बेटी बना पाओगे क्या…?

अर्जुन सिंघल जालोर (राजस्थान) ******************** बेटी बना पाओगे क्या...? बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या घुंगट मे रहना पसंद नही मुझे, इस प्रथा को ठुकरा पाओगे क्या मै एक बेटी थी, बेटी सा अनुभव करा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या अकेली काम करना मुझे पसंद नहीं, आप हाथ बटा पाओगे क्या तवे पर रोटिया सेंकी मुझसे जाती नही, आप सिखा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या हर बार मेरा चुप रहना मुझे भाता नही, कभी मेरी भी राय ले पाओगे क्या कभी मम्मी की तो कभी पापा की याद मे, उन जैसा प्यार कर पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या मम्मी के डाटने पर, पापा की तरह चुप करा पाओगे क्या कभी डर लगने पर, पापा की तरह गले से लगा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी सा सम्मान दे पाओगे क्या काम करते-करते,...
मिलो तो तबीयत से
ग़ज़ल

मिलो तो तबीयत से

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मिलो तो तबीयत से मिला करो। दिल खोल कर मुस्कराया करो।। कितने दिनों की है ये जिन्दगी। खुश होकर जिन्दगी जिया करो।। दिल से दिल मिला कर जीओ। मौज से जिन्दगी को जिया करो।। अपनों से जी भर मिला करो। हालचाल सबके पूछते रहा करो।। सदा प्रसन्नता से जिन्दगी जीओ। क्रोध से भी कोसों दूर रहा करो।। हम आपस में यूँ ही मिलते रहें। दुआ सबके लिए भी किया करो।। सुख-दुख का नाम ही है जिन्दगी। तालमेल से ही 'नाचीज' जिया करो।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
क्या नहीं है मुझमें
ग़ज़ल

क्या नहीं है मुझमें

विकास सोलंकी खगड़िया (बिहार) ******************** देखो क्या-क्या नहीं है मुझमें सब कुछ तुझसा नहीं है मुझमें। मिट्टी पानी वही आग हवा केवल आसमा नहीं है मुझमें। आती - जाती बहारें तो हैं कोई ठहरा नहीं है मुझमें। आईना देख के लगता है सब पहले सा नहीं है मुझमें। दुनिया से अब छुपाऊं क्या मैं कुछ भी ऐसा नहीं है मुझमें। इतना खाली हुआ सोलंकी कुछ आज बचा नहीं है मुझमें। परिचय :-विकास सोलंकी निवासी : खगड़िया (बिहार)) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करक...