मौन संवाद
माधुरी व्यास "नवपमा"
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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चाँदनी ने चाँद से,
यूँ पूछ ही लिया आज।
बुझे-बुझे से तुम,
क्यों रहने लगे हो उदास।
चाँद ने चाँदनी को,
दिया न कोई जवाब।
नजरों को झुकाकर,
और हो गया उदास।
देख चाँदनी ने फिर,
प्रश्न किया दूजी बार।
मेरी धूमिल होती छटा,
तुम्हे पसंद है मेहताब?
चाँद ने हो सजल,
चाँदनी को देखा इस बार।
खिन्नता का लिए आभास,
वो चिंतित, उदास।
फिर बोली चाँदनी,
मुस्कुराओ ना एक बार।
कोई तो कारण होगा,
जो इतने हो उदास।
गम्भीर होकर चाँद ने,
कही मन की बात।
धरा बहन के दर्द से,
मुझे होता रोज विषाद।
जिंदा रहने के लिए
वहॉं होते रोज फसाद।
प्रतिदिन चीत्कारों से,
हृदयविदारक निनाद।
मुस्कुराकर बोली चाँदनी,
ऐसा हुआ है कई बार।
ये समय भी कभी, न रुका था,
न रुकेगा इस बार।
जो वक्त बुरा बीत रहा है,
जल्द बीत ही जायेगा।
सृष्टि का हर ...

























