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कोरोना काल की व्यथा
कविता

कोरोना काल की व्यथा

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** घिरी अमंगल घोर घटाएं। अपना कहर रही बरपाएँ। यही निवेदन प्रभुजी करता जग पर कृपा रस बरसाएं। सहमी सहमी गुलशन क्यारी उसके गन्धित पुष्प बचाएं। जहर घुला है प्राणवायु में, सबसे पहले शुद्ध बनाएं। घुसे गुफा में हम बैठे हैं बाहर जाने के दिन आएं। पंख हमारे सिकुड़ गए हैं, नभ में कैसे भी फैलाएं। क्रूर काल के वैश्विक पंजे, काटे छाँटे चक्र चलाएं। मुँह को बांधे क्या जीना है, जीते हैं पहचान छिपाएं । घर घर के विस्तर हैं पीड़ित, सोच रहे हैं कब मुस्काएं। युवा दिलों की धड़कनसोचें बैंड हमारे कब बज पाएं। बस्ते लेकर बच्चे गुमसुम कब से हम फिर शालाआएं। पार्को में पसरे सन्नाटे, भूले कैसे सैर कराएं। मेहनतकश के बच्चे भूखे खाली थाली रोज बजाएं। सुबह साँझ में कैसा अंतर, सन्नाटों को क्या समझाएं। सुंदरतम कवितायें भी अब ताली से वंचित रह जाएं। ग...
सीढ़ियां
कविता

सीढ़ियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने ख्वाब पूरे करने हों तो शाम, दाम, द़ंड, भेद के साथ हर हथकंडे भी स्थिति के अनुसार अपनाने में कोई हर्ज नहीं है, ख्वाब साकार हो रहा हो तो किसी भी हद तक गुजर जाना या यूँ भी कह लें किसी की लाश पर तम्बू लगाने में तनिक भी गुरेज नहीं है। आपकी तरह मैं बेवकूफ नहीं हूँ, अपना जमीर जिंदा है मात्र दिखाने के लिए अपनी कामयाबी को पीछे ढकेल दूँ मुझे मंजूर नहीं है। मेरे ख्वाब जितने ऊँचे मेरा जमीर उतना ही नीचे है, आप भी ये जान लें अपने ख्वाबों को मैंने खून से सींचे हैं, अपना तो जमीर जिंदा नहीं है यारों तभी तो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़कर यहां तक आखिरकार पहुंचे हैं। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर...
इंसाफ
कविता

इंसाफ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** काल कहीं दूर नहीं है आसपास ही घूम रहा है, देख रहा है सबकी भावनाओं को, परख रहा है सब की डगमगाती आस्थाओं को, देख रहा है मानव से दानव बने इंसान की चलाकियों को। काल झांक रहा है खिड़कियों से दरवाजों से उसी तरह जिस तरह तुम झांकते हो दूसरों की बहू बेटियों को। बस फर्क इतना है काल झांक रहा है तुम्हारे किए गए गुनाहों को। और तुम आज भी छिपा रहें हो अपनी गंदी निगाहों को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
नन्हा दीया
कविता

नन्हा दीया

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सहमी सहमी प्रकृति थी, पक्षी लौट रहे थे क़तार में, सूरज झांक रहा था, बादलों की ओट से, नभ में रंग उड़ेल दिया चित्रकार ने, पवन की गति थी घीमी, स्थिर थे वृक्ष के पत्ते, साँस की गति हो गई घीमी, छा गई उदासी मन में जीवन में न थी कोई ख़ुशी भरी थी नमी आँखों में, आँसू बैचेन थे लुढ़कने को, अमावस्या ने चुरा लिया था चाँद को, तभी नन्हे दीये ने सिर उठाया, आशा की लौ जलाई प्रकाशित हुआ कोना यह देख अनगिनत दीयों ने हाथ मिला सब हुये साथ एक एक दीया प्रज्वलित हुआ, जगमगा उठी सृष्टि सारी मानवता जाग उठी दिया सबने सहयोग अपना प्रकृति ने सँभाली अपनी कमान आज की विषम परिस्थिति का मुक़ाबला किया सबने मिलकर नन्हे दीये का प्रयास हुआ सार्थक, ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई चारों और। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और प...
जग की कल्याणी
कविता

जग की कल्याणी

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शिशु को नौ मास देह में रखकर गर्भ में ही पोषण आहार कराती है । जनम देकर इस जगत् में तूम उस दिन से ही तू माॅ कहलाती है ।। नहलाना धुलाना और संवारना लाड प्यार से आगे बढ़ाती है । बोलना चलना और सिखाकर बड़े ही स्नेह से बात मनवाती है।। जनम देकर इस जगत् .............. जब बड़ा हुआ उम्र पढ़ने का एक-एक अक्षर ज्ञान कराती है । खुशमिज़ाज खुशहाल होकर अपना संपूर्ण कर्तव्य निभाती है ।। जनम देकर इस जगत् .............. पढ़ा लिखा गुणवान बनाकर महापुरुषों का दर्शन बताती है । नारी जग का कल्याणी तू माॅ मातृ शक्ति का पाठ पढ़ाती है ।। जनम देकर इस जगत् .............. शारीरिक मानसिक व चारित्रिक और सर्वांगिण विकास कराती है । परिवार ही समाज का प्रथम शाला पहला गुरू यह माॅ बतलाती है।। जनम देकर इस जगत् .............. सत्-असत् मार्ग परख कर सत्य-पथ पर ...
शंकराचार्य शंकर
कविता

शंकराचार्य शंकर

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जन्म लिया कलाडी केरल चेर शंकर बने शंकराचार्य ब्राह्मण घेर मृत्यु हुई केदारनाथ ३२ उम्र उत्तराखंड मठ स्थापित किए गए देश में चारो खंड शृंगेरि गोवर्धन, शारदा और ज्योतिराखंड शृंगेरि शारदा पीठ दक्षिण में रामेश्वरम गोवर्धन मठ उड़ीसा पूरी मे हे स्थित शारदा मठ दारिका मे हे आया ज्योतिर्मय मठ बद्रीनाथ उतरा खंड चारो दिशा में चार मठ इन्होंने लगाया माता सुभद्रा, पिता थे शिव गुरु भट्ट शिव आराधना से सुंदर पुत्र रत्न पाया तीन साल में माता पिता को खोया नाम पवित्र शंकर इन्होंने था पाया शंकराचार्य ने स्थापित किया दशनामी सम्प्रदाय गिरीपर्वत सागर पूरी सरस्वती वन अरण्य तीर्थ आश्रम वैदिक धर्म जैन राजन सुधनवा ने वह अपनाया भागवत गीता उपनिषद की टिप्पणी ताम्र पत्र लिखवाया था राजा सूधनवा कवि गुलाब कहे शंकराचार्य सभी नहीं बन पाता ...
मुट्ठी भर न मिला अनाज
कविता

मुट्ठी भर न मिला अनाज

प्रीति नेमा भैंसा, (नरसिंहपुर) ******************** अपनी विजय पर मत इतराना कर न कभी तू इस पर नाज मिट्टी से कुछ पूछ ले बंदे सोता कहां सिकन्दर आज उनका भी कुछ पता पूछना लूटा करते थे जो लाज जितने राजे महाराजे थे उनके आज कहाँ हैं ताज जो मालिक थे रतन खान के भूखे ही मर गए बेताज न तो मिला कफन ही उनको न मुट्ठी भर मिला अनाज जाना जहाँ है तुम्हें अंत में कल भी था सुनसान है आज न शहनाई न बाजे- गाजे वहाँ काम न आये साज प्रभु की लाठी जब पड़ती है सदा पड़े वो बेआवाज़ बिन कौधे बिजली गिरती है यमदूतो की गिरती गाज केवल तेरे पुण्य कर्म ही आ पायेंगे तेरे काज किये कुकर्म जाने अनजाने बे हर लेगें तेरी लाज परिचय :- प्रीति नेमा पिता : श्री रामजी नेमा निवासी : भैंसा जिला- नरसिंहपुर जन्म दिनांक : १४-०८-२००० शिक्षा : बी.एस.सी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
मन में है विश्वास
कविता

मन में है विश्वास

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** किसी दिन, किसी क्षण, किसी पल तो ये कोरोना जाएगा ही। गम के बादलों को चीर कल विहँसता सूरज आएगा ही। अभी गहरा तिमिर है, पर रात का भी अंतिम प्रहर है। कल फिर नूतन प्रभा के संग, रवि मुस्कुराएगा ही। बड़ा मुश्किल ये पल है। मन में अब बचा न बल है। दृश्य विचलित कर रहे अब, ईश्वर ही एकमात्र संबल है। कब तक सहेगा वो अपने बच्चों के आँसू। जल्दी ही पिघलकर वो नेह बरसाएगा ही। किसी माँ के बच्चों को छीना किसी का ले लिया नगीना। बड़ा दरिंदा ये निकला कोरोना, मुश्किल किया सबका जीना। मगर एक आस जिंदा है, प्रभु पर सबका विश्वास जिंदा है। न घबराओ मेरे साथियों सबकी व्याकुलता देख अब वो चक्र चलाएगा ही। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : डी.ए.वी. मे...
एक शब्द में
कविता

एक शब्द में

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां मां एक शब्द में, सम्पूर्ण सृष्टि समाई है। प्रकृति के रहस्यों में, स्थित प्रश्नों का उत्तर है मां! मातृत्व प्राप्त करते, देवत्व को प्राप्त करती है। सृजन की शक्ति में, ईश्वरीय देन होती है। मां! मां के अनेक रुपों में, ममता भरा ओज दमकता है। स्नेह के आंचल में, स्वाभिमान समाया है। संघर्ष को कठोर तप से, प्रदीप्त हो निवारण करती है। मां! मां कामिनी, प्रेयसी में, तो पत्नी, दुहिता, धारिणी हैं। प्रवृत्ति की रीढ़, खेतों में वीर, वीर प्रसूता भी मां हैं। संस्कृति की वाहक, परम्पराओं की संरक्षक 'मां' है। धन्य हो माँ ! जिससे मिला जीवन हमको। सार्थक कर दिखाना है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है। वर्तमान में मूक ब...
भगवान और भिखारी
लघुकथा

भगवान और भिखारी

विनय मोहन 'खारवन' जगाधरी (हरियाणा) ******************** धार्मिक प्रवृत्ति के राम लाल हर रोज साईकल से उस शिव मंदिर में पूजा करने आते थे। मंदिर के सामने ही एक भिखारी बैठता था। जिसे राम लाल रोज एक रुपया देता था। ये नियम सा बन गया था। उस दिन भी रामलाल साईकल से घर से चला, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही साईकल में पंचर हो गया। साईकल को पैदल ही लेकर पंचर की दुकान तक पहुंचा। पंचर लग गया। पैसे जेब से निकालने लगे तो पता चला पर्स ही घर रह गया। अब क्या करें। दुकानदार को सारी बात बताई पर दुकानदार नही माना। रामलाल ने इधर उधर देखा, सामने भिखारी पर नज़र पड़ी। भिखारी रामलाल को ही देख रहा था। रामलाल भिखारी के समीप गया। भिखारी ने बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे रामलाल को दस का नोट थम दिया। रामलाल समझ गया कि ये भिखारी सब देख चुका है। भिखारी नीचे मुँह करके अपना कटोरा खड़काने लगा। रामलाल ने दुकानदार के पैसे दिए व मंन्दिर...
ये वक्त भी गुज़र जायेगा
कविता

ये वक्त भी गुज़र जायेगा

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** गमों का कातिल दौर, कब तक मन को छलायेगा डटा रह, ज़ालिम ये वक़्त भी गुज़र जायेगा मन में भर विश्वास की लौ का उजियारा रंगीन दुनिया, जगमगाती खुशीयों का दौर लौट आयेगा सवाल खटखटा रहे हैं, मेरे मन का द्वार धरा का क्या हाल हुआ, सताए यह विचार मन विचलित, नैन विस्मित, देख नजा़रे धरती के सजा मिली कैसी हमें पूछूंगी भगवन, तुम अगर मिल गए इंसान ही इंसान का बन बैठा है दुश्मन अनाचार, अत्याचार, हैवानियत, मर गया कोमल मन संसार है नश्वर, मोल इंसानियत का न जाना किसी ने गुनाहों की मेरे मांग लूंगी माफी, तुम अगर मिल गए जगमगाती दुनिया में छाया एक पल में अंधियारा तम को चीरकर दीप्त प्रकाशमान करो, झिलमिल उजियारा अलौकिक रोशनी से रोशन होगा जहां, मन में विश्वास है आस की लौ थी क्युं जलाई, पूछूंगी तुम अगर मिल गए होश कहां बा...
जाने दुनियां
गीत, भजन

जाने दुनियां

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब) आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है। करका पावन आशीष जिनका, कंकर सुमन बनाता है I पग धूली से मरुआंगन भी, नंदनवन बन जाता है। स्वर्ण जयंती मुनिदीक्षा की, रोम रोम को सुख देती I सारे भेद मिटा, जन जन को, सुख शांति अनुभव देती।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है।। अकिंचन से चक्रवर्ती तक, चरण शरण जिनकी आते I कर के आशीषों से ही बस, अक्षय सुख शांति पाते I योगेश्वर भी, राम भी इनमें, महावीर से ये दिखते I सतयुग, द्वापर, त्रेता के भी, नारायण प्रभु ये दिखते I युग युग तक रज चरण मिले, यही संजय मन नित मांगे। आचार्य श्री विद्यासागर का, सदा हो आशीष मम माथे।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I...
कभी कभी
कविता

कभी कभी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम्हारी याद सताती है बस कभी कभी भूली बातें याद दिलाती है, बस कभी कभी। तेरी यादों की चादर में लिपट के रोता हूँ काश!तुम अश्क पोंछने आती, बस कभी कभी। बहुत सताया हूं तुमको है सब याद मुझे उन ज़ख़्मो को तुम दिखलाती, बस कभी कभी । अरसे से तरसे यूं फ़कत दीदार के लिए तुम भी मुझको आवाज़ लगाती, बस कभी कभी। सिवा तुम्हारे हम किसी और के हो भी नही पाए मुझे भी कुछ एह़सास दिलाती, बस कभी कभी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल व...
छोटी सी भूल
कविता

छोटी सी भूल

प्रेमनारायण राव भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जग में मत करना, एक छोटी सी भूल। अंत में पछतायेगा, कर छोटी सी भूल॥ पारीक्षित नें किन्ही एक छोटी सी भूल कीन्हों अपमान, मृत सर्प मुनि डारके अंत में पछताये, कर छोटी सी भूल पाण्डू मृग मारे बन, रमण क़ि अवस्था में पायो मृग श्राप पाण्डू , भोग के वियोग को जीवन को अंत भयो कर छोटी सी भूल महल बीच दुर्योधन भई गिरबे क़ि भूल द्रौपती किन्ही, तब हँसबे क़ि भूल सभा बीच नग्न भई, कर छोटी सी भूल योगी मुनि योद्धा नृप, तनक भई भूल काऊ को ना बक्षत प्रेम छोटी सी भूल परिचय :- प्रेमनारायण राव पिता : स्व. श्री कृपाराम राव पता : राजाभोज की नगरी भोजपाल (भोपाल) म.प्र सम्प्रति : शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त विधा : भजन, ग़ज़ल, लोकगीत, विदाई गीत, देशभक्ति गीत, अभिनंदन पत्र, कवित्त, सवैये, छंद, कुण्डली, दोहे, साकी, शैर आदि विधाओ में रचनाएँ। सन १९८४ से १९९० तक आक...
हमारे आंगन में
कविता

हमारे आंगन में

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** हवाएं जो बिगड़ी है देखना तुम एक दिन फिर बहारें चमन में अपना रंग बदलेगी और खिल जायेगी चारौं दिशाएं बसंत खिलकर आयेगा हमारे आंगन में। बिगड़े हालात सब सुधर जायेंगे मधुबन में फिर कोई गुनगुनायेगा, सुबह फिर खिल उठेगी उषा की लालीमा लिए हर पुष्प पर कुसुम की खूबसूरत मुस्कुराहट होगी और दबे पांव नया बंसत अपने बंसती रंग लिए आयेगा हमारे आंगन में। हर चेहरे पर नूर ही नूर होगा शबनम सी मुस्कुराहटों की चमक लिए, महामारी करोना काल से हम जीत जायेंगे गगन सकारात्मक सोच लिये ये काले बादल भी छट जायेंगे और मुस्कुराता बसंत फिर खिलकर आयेगा हमारे आंगन में। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४...
बादल आवारा है
कविता

बादल आवारा है

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल आवारा है अल्हड़ है मदमस्त इतराते है बादल आवारा है। है वसुधा से दूर ये कितने झट से आलिंगन कर जाते हैं बादल आवारा है।। पनिहारिन पानी भरती ऐसे लगते हैं मोर नाचता मधुवन ऐसे लगते हैं चीटी चढे पहाड़ ऐसे भी दिखते कान्हा की बंसी मुद्रा से भी लगते हैं बादल आवारा है।। कभी नवल कभी धवल कभी कमल ये बन जाते हैं बादल आवारा है।। मुस्काओ तो हंसते जाते दुख में ये उदास हो जाते बहुरूपिया बनकर ये बादल कभी हंसाते कभी रूलाते बादल आवारा है।। कभी दुपहरी बनकर आते सांझें सुंदरी कर जाते उमस भरी रातें भी इनकी कभी चांदनी में नहलाते बादल आवारा है अल्हड़ है मदमस्त इतराते है बादल आवारा है।। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...
काली का स्वरूप धरूं
गीत

काली का स्वरूप धरूं

रेशू पर्भा राँची, (झारखंड) ******************** लक्ष्मी बनूँ, दुर्गा बनूँ, या काली का स्वरूप धरूं रानी बनूं, अबला बनूं, या कोई कुरूप बनूँ तेरी छलती नयनों से, कैसे अब मैं दूर रहूँ कहो पापियों मुझे बताओ, इस युग में कौन सा रूप मैं लूँ अत्याचार अब बढ़ा बहुत है, किस तरह मै दूर करूँ अग्नि ज्वाला बरसा दूँ, या प्रलय सा हाहाकार करूँ पिला दूँ विष का प्याला मैं, या सीने पर तेरे वार करूँ कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा संहार करूँ जन्म दिया जिस नारी ने, करते कैसे तिरस्कार हो उनकी छांव में पलकर तुम, करते कैसे बहिष्कार हो अरे हीन विचारों वाले, कैसे तुझसे संवाद करूं कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा अभिवाद करूँ राहों पर जो चले अकेली, नजरों से नग्न तुम देखते हो जरा बताओ, अपनी माँ बहनो को भी ऐसे ही निहारते हो इस स्वर्णिम सृजन सृष्टि का अब कहो कैसे उद्धार करूँ तुम ही बताओ ओ वहशी कैसे तेरा मैं नाश करूँ आधु...
मै झूक जाऊंगा
कविता

मै झूक जाऊंगा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** वक्त ओर हालात के आगे मै झूक नही पाऊंगा तेरे हर इम्तां के आगे मै झूक नही पाऊंगा इसां की लाशों के ढेर का हो रहा हे अपमान पत्थर न हो, इंसां के आगे मै झूक नहीं पाऊंगा सियासत बड़ी या इंसा की पड़ी हुई ख़ाक दे इंसाफ़, उस ख़ाक के आगे मै झूक पाऊंगा तूने तो बनाया ये संसार, रूठ गया हे क्यूं आज मेरे यार जवाब दे सब के आगे मै झूक पाऊंगा बस तेरे ही बंदो का ख्याल करले ए मालिक हैसियत नहीं, अपनो के आगे मै रूक पाऊंगा झोली फेला दुआ करता हे ये "मोहन" अब ये कलयुग समेट ले तेरे आगे मै झूक जाऊंगा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
मां तुझे सलाम नमन
स्मृति

मां तुझे सलाम नमन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके हाथों में पालने की डोरी, उसकी महिमा जगन्नाथ से भी भारी।। मातृ दिवस का मर्म इन दो पंक्तियों में समाया है। अहिल्या सीरियल दूरदर्शन पर देखते-देखते मां से जुड़ी कई यादें दिमाग में पुनः ताजा हो गई हैं। कुछ बातें आपके साथ साझा करने का प्रयास कर रही हूं। स्वानुभूति के समंदर में गोते लगाते हुए मेरी मां ने कुछ उसूलों के मोती पाए थे और उनको अपने मन मंदिर में सजाकर आज की दृष्टि से विशाल परिवार को सभ्य, सुसंस्कृत, संस्कारित, आध्यात्मिक संबल से पालने का निश्चय किया था। बात पुराने जमाने की है अर्थात ३० के दशक से शूरू होती है.... शादी के समय मेरी मां की उम्र ९-१० साल की और पिताश्री की उम्र १९-२० साल की थी। गांव के मुखिया की बेटी थीं वे। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे भव्य बाड़े, नौकर-चाकर तथा भरे-पूरे परिवार से थीं हमारी मां। मुखिया जी के घर...
आशा की किरण
कविता

आशा की किरण

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हो घनघोर अंधियारी रात या हो गहरी अमावस की रात, एक नन्हा सा दिया आशा की किरण बनकर जगमगाता है. वह थी एक मुसलधार बारिश की रात, जब जेल की दीवारें, प्रकाशमान हो उठी, एक अद्भूत अलौकिक बालक श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, आशा और विश्वास का एक सुरज जगमगाया. वह थी अमावस की रात जिसमें नन्ही-नन्ही दिपमालाओं ने पूनम की रात बना दिया, श्री राम का आगमन अयोध्या का घर-घर प्रकाशमान हो गया. वह थी अमावस की रात जब अहिंसा, क्षमा, अभय के प्रतिक, प्रभु महावीर का निर्वाण कल्याणक हुआ, ज्ञान, तप, त्याग की मूर्ति से हमारा विछोह हुआ, तब माटी के छोटे-छोटे दीपों ने ज्ञान की ज्योत को जलाये रखा। वह गौतम बुद्ध थे, जो यह संदेश दे गये, "अप्प दीपो भवः" अपना प्रकाश खुद बनो, चाहे कितनी भी हो गहरी घनघोर काली अमावस की रात, उसमें भी आशा की एक किरण मुस्कुराती है, जीने का नया हौसला देती...
आजादी का मान
कविता

आजादी का मान

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान मिला तुम्हे आजादी का। यारो इसे नही गवाना। मिटे कई वीर तुम्हारे लिए। बलिदान उनका नही भुलाना। वो ना होते तो तुम कैसे आज ऐसे जी पाते। गुलामी की जंजीरों के घाव तुमसे ना सहे जाते। रक्त से लतपत हुई इस धरा ने अपने बेटों का लहू भी पी लिया। आजादी की तरसती भारत माँ ने जाने क्या क्या सह लिया। गर्व करो उन वीरो पर जिन्होंने दे दी तुम्हें आजादी। धर्म जात ओर बंटबारे पर मत करो तुम बर्बादी। एक है हम एक हमारा प्यार ये स्वराष्ट्र है। झुका के शीश नमन करो देश पर मुझे नाज है। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
हार ही हुई है
कविता

हार ही हुई है

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** बहुत बार कर के देख ली है कोशिश....! हर बार हमेशा कि तरह हार ही हुई है....!! दफ़न हो गई है तमन्नाएं सारी मन के भीतर ही....! ओर कितनी मन्नतें मानू एक भी कहा साकार हुई है....!! जब भी चाहा किसी चीज को शिद्दत से....! सारी कायनात हमेशा की तरह दूर करने में ही लग गई है....!! पुराने ख्वाब ज़हन में भला आयेंगे भी कैसे....! नींद जो हमारी अब नयी हुई है....!! सोच के बारे में ओर कितना सोचूं, सोचती हूँ सोचना ही छोड़ दू....! सोच हमेशा सभी कार्यों के विपरीत ही हुई है....!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
अखबार बेचने वाला हूँ
गीत

अखबार बेचने वाला हूँ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदू ना मुसलमान हूँ मैं, इंसान हूँ इज्जत वाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं रोज नई खबरें लाता, तम चीर उजाला फैलाता। हर सुबह यही वंदन करता, रखना खुश सबको ऐ दाता।। हूँ पढ़ा लिखा कम, सच है पर, मैं आदर्शों का पाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। अखबार बेचता हूं मैं क्यों, है शर्म नहीं मुझको कोई। मिल जाती मुझको दो रोटी, है काम कहां छोटा कोई।। मैं तो भविष्य भारत का हूँ, मैं भारत का रखवाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं काम सभी कर लेता हूँ, अपनी मस्ती में रहता हूँ। कल मैं भी जिलाधीश बनकर, आऊँगा ये सच कहता हूँ।। मेहनत "अनंत" ईमान मेरा, मुट्ठी में लिए उजाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है
कविता

चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं तुम रानी दीदी बन जाना घराती और राजा भैया बनेंगे बराती ऐसे ही संग संग नाचते और गाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं लाल लाल चुनरी में गुड़िया है सजती पीली पीली पगड़ी गुड्डे को है जंचती मोतियों वाला चलो हार पहनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है मंडप को मैंने तोरण से सजाया साथ साथ थोड़ा झालर भी लगाया नाच गाने के लिए डीजे लगवाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है देखो देखो जाकर बारात है आई बैंड बाजे के संग बजी है शहनाई द्वारचार के लिये चौक बनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं गाजर का हलुवा और बाम्बे मिठाई कही पर है गुपचुप, कही रसमलाई दोस्तों के संग चलो पार्टी मनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं मंडप में बैठी है गुमसुम स...
हार मत मान
कविता

हार मत मान

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आत्म समर्पण हार को, करो न है यह पाप। दृढ़ संकल्प लिये चलो, होगा जीत मिलाप। असफलता से हार कर, जो न कभी घबराय। आ जाता उस पुरुष के, पास सफलता धाय। भूतकाल की भूल से, ग्रहण करो उपदेश, आने वाली जीत का, समझो नव संकेत। घबराओं मत हार से, करो न हिम्मत पस्त, हार निकटतम जीत का करती मार्ग प्रशस्त। असफल हुऐ तो क्या हुआं? जब कि आत्म विश्वास, है तो निश्चय समझ लो, बदलोगे इतिहास। बाहर उजियारी नहीं, भीतर भरा प्रकाश, हार वहाँ पर है कहाँ? जहाँ आत्म विश्वास। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपक...