वक्त का ये दौर
सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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वक्त का ये दौर भी गुजर जायेगा,
बारिशों का मौसम, फिर आयेगा,
गर, महफूज़ रहे, अपने घर में हम,
खुशियों की, सौगात, फिर लायेगा,
मायूसी को दर किनार कर ए दोस्त,
फिज़ा की रौनक, को, लौटा लायेगा,
न रहो आप किसी भी कशमकश में,
जहां, ये फिर जिन्दादिल ही कहलायेगा,
फिक्र न कर तू, बेबुनियाद खबरों की,
कल का सूरज, फूलों की खुशबू लायेगा
परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति...
























